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ट्रंप की ‘दोस्ती’ के दम पर कंगाल पाकिस्तान को आईएमएफ से कर्ज तो मिल गया, लेकिन खुद अमेरिका पर 105 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज हो चुका है और वह रोजाना अरबों डॉलर सिर्फ ब्याज चुकाने में खर्च कर रहा

Pakistan imf loan: व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष आसिफ मुनीर की मुलाकात के बाद से मानो पाकिस्तान की लॉटरी लग गई है. कंगाली की दहलीज पर खड़े पाकिस्तान को एक बार फिर संजीवनी मिल गई है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 10,782 करोड़ रुपये) का कर्ज देने की मंजूरी दे दी है. यह वही पाकिस्तान है, जिसे लेकर भारत ने कई बार दुनिया को चेताया है कि वहां जाने वाला पैसा अंततः आतंकवाद को पोषित करने में खर्च होता है. लेकिन, कूटनीति के जानकारों का मानना है कि आईएमएफ के इस फैसले के पीछे ट्रंप प्रशासन का ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ काम कर रहा है.

ट्रंप की ‘दोस्ती’ से पाकिस्तान को राहत

आमतौर पर आईएमएफ किसी भी देश को लोन देने से पहले वहां की आर्थिक नीतियों का बेहद कड़ाई से मूल्यांकन करता है. एक उच्च स्तरीय कमेटी अपनी शर्तों पर खरा उतरने के बाद ही फंड जारी करती है. लेकिन वैश्विक कूटनीति में यह एक खुला रहस्य है कि आईएमएफ के फैसलों पर अमेरिका का भारी दबदबा रहता है.

माना जा रहा है कि आसिफ मुनीर की ट्रम्प से मुलाकात और उसके बाद बनी सहमति ने ही पाकिस्तान के लिए कर्ज का रास्ता आसान किया है. भारत के विरोध और आशंकाओं के बावजूद पाकिस्तान को यह रकम मिल गई है, जिससे वहां की सरकार को कुछ महीनों के लिए राहत जरूर मिल जाएगी. लेकिन असली सवाल यह है कि जो अमेरिका दूसरों को कर्ज दिलवा रहा है, उसकी अपनी तिजोरी का हाल क्या है?

अमेरिका पर भारी कर्ज का बोझ

डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वे अमेरिका को फिर से महान (Make America Great Again) बनाएंगे. लेकिन कैसे ये उनको भी नहीं पता. अमेरिका का कुल कर्ज इस समय 105.2 ट्रिलियन डॉलर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच चुका है. यह आंकड़ा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह अमेरिका की कुल जीडीपी का लगभग 3.5 गुना है.

इस भारी-भरकम कर्ज में केवल सरकार की हिस्सेदारी ही नहीं है, बल्कि आम अमेरिकी भी बुरी तरह डूबा हुआ है. इसमें संघीय सरकार (Federal Government) का कर्ज 38.2 ट्रिलियन डॉलर है. इसके अलावा पर्सनल डेट 26.4 ट्रिलियन डॉलर, मॉर्गेज डेट (घर का लोन) 21.3 ट्रिलियन डॉलर और स्टूडेंट लोन 1.8 ट्रिलियन डॉलर शामिल है. यानी सरकार से लेकर आम नागरिक तक, हर कोई उधारी की जिंदगी जी रहा है.

  1. अक्टूबर 1995 में संघीय कर्ज मात्र 4.9 ट्रिलियन डॉलर था.
  2. 2005 में यह बढ़कर 8 ट्रिलियन डॉलर हुआ.
  3. 2015 में यह 18.1 ट्रिलियन डॉलर तक जा पहुंचा.
  4. और अब यह 38.2 ट्रिलियन डॉलर के पार है.

अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर यही रफ्तार रही, तो 2028 तक यह कर्ज 50 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा छू लेगा. महामारी (COVID-19) के बाद से तो स्थिति और भी विस्फोटक हो गई है, क्योंकि उसके बाद से अब तक कर्ज में 15 ट्रिलियन डॉलर का इजाफा हो चुका है.

रोजाना 3 अरब डॉलर तो सिर्फ ब्याज में जा रहे

अमेरिका को अब अपने विकास कार्यों पर खर्च करने से ज्यादा चिंता कर्ज का ब्याज चुकाने की है. रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका को रोजाना करीब 3 अरब डॉलर सिर्फ ब्याज चुकाने में खर्च करने पड़ रहे हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर सकती है.

डोनाल्ड ट्रंप भले ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर कितने भी बड़े दावे करें, लेकिन हकीकत यही है कि देश कर्ज के भयंकर जाल में फंस चुका है. अगर जल्द ही कोई ठोस आर्थिक सुधार नहीं किए गए, तो सरकार के पास विकास कार्यों, इंफ्रास्ट्रक्चर और जनकल्याण के लिए पैसा ही नहीं बचेगा. सारा राजस्व कर्ज को चुकाने में ही स्वाहा हो जाएगा.

About Manish Shukla

Manish Shukla
मैं मनीष शुक्ला RBNEWS PVT LTD नेटवर्क में मुख्य संपादक एवं डायरेक्टर हूं. मीडिया उद्योग में 4 वर्षों से अधिक अनुभव के साथ, मैं रिपोर्टिंग और विश्लेषण में अपने अनुभव का लाभ उठाकर पाठको को आकर्षित और जागरूक करने वाली उच्च-प्रभाव वाली खबरों को सत्यतापूर्वक पेश करता हूं. वर्तमान में, मैं यु.पी., एम.पी., बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल एवं दिल्ली सरकार की राजनीतिक व अपराधिक घटनाओं, एवं प्रवर्तन निदेशालय (ED), CBI को कवर करने, के साथ कुछ इंटरव्यू और समसामयिक मामलों पर व्यावहारिक विश्लेषण प्रदान करने के लिए ज़िम्मेदारी निभा रहा हूं.

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