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भारत देश में 16 साल से लेकर 40 साल की उम्र तक की महिलाएं क्यों हो रही PCOD बीमारी का शिकार?

देश में कई बीमारियों का दायरा बढ़ रहा है. कैंसर, हार्ट डिजीज और पेट की बीमारियों के मरीजों के ग्राफ में हर नए साल के साथ इजाफा हो रहा है. इन बीमारियों के बीच एक ऐसी बीमारी भी है जो भारत में बहुत तेजी से अपने पांव पसार रही है, लेकिन इसकी तरफ ध्यान कम दिया जा रहा है. यहां हम महिलाओं मे होने वाली PCOD यानी पॉलिसिस्टिक ओवरी डिजीज की बात कर रहे हैं. देश में बीते एक दशक में इस बीमारी से जूझ रही महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. 16 साल से लेकर 40 साल की उम्र तक की महिलाएं भी इसका शिकार हो रही हैं.

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, भारत में हर पांच में से एक (20%) महिला पीसीओएस से पीड़ित है. ये बीमारी बांझपन का एक बड़ा कारण बन रही है. द लैंसट की 2021 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, पीसीओडी का इलाज न होने से 15 से 20 फीसदी महिलाएं एंडोमेट्रियल कैंसर का शिकार हो सकती हैं. इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये बीमारी कितनी खतरनाक है, हालांकि भारत में अधिकतर महिलाएं इस डिजीज को लेकर जागरूक नहीं हैं. इस कारण ये बीमारी कई मामलों में गंभीर रूप ले लेती है और महिलाएं बांझपन का शिकार हो जाती है.

यहां ये जानना बहुत जरूरी है कि भारत में पीसीओडी की बीमारी क्यों इतनी तेजी से बढ़ रही है? महिलाएं इससे कैसे बच सकती हैं और इसका इलाज किस तरह हो सकता है.

क्यों तेजी से बढ़ रही पीसीओडी की बीमारी?

इस बारे में सफदरजंग हॉस्पिटल में ऑन्को गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सलोनी चड्ढा ने जानकारी दी है. डॉ सलोनी बताती हैं कि पीसीओडी डिजीज होने का कोई एक खास कारण नहीं है. बिगड़ा हुआ लाइफस्टाइल, मेंटल स्ट्रेस, खानपान की गलत आदतें, धूम्रपान और शराब का सेवन इस डिजीज के होने के बड़े रिस्क फैक्टर हैं.

बीते कुछ सालों से महिलाओं का लाइफस्टाइल खराब हो रहा है. सोने और जागने का समय निर्धारित नहीं है. लगातार बिगड़ रहा लाइफस्टाइल पीसीओडी होने का कारण बन रहा है. कुछ मामलों में ये बीमारी जेनेटिक कारणों से भी हो सकती है. यानी एक से दूसरी पीढ़ी में जा सकती है,

डॉ सलोनी बताती हैं कि पीसीओडी की बीमारी 16 से 18 साल की उम्र से लेकर 30 साल की उम्र के बाद भी हो सकती है. इसकी वजह से महिलाओं के शरीर में हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है. पुरुष हार्मोन बढ़ जाते हैं. इससे कई तरह की समस्याएं आने लगती हैं. चेहरे पर बाल आने लगते हैं. शरीर के कई अन्य अंगों पर ज्यादा बाल उगने लगते हैं. पीरियड्स आने का पैटर्न भी खराब हो जाता है. समय पर पीरियड्स नहीं आते हैं.

क्या-क्या और दूसरी परेशानियां होती हैं?

पीसीओडी की वजह से ओवरी में छोटे- छोटे सिस्ट यानी की गांठ बनने लगती हैं. इन सिस्ट की वजह से गर्भधारण करना मुश्किल होता है. यही कारण है कि पीसीओडी बांझपन का भी कारण बन जाती है. इस डिजीज के कारण महिलाओं में इंसुलिन रेजिस्टेंस भी होता है. इस वजह से उनकी सेल्स इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाती है. जब सेल्स इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाती हैं, तो शरीर में इंसुलिन की मांग बढ़ जाती है. इसकी पूर्ति के लिए पैनक्रियाज अधिक इंसुलिन बनाता है. अतिरिक्त इंसुलिन बनने की वजह से मोटापे से संबंधित समस्या होने लगती है. मोटापा बढ़ने से स्लीप एप्निया की समस्या होने का रिस्क रहता है. इस स्थिति के कारण रात के दौरान सांस लेने में बार-बार रुकावट आती है, जिससे नींद में बाधा आती है.

स्लीप एपनिया उन महिलाओं में अधिक आम है जो अधिक वजन वाली हैं, खासकर अगर उन्हें पीसीओएस भी है. जिन महिलाओं में मोटापा और पीसीओडी दोनों हैं, उनमें स्लीप एपनिया का जोखिम उन महिलाओं की तुलना में 5 से 10 गुना अधिक है, जिनको पीसीओडी नहीं है.

इस बीमारी की वजह से हुआ हार्मोनल इंबैलेंस और अनचाहे बालों के बढ़ने जैसे लक्षण महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर खराब असर डालते हैं. इससे महिलाएं एंग्जाइटी और डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं.

कैसे होती है इस बीमारी की पहचान?

डॉ. सलोनी बताती हैं कि डॉक्टर आमतौर पर उन महिलाओं में पीसीओडी का निदान करते हैं जिनमें इन तीन लक्षणों में से कम से कम दो लक्षण होते हैं.

हाई एण्ड्रोजन लेवल

समय पर पीरियड्स न आना

ओवरी में सिस्ट

अगर डॉक्टर को इनमें से कोई परेशानी मिलती है तो पैल्विक जांच की जाती है. इसके अलावा कई तरह के ब्लड टेस्ट भी किए जाते हैं. इनमें कोलेस्ट्रॉल, इंसुलिन और ट्राइग्लिसराइड के टेस्ट होते हैं. एक अल्ट्रासाउंड भी किया जाता है जिससे अंडाशय और गर्भाशय की जांच की जाती है.

पीसीओडी का इलाज क्या है?

नई दिल्ली के एम्स में प्रोफेसर डॉ रीमा  बताती हैं कि दवाओं और सर्जरी के माध्यम से इस बीमारी को ट्रीट किया जाता है. इसके अलावा डॉक्टर आपको लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करने की सलाह देते हैं. साथ ही खानपान का रूटीन भी तय करते हैं. इसके लिए डाइट में हरे फल और सब्जियों को शामिल करने के लिए कहा जाता है. खानपान में फाइबर की मात्रा को बढ़ाने की सलाह दी जाती है. वजन को मेंटेन रखने के लिए एक्सरसाइज करने के लिए कहा जाता है. इसके साथ ही रोग योग करने की सलाह भी दी जाती है.

योग के जरिए पोसीओडी की बीमारी को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है. योग करने से काफी फायदा मिलता है. एम्स मे पीसओडी से पीड़ित कई महिलाओं को योग के जरिए इस बीमारी से बचाने का काम किया गया है. योग करने से मोटापा भी कंट्रोल में रहता है और मानसिक तनाव भी कम होता है. कपालभाति और सूर्य नमस्कार जैसे प्राणायाम इसमें काफी फायदेमंद साबित होते हैं.

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