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Pawan Kalyan: जन सेना पार्टी के अध्यक्ष पवन कल्याण के बारे में जानने लिए पढ़े यह कहानी और जाने पवन कल्याण के संघर्षमयी जीवन के बारे में

सीन खुलता है. स्टेज पर नेता और उसके सामने है हजारों की भीड़. नेता भाषण दे रहा है. भीड़ उसकी हर बात पर तालियां पीट रही है. अचानक तालियों का शोर बढ़ता है. अभी तक भीड़ को दिखा रहा कैमरा स्पीच दे रहे पॉलिटीशियन की ओर घूम जाता है. उसके हाथ में एक चप्पल है और वो किसी को धमका रहा है. वो किसे धमका रहा है, ये अभी आगे बताएंगे. पर उससे पहले जानिए कि ये किसी फिल्म का सीन नहीं, बल्कि आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम की एक जनसभा है, और चप्पल दिखाने वाले नेता हैं पावरस्टार पवन कल्याण.

दरअसल जगनमोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस पार्टी के लोग उन्हें ‘पैकेज स्टार’ कहकर टीज करते हैं. इसी पर उन्होंने एक सभा में चप्पल दिखाते हुए कहा था, “अब अगर दोबारा आप लोगों ने मुझे ‘पैकेज स्टार’ कहा, तो मैं चप्पल से पीटूंगा.” ये बात है 2022 की. तब पवन कल्याण की जन सेना पार्टी की प्रदेश में कोई खास अहमियत नहीं थी. पर ‘पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान’. अब वक्त बदल चुका है, और बदल चुके हैं राज्य की जनता के जज़्बात. पवन कल्याण आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम हैं. उनकी पार्टी JSP ने 2024 के चुनाव में जलवेदार प्रदर्शन किया है. पीएम मोदी उन्हें आंधी बता चुके हैं. पर ये फिल्म का अंतिम सीन है. इससे पहले एक लंबी कहानी है. आज उसी कहानी को सिलसिलेवार ढंग से आपके सामने पेश करेंगे.

17 की उम्र में बड़े भाई की रिवॉल्वर से खुद की जान लेने की प्लानिंग

1968 में जन्मे पवन कल्याण ने सिर्फ 10वीं तक पढ़ाई की है.(ऐसा उन्होंने खुद अपने चुनावी हलफनामे में बताया है.) तीन भाइयों में सबसे छोटे पवन का असली नाम है कोनिडेला कल्याण बाबू. वो मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट हैं. ‘पवन’ उन्हें मार्शल आर्ट में ही मिला एक टाइटल है. यहीं से वो पवन कल्याण हो गए. उन्होंने एक बार अपने डिप्रेशन और आत्महत्या की प्लानिंग पर बात की थी. पवन ने बताया था कि अस्थमा के चलते उन्हें बार-बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता था. इसके कारण वो कभी बहुत सोशल आदमी नहीं रहे. वो बहुत अकेला महसूस करते थे. ऊपर से 17 की उम्र में पढ़ाई और परीक्षा का प्रेशर आ गया. वो कहते हैं, “जब मेरे बड़े भाई घर पर नहीं थे, तब मैंने उनकी लाइसेंसी रिवॉल्वर से खुद की जान लेने की प्लानिंग कर ली थी.” इसके बाद धीरे-धीरे वो संभले. मार्शल आर्ट सीखा. कर्नाटिक म्यूजिक की प्रैक्टिस करनी शुरू की. इसने उन्हें डिप्रेशन से निकलने में मदद की.

कहानी पावर स्टार बनने की

1996 में ‘अक्कड़ा अम्माई इक्कड़ा अब्बाई’ नाम की फिल्म से पवन ने डेब्यू किया. इसके बाद ‘गोकुलामलो सीता’ नाम की पिक्चर की. पर अभी तक मामला जमा नहीं था. फिर 1999 में आई ‘टोली प्रेमा’ ने पवन को इंडस्ट्री में स्थापित किया. इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड भी मिला. पर अभी बॉक्स ऑफिस पर उनकी धमक बाकी थी. ये भी 2001 में आई फिल्म ‘खुशी’ से पूरी हो गई. ये उस साल की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी. इसके बाद फिल्में आती रहीं और पवन कल्याण बॉक्स ऑफिस पर राज करते रहे.

मेगा स्टार चिरंजीवी के भाई होने के पवन कल्याण को कुछ फायदे हुए और कुछ नुकसान. फायदा ये हुआ कि इंडस्ट्री के हर बड़े आदमी तक पहुंच थी. इसलिए इंडस्ट्री में आना उनके लिए आसान था, पर पहचान बनाना कठिन. दरअसल जिस समय पवन कल्याण ने फिल्मों में आने की ठानी, चिरंजीवी बड़े स्टार थे. उनकी शैडो में दबकर रह जाने का डर उन्हें रहा होगा. पर उन्होंने अपनी पहचान बिल्कुल अलग बनाई.

चिरंजीवी की पार्टी में यूथ विंग की जिम्मेदारी

एक ओर फिल्में सही चल रही थीं. इसी बीच 2008 में चिरंजीवी ने पॉलिटिक्स में कदम रखा. उन्होंने प्रजा राज्यम पार्टी बनाई और इसकी यूथ विंग युवराज्यम का प्रेसीडेंट अपने भाई पवन कल्याण को बनाया. इस बीच पवन ने न ही कोई चुनाव लड़ा और न ही कोई संवैधानिक पद स्वीकार किया. लेकिन पार्टी के लिए प्रचार जोरदार किया. 2011 में चिरंजीवी ने PRP का कांग्रेस में विलय करने का फैसला किया. इससे पवन कल्याण थोड़ा नाराज भी हुए. और कुछ दिनों के लिए राजनीति से खुद को अलग कर लिया. कहा जाता है ऐसा उन्होंने अपने भाई के फैसले का साइलेंट प्रोटेस्ट करने के लिए किया.

ऐड के लिए शाहरुख से ज़्यादा पैसे मिल रहे थे, ठुकरा दिया

इससे पहले भी ऐसा मौका आया, जब भाई-भाई आमने सामने थे. लेकिन ये सिर्फ एक इत्तफाक था. 2001 के आसपास सॉफ्ट ड्रिंक इंडस्ट्री में कोको-कोला और पेप्सी दो सबसे बड़े राइवरल थे. कमाल ये है कि उस वक्त पेप्सी के ब्रांड एंबेस्डर पवन कल्याण थे. दूसरी तरफ कोको-कोला का प्रचार उनके भाई चिरंजीवी कर रहे थे. पवन ने कुछ समय पहले एक और दिलचस्प किस्सा साझा किया था. चूंकि बात कोला की निकली है, तो सुनाए देते हैं. बीस साल पहले एक कोला ब्रांड ने पवन को शाहरुख खान से ज़्यादा पैसे ऑफर किए थे. लेकिन ये जानने के बाद कि कोला सेहत के लिए हानिकारक होता है, उन्होंने उस ऑफर को ठुकरा दिया था. उनका कहना था,”मेरे लिए पैसों से ज्यादा ज़रूरी मेरा विश्वास है.”

तीन शादियां, 8 साल का लिव-इन, एक साथ दो शादियों का आरोप

अभी अपन राह को थोड़ा बदलते हैं, चलते हैं पवन कल्याण की पर्सनल लाइफ पर. वो फिल्मों में आने से पहले सत्यानंद एक्टिंग स्कूल में अभिनय की पढ़ाई करने गए. यहां उनकी नंदिनी से मुलाकात हुई. प्रेम हुआ. पहली फिल्म के बाद पवन ने नंदिनी से शादी कर ली. पर मामला बना नहीं. दोनों 2001 में अलग हो गए. इसके बाद पवन अपनी को-स्टार रेनू देसाई के साथ लिव-इन में रहने लगे.

उस वक्त नंदिनी ने उन पर दो शादी का आरोप लगाकर केस कर दिया. उनका कहना था कि पवन ने बिना तलाक लिए रेनू से शादी कर ली. पर पवन के अनुसार वो लिव-इन में रह रहे थे. फिर 2008 में पवन और नंदिनी का फॉर्मल तलाक हुआ. इसके लिए पवन को 5 करोड़ रुपए वन टाइम सेटलमेंट के तौर पर देने पड़े. 8 साल तक लिव-इन में रहने के बाद पवन ने रेनू से शादी कर ली. 2010 में दोनों को बेटी हुई. 2012 में दोनों अलग भी हो गए.

2024 के चुनाव के समय उनकी तीसरी वाइफ एन्ना लेजनेवा ने खूब सुर्खियां बटोरीं. इनसे पवन ने 2013 में शादी की थी. रूसी मॉडल एन्ना ने पवन के साथ 2011 में आई फिल्म ‘तीन मार’ में काम किया. यहीं दोनों के बीच प्रेम हुआ और शादी हो गई. दोनों के एक बेटा और एक बेटी है.

भाई कांग्रेस को सपोर्ट कर रहे थे, पवन ने बीजेपी से हाथ मिला लिया

छोटे से फैमिली ब्रेक के बाद, दोबारा लौटते हैं पवन कल्याण की पॉलिटिकल जर्नी पर. 2014 लोकसभा चुनाव के वक्त पवन कल्याण ने अपनी खुद की पार्टी बनाई. इसका नाम रखा जन सेना पार्टी. वो भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से जाकर मिले. इस वक्त चिरंजीवी कांग्रेस को सपोर्ट कर रहे थे. माने वो अपने ही भाई के खिलाफ खड़े हो गए. इसके बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश में TDB और BJP गठबंधन के लिए खूब प्रचार किया. पर कुछ सालों बाद TDP की सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट का ऐलान कर दिया. किडनी डिजीज के इलाज में लोगों हो रही असुविधा के लिए हंगर स्ट्राइक का ऐलान किया. किसानों की आत्महत्या को लेकर प्रोजेस्ट मार्च किया. TDP सरकार के लैंड पूलिंग फैसले का भी तगड़ा विरोध किया. केंद्र सरकार के भी कुछ फैसलों का विरोध उन्होंने किया. फिर 2019 के विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर कंटेस्ट किया. सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज की. खुद की दोनों सीटें भी हार गए.

जगन सरकार ने होटल में कर दिया नजरबंद

इस बड़ी हार के बाद पवन को लगा कि फिल्मों का रुख किया जाए. 2021 में ‘वकील साब’ नाम की फिल्म रिलीज की. इसने एक हफ्ते में ही 100 करोड़ कमा डाले. इस फिल्म ने ये तय किया कि उनका जलवा जनता के बीच अभी कायम है. फिल्मों के साथ-साथ पवन ने दोबारा राजनीति में जोर लगाने की ठानी. और ‘जन वाणी’ नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया. इसमें वो अलग-अलग जगहों पर जाकर एक सभा करते, लोगों की समस्याएं सुनते और उनका निदान करने की कोशिश करते. यहीं से उन्होंने राजनीतिक बाजी पलटनी शुरू की. उस वक्त राज्य में जगन मोहन रेड्डी की सरकार थी. पवन ‘जन वाणी’ कार्यक्रम के लिए विशाखापट्टन में थे. पर उन्हें वो कार्यक्रम करने ही नहीं दिया गया. उन्हें होटल में एक तरह से नजरबंद कर दिया गया. इसके बाद से पवन कल्याण असली नेता बनकर उभरे. फिर उन्होंने खेला एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक और बन गए आंध्रप्रदेश के डिप्टी सीएम. क्या था वो मास्टर स्ट्रोक, आइए बताते हैं.

इस एक दांव ने बनाया डिप्टी सीएम

दरअसल आंध्र प्रदेश की राजनीति में तीन जातियों का दबदबा है. रेड्डी, कपू और कम्मा. आंध्र प्रदेश में शुरू से ही रेड्डी के हाथ में सत्ता रही. फिर एनटी रामाराव ने TDP बनाकर कम्मा समुदाय को रिप्रेजेंटेशन दिलाया. चिरंजीवी ने कपू समुदाय को साधने की कोशिश की. पर मामला बना नहीं. फिर आए पवन कल्याण, पर अकेले वो सफल नहीं हुए. 2024 में उन्होंने चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP से हाथ मिलाया. चूंकि नायडू कम्मा हैं और पवन कपू. इसलिए इन दोनों जातियों के वोटर्स साथ आए और TDP-BJP-JSP माने NDA गठबंधन की सरकार आंध्र प्रदेश में बनी, और पवन कल्याण डिप्टी सीएम बन गए.

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