Rajya Sabha: समाजवादी पार्टी के सांसद राम गोपाल यादव ने बुधवार 19 मार्च 2025 को सांसद निधि को लेकर राज्यसभा में सुझाव दिए. उन्होंने दावा किया कि देश के एक तिहाई लोकसभा के सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) यानी सांसद निधि के कारण चुनाव हार जाते हैं. इस वजह से उन्होंने सांसद निधि के तहत मिलने वाली राशि (वर्तमान में 5 करोड़ रुपये) को बढ़ाकर 20 करोड़ रुपये प्रति वर्ष किए जाने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि अगर यह संभव नहीं है तो फिर इसे समाप्त कर दिया जाए.
‘गांव का एक प्रधान दे जाता है 10 करोड़ का काम’
राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान सपा सांसद ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि यह खासकर लोकसभा सांसदों के लिए संकट बन गई है. राज्यसभा के सदस्य अपने राज्य (जहां से वह निर्वाचित हुआ है) के किसी एक या अधिक जिलों में इस निधि से विकास कार्यों की सिफारिश कर सकता है. सपा सांसद ने राज्यसभा में कहा, “गांव का एक प्रधान आता है और 10 करोड़ का काम दे जाता है. ऐसे में लोग यह समझ नहीं पाते हैं कि सासंदों को कितना पैसा मिलता है. ऐसे में रोजाना सौ से दो सौ लोग सांसदों के खिलाफ हो जाते हैं.”
‘सांसद निधि में पांच करोड़ रुपये ही मिल रहे’
सपा के वरिष्ठ नेता ने कहा, “जब सांसद निधि की शुरुआत की गई थी, तब तब एक किलोमीटर सीसी रोड (साढ़े तीन मीटर चौड़ी) बनानें 13 लाख रुपया का खर्च आता था, लेकिन अब यही सड़क एक करोड़ 10 लाख रुपये में बन रही है. पहले हैंडपंप 15,000 रुपये में लगता था, लेकिन अब यह 85,000 रुपये में लग रहा है. उत्तर प्रदेश में विधायकों को पांच करोड़ रुपये, दिल्ली में 10 करोड़ रुपये और केरल में सात करोड़ रुपये की निधि मिलती है, जबकि सांसदों को अब भी सांसद निधि में पांच करोड़ रुपये ही मिल रहे हैं.”
‘यूपी में इतने पैसे में 1 KM सड़क नहीं बनेगी’
सपा सांसद राम गोपाल यादव ने कहा, उत्तर प्रदेश के एक लोकसभा क्षेत्र में पांच से छह विधानसभा आते हैं. सासंदों को 5 करोड़ रुपये मिलते हैं और उसमें से भी 18 फीसदी जीएसटी कट जाता है, यानि कि 4.10 करोड़ रुपये बचे. ऐसे में यूपी में एक सांसद एक साल में एक विधानसभा क्षेत्र में एक किलोमीटर सड़क भी नहीं बनवा सकता. उन्होंने विकास कार्यो में होने वाले खर्च के लिए निगरानी तंत्र की कमी का मुद्दा भी उठाया.
सभापति जगदीप धनखड़ ने दिया जवाब
इस पर सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अगर सरकार और विपक्ष सहमत होते हैं तो वे इस मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा, “मुफ्त योजनाओं को लेकर सदन में विचार विमर्श किया जाना चाहिए. देश तभी विकसित होता है, जब पूंजीगत व्यय उलब्ध हो. देश में चुनावी प्रक्रिया ऐसी है कि ये चुनावी प्रलोभन बन गए हैं.”