हैदराबाद: उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी ने अपने प्रतिद्वंद्वी और सत्तारूढ़ NDA के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन पर तीखा हमला बोला है। सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि राधाकृष्णन न तो दिखाई दे रहे हैं और न ही बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर वह बोलते तो एक स्वस्थ बहस संभव होती।
पूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी ने कहा, “मेरे प्रतिद्वंद्वी दिखाई नहीं दे रहे हैं। वह बोलते नहीं हैं। पता नहीं वह कहां हैं, क्या कर रहे हैं। अगर दोनों उम्मीदवार बोलेंगे तो बहस होगी, बातचीत होगी। लोगों से परिचय कराने का एक मौका होगा। सिर्फ मतदाताओं से नहीं। मुझे वह मौका नहीं मिला।”
टिप्पणी को विस्तार से समझाने के लिए कहे जाने पर सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि उन्होंने यह टिप्पणी इस दृष्टिकोण से की है कि यदि राधाकृष्णन भी बोलते तो एक स्वस्थ बातचीत होती। यह पूछे जाने पर कि वर्तमान परिस्थितियों में भारत के सामने सबसे बड़ी संवैधानिक चुनौती क्या है, रेड्डी ने कहा कि संविधान के सामने सबसे गंभीर चुनौती महान संवैधानिक संस्था- भारत के निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली में “खामी” है। उन्होंने कहा, “अगर ऐसा ही चलता रहा तो इस देश में लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। मेरा यही मानना है।”
“अब विपक्षी दलों का उम्मीदवार हूं”
मुख्यमंत्री रेड्डी द्वारा उन्हें ‘इंडिया’ गठबंधन का उम्मीदवार बताए जाने संबंधी टिप्पणी पर स्पष्टीकरण देते हुए सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि अब वह “विपक्षी दलों के उम्मीदवार” हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें आम आदमी पार्टी (आप) जैसे उन दलों का भी समर्थन प्राप्त है जो ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल नहीं हैं। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ना संविधान के साथ उनकी 53 वर्ष की लंबी यात्रा का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति पद का चुनाव भारत के हालिया इतिहास में अब तक लड़े गए सबसे निष्पक्ष और सभ्य चुनावों में से एक होगा।
उन्होंने कहा, “हमारा देश बहुसंख्यकवादी नहीं है। हमारा समाज बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक है। संविधान किसी को भी शक्ति नहीं देता। संविधान का काम आपकी शक्ति को सीमित करना है।” उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के प्रस्ताव को स्वीकार करने पर उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब देश में संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं अपनी चमक खो रही हैं, आवाज़ उठाना सिर्फ़ उनका ही नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है।