आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह के दूसरे दिन बुधवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि जहां दुख पैदा होता है वहां धर्म नहीं. दूसरे धर्म की बुराई करना धर्म नहीं है. उन्होंने कहा कि संघ जैसा विरोध किसी का नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि संघ की सत्य और सही जानकारी देना ही इस व्याख्यान माला उद्देश्य है. भागवत ने कहा कि संघ में कोई इंसेंटिव नहीं है.
उन्होंने (दादाराव) कहा कि आरएसएस हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन का एक विकास है. संघ प्रमुख ने आगे कहा कि 1925 के विजयदशमी के बाद डॉक्टर साहब ने संघ के प्रारंभ करने पर कहा कि ये संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन है. जिसको हिंदू नाम लगाना है, उसक देश के प्रति जिम्मेदार रहना होगा. भागवत ने कहा किशुद्ध सात्त्विक प्रेम ही संघ है, यही कार्य का आधार है.
‘दुनिया अपनेपन से चलती है, सौदे से नहीं’
उन्होंने कहा कि सत्य और प्रेम ही हिंदुत्व है. दिखते अलग-अलग हैं, लेकिन सब एक हैं. दुनिया अपनेपन से चलती है, सौदे से नहीं. मानव संबंध अनुबंध और लेन-देन पर नहीं, बल्कि अपनेपन पर आधारित होने चाहिए. सरसंघचालक ने कहा कि ध्येय के प्रति समर्पित होना संघ कार्य का आधार है. उपभोग के पीछे भागने से दुनिया नष्ट होने की कगार पर आ जाती है जैसा कि आजकल सब तरफ हो रहा है.
उन्होंने कहा कि अनुकूलता मिली है तो सुविधभोगी नहीं होना है, आराम नहीं करना. सतत चलते रहना है. मैत्री, उपेक्षा, आनंद, करुणा के आधार पर सतत चलते रहना है. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति आज दिखाई देती है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाईं. समाधान केवल धर्म-संतुलन और भारतीय दृष्टि से संभव है.
मीडिया के आधार पर भारत का मूल्यांकन अधूरा
भागवत ने कहा कि बीते 100 वर्षों में संघ की स्थिति बदली है. आज अनुकूलता का वातावरण है. भारत और संघ की साख इतनी है कि समाज सुनता है. आज जितना बुरा दिखता है, उससे कहीं 40 गुना अधिक अच्छा समाज में है. मीडिया रिपोर्ट के आधार पर भारत का मूल्यांकन अधूरा है. दुनिया के अलग-अलग देशों में अपने-अपने प्रवृति और प्रकृति के आधार पर वो अपने अपने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बनाए. नागपुर में कुछ विदेश से अभी लोग आए थे उन्होंने कहा हमारा भी एक आरएसएस होना चाहिए.
दबाव में व्यापार सही नहीं- मोहन भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि आत्मनिर्भरता सब बातों की कुंजी है. अपना देश आत्मनिर्भर होना चाहिए. आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशी के उपयोग को प्राथमिकता दें. जह हम स्वदेशी की बात करते हैं तो इसका अर्थ ये नहीं कि विदेश से संबंध नहीं होंगे. अंतराष्ट्रीय व्यापार तो चलेगा लेकिन उसमें दबाव नहीं होना चाहिए, पारस्परिक होना चाहिए. कोक या स्प्राइट पीने से अच्छा शिकंजी क्यों नहीं पी सकते. स्वदेशी कुछ खाना पीना. हर हफ्ते बाहर जाकर क्यों खाना? अपने राज्य से गाड़ी खरीदें बाहर से क्यों लाना. अंतराष्ट्रीय ट्रेड में स्वेच्छा से संबंध बनाना चाहिए दबाव में नहीं बनाना चाहिए.
‘धर्म की रक्षा करने से सबकी रक्षा होती है’
भागवत ने कहा कि भारत धर्मप्राण देश है दुनिया को समय-समय पर धर्म देना, ये भारत का कर्तव्य है. धर्म में कन्वर्जन नहीं होता, धर्म सत्य तत्व है, स्वभाव है. धर्म की रक्षा करने से सबकी रक्षा होती है. संघ प्रमुख ने कहा कि परिवार में बैठकर सोचें कि अपने भारत के लिए हम क्या कर सकते हैं. अपने देश समाज के लिए किसी भी प्रकार से कोई भी कार्य करना. पौधा लगाने से लेकर वंचित वर्ग के बच्चों को पढ़ाने तक का कोई भी छोटा सा कार्य करने से देश और समाज से जुड़ने का मानस बनेगा.
मंदिर, पानी और श्मशान में कोई भेद न रहे
भागवत ने कहा कि प्रगति की गति को पहचानना पड़ेगा. पर्यावरण संरक्षण के लिए केवल चर्चा नहीं, अपने आसपास छोटे छोटे प्रयास करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता का कार्य कठिन होते हुए भी, करना ही होगा. उसके अलावा कोई उपाय नहीं. अपने आसपास के वंचित वर्ग में मित्रता करना. मंदिर, पानी और श्मशान में कोई भेद न रहे. इस आधार पर किसी को कोई रोकटोक ना हो.