तेलंगाना मंत्रिमंडल ने स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों (बीसी) के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण लागू करके राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव कराने की अपनी योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। कैबिनेट ने स्थानीय निकायों में आरक्षण संबंधी 2018 के कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने का भी निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी की अध्यक्षता में 19वीं राज्य कैबिनेट बैठक गुरुवार, 10 जुलाई को डॉ. बीआर अंबेडकर तेलंगाना राज्य सचिवालय में आयोजित की गई। इसी बैठक में यह अहम फैसला लिया गया।
कैबिनेट की बैठक लगभग 4 घंटे तक चली, जिसके दौरान मंत्रियों द्वारा पिछली कैबिनेट बैठक की कार्रवाई की समीक्षा की गई। कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए राजस्व मंत्री पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी ने कहा कि कैबिनेट बैठक में एडवोकेट जनरल को भी आमंत्रित किया गया था, ताकि स्थानीय निकाय चुनावों को बिना किसी कानूनी अड़चन के आगे बढ़ाने के बारे में उनकी सलाह ली जा सके।
तेलंगाना में तीन महीने के अंदर होंगे चुनाव
उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि स्थानीय निकाय चुनाव तीन महीने के भीतर कराए जाएं। ऐसे में राज्य सरकार तेजी से स्थानीय निकाय चुनाव कराने की तैयारी कर रही है। सरकार का प्लान 42 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था के साथ निकाय चुनाव कराने का है।
42 फीसदी कोटे के साथ चुनाव कराने की तैयारी
पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री पोन्नम प्रभाकर ने कहा कि आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा पहले ही विभिन्न राज्यों में पार हो चुकी है, जिनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शासित राज्य भी शामिल हैं, और उन्होंने तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग के लिए 42 प्रतिशत कोटा के साथ चुनाव कराने का विश्वास व्यक्त किया।
2018 में पारित अधिनियम में होगा संशोधन
तेलंगाना के स्थानीय निकाय चुनाव में 42 फीसदी आरक्षण लागू करने के लिए सरकार को 2018 में पारित अधिनियम में बदलाव करना होगा। इसके लिए विधानसभा में अध्यादेश लाया जाएगा। यहां से अध्यादेश पारित होने के बाद ही कानून में बदलाव होगा और 42 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ होगा।
पहले ही पारित हो चुका है विधेयक
श्रीनिवास रेड्डी ने कहा कि राज्य विधानसभा ने पिछड़ी जातियों को 42 प्रतिशत आरक्षण देने वाला विधेयक पहले ही पारित कर दिया था। इसे राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया था। हालांकि, यह विधेयक पारित नहीं हो पाया था। इसी वजह से इस बार मीटिंग में एडवोकेट जनरल को भी आमंत्रित किया गया था, ताकि बिना किसी अड़चन के कानूनी बदलाव किया जा सके।