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लोकसभा चुनाव 2024: एनडीए ने 400 से ज्यादा सीटें अपने नाम करने का टारगेट तय किया, INDIA भी एनडीए के इस लक्ष्य को हासिल करने से रोकने के लिए पूरी तरह तैयार, ऐसे में विस्तार से समझते हैं कि किस राज्य में कैसे है समीकरण

16 मार्च, 2024 को चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है. इस बार का चुनाव पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही 7 फेज में होगा और वोटिंग की शुरुआत यानी पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल को होगी.

चुनाव की ये पूरी प्रक्रिया 43 दिनों तक चलने वाली है और मतगणना की तारीख 4 जून की तय की गई है. मतगणना के साथ ही भारत की नई सरकार का ऐलान हो जाएगा. वर्तमान में चुनावी मैदान में उतरने वाली सभी पार्टियां भी अपने उम्मीदवारों का ऐलान करती जा रही हैं.

जहां एक तरफ एनडीए ने 400 से ज्यादा सीटें अपने नाम करने का टारगेट तय किया है तो वहीं विपक्षी दलों का गठबंधन INDIA भी एनडीए के इस लक्ष्य को हासिल करने से रोकने के लिए पूरी तरह तैयार है.

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 में किस राज्य में अभी कैसे है समीकरण और बीजेपी के लिए किन सीटों पर जीत हासिल करना है सबसे बड़ी चुनौती 

1. उत्तर प्रदेश: सत्ता बनाने बिगाड़ने में अहम भूमिका

यूपी सियासी लिहाज से देश का सबसे अहम राज्य है. क्योंकि इसी राज्य से देश को सबसे ज्यादा सासंद (80 सांसद) मिलते हैं. यहां की राजनीति की बात करें तो इस राज्य में राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय दल जातिगण समीकरणों और गुणा-भाग के आधार पर ही चुनाव की वैतरणी पार करते हैं.

उत्तर प्रदेश में पिछले दो चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड जीत मिली थी. इस जीत ने केंद्र में पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी अन्य पार्टी को बहुमत की सरकार बनाने में मदद की थी.

अब वर्तमान की बात की जाए तो पिछले चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के साथ मैदान में उतरी सपा ने इस बार कांग्रेस का दामन थाम लिया है. हालांकि बीजेपी को पूरब में निषाद पार्टी, अपना दल और सुभासपा से काफी उम्मीदें हैं. वहीं पश्चिम में रालोद को साधने के बाद भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर बड़ी जीत की उम्मीद है.

एक तरफ सपा और कांग्रेस ने समाजिक न्याय के पिच पर एनडीए को घेरने की योजना बनाई हुई है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी समाजिक न्याय के साथ साथ राम मंदिर के उद्घाटन से उठे ज्वार के सहारे मैदान फतह करने की जुगत में हैं. इसके अलावा बसपा के अपने दम पर मैदान में उतरने के फैसले ने भी बीजेपी का हौसला बुलंद किया है.

बदले गठबंधन का असर 

यूपी में पूरे पांच साल बाद बीजेपी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी सहयोगी के तौर पर साथ आ गए हैं. ये तो साफ है कि इस गठबंधन का असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा. वहीं बीजेपी के साथ इस बार राष्ट्रीय लोकदल भी लौट आई है. इस तरह इस लोकसभा चुनाव में एनडीए के सामने केवल कांग्रेस और सपा का ही गठबंधन रह गया.

2. बिहार: साथ आना तो कभी अलग हो जाना

इस राज्य में कुछ दिन पहले ही जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी साथ आ गई थीं. जिसके बाद से बिहार में ये गठबंधन काफी मजबूत हो गया है. इस राज्य में लोकसभा की 40 सीटें हैं और इतनी सीटें सत्ता की चाह रखने वाली किसी भी पार्टी के लिए काफी अहम हैं.

साल 2014 में एनडीए ने आम चुनाव में 31 लोकसभा सीटें अपने नाम की थी जबकि 2019 में ये संख्या बढ़कर 39 सीटों तक पहुंच गई और अब इस चुनाव में बीजेपी की कोशिश होगी की वह 2019 के चुनाव परिणाम को दोहराए.

3. जम्मू कश्मीर,लद्दाख: 370 खात्मे का हो सकता है असर

जम्मू-कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों पर पांच चरणों में चुनाव होगा. सूबे में 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई और 20 मई को मतदान की तारीख तय की गई है.

इन दोनों केंद्रशासित प्रदेश में अनुच्छेद 370 हटने के बाद बीजेपी यहां सकारात्मक बदलाव को मुद्दा बनाती रही है. पार्टी ने इस बार घाटी तक पहुंच बनाने की पूरी तैयारी कर ली है. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए अब भी मैदान में दो ताकतवर क्षेत्रीय दल नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी मौजूद हैं. इन दोनों दलों का मुख्य मुद्दा पूर्ण राज्य के दर्जे को साथ 370 की फिर से बहाली है.

इन केंद्रशासित प्रदेशों के चुनाव में इस बार कांग्रेसी दिग्गज रहे गुलाम नबी आजाद भी डेमोक्रेटिक प्रगतिशील आजाद नाम की पार्टी बनाकर मैदान में उतर रहे हैं. इसके अलावा एनडी-पीडीपी ने गठबंधन तोड़ दिया है और कांग्रेस फिलहाल अकेली है.

4.  उत्तराखंड: बीजेपी के लिए हैट्रिक लगाना चुनौती 

उत्तराखंड में साल 2014 से ही लोकसभा की सभी पांचों सीटों पर अपनी पकड़ बना कर रखने वाली पार्टी बीजेपी के सामने अब हैट्रिक लगाने की चुनौती है.  इस राज्य में बीजेपी का मुख्य मुद्दा देवभूमि में किया गया विकास है. मोदी सरकार ने इस राज्य में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देन के भी कई प्रयास किए हैं.

5. हिमाचल प्रदेश: बगावत के कारण संकट में कांग्रेस 

हिमाचल उत्तर भारत में कांग्रेस शासित एकलौता राज्य है. यहां पिछले साल ही कांग्रेस ने बीजेपी को हराकर सत्ता हासिल की थी. हालांकि वर्तमान में इस राज्य में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के खिलाफ की पार्टी में असंतोष है. पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह बगावत की कमान संभाले हुए है. ऐसे में इस लोकसभा चुनाव में जहां एक तरफ बीजेपी के सामने फिर से क्लीन स्वीप करने सबसे बड़ी चुनौती है तो वहीं कांग्रेस के लिए खाता खोलना चुनौती है.

6. पंजाब: किसान आंदोलन का असर 

पिछले पांच सालों में पंजाब की सियासत में बड़ा अंतर आया है. पहले कांग्रेस और अकाली दो ध्रुव थे, लेकिन अब इस राज्य की सत्ता आम आदमी पार्टी के पास है. अकाली दल ने किसान आंदोलन के दौरान ही बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. तो वहीं कांग्रेस के स्तंभ कहे जाने वाले नेता अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ ने कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है.

इस राज्य में वर्तमान में आप विपक्षी गठबंधन INDIA में शामिल है लेकिन सीटों को लेकर अब भी मामला उलझा हुआ ही नजर आ रहा है. इस राज्य में फिलहाल बहुध्रुविय लड़ाई नजर आ रही है.

7. हरियाणा:  JJP और BJP में अलगाव

इस राज्य में हाल ही में भारतीय जनता पार्टी और जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) के रास्ते अलग हो गए. ये दोनों दल साथ मिलकर 4 साल से भी ज्यादा समय से प्रदेश सरकार चला रहे थे, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले दोनों ने एक दूसरे को नमस्ते कर दिया.

जानकारों की मानें तो वे इस कदम को दोनों पार्टियों के लिए जीत की स्थिति बता रहे हैं. हरियाणा में फिलहाल जाट वोटों का सबसे बड़ा दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंदर सिंह हुड्डा को माना जा रहा है.

वहीं बीजेपी और जेजेपी के अलग होने से जाट वोटों का प्रतिशत भी बंट जाएगा, क्योंकि जेजेपी का भी वोट बेस जाट ही है. वहीं, बीजेपी ने ओबीसी नेता को मुख्यमंत्री बनाकर इस वर्ग की बड़ी आबादी तक पहुंचने का रास्ता अख्तियार कर लिया है.

इस चुनाव जहां एक तरफ बीजेपी अपने पुराने प्रदर्शन को ही दोहराना चाहती है वहीं कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न और किसान आंदोलन को मुद्दा बनाकर बीजेपी को घेरने में ली है. हालांकि अन्य राज्यों की तरह ही यहां की विपक्ष भी बिखरा पड़ा है.

8. दिल्ली: दो बार रहा बीजेपी का दबदबा, इस बार कौन 

राजधानी में पिछले दो लोकसभा चुनाव में बीजेपी का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार कांग्रेस और आप ने बीजेपी को हराने के लिए आपस में गठजोड़ कर लिया है. हालांकि पिछले दो चुनावों में आप और कांग्रेस को मिले वोटों का जोड़ भी बीजेपी के वोट से ज्यादा नहीं है, इसलिए वर्तमान में कहना सही नहीं होगा की आप और कांग्रेस के इस गठबंधन का फायदा इन पार्टियों को मिलेगा भी या नहीं.

9. कर्नाटक: नया सियासी समीकरण

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के साथ जाने के बाद, इस बार जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) ने बीजेपी का साथ चुना है. कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद जनता दल सेक्युलर और बीजेपी का गठबंधन हुआ. दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे के समझौते के अनुसार चार सीटें जेडीएस के लिए छोड़ी जाएंगी जबकि 24 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे.

10. महाराष्ट्र: शिवसेना और एनसीपी

महाराष्ट्र में पूरे 25 साल के गठबंधन के बाद साल 2019 में बीजेपी और शिवसेना की राहें अलग हो गईं. यहां सरकार बनाने के लिए शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया और सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष में बैठना पड़ा.

साल 2022 के जून महीने में, भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा दांव चला और शिवसेना दो गुटों में बंट गई. वहीं, जून 2023 में अजित पवार ने एक तरह से कहें तो एनसीपी को हाईजैक कर लिया और अब शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी का एक गुट कांग्रेस के साथ है जबकि अजित पवार का गुट भारतीय जनता पार्टी के साथ.

हिंदी पट्टी लिखेगा जनादेश की पटकथा 

इस चुनाव में सबकी नजर हिंदी पट्टी के 10 राज्यों पर है. इन राज्यों से लोकसभा में 225 सांसद आते हैं और इन्हीं राज्यों में अपने दमदार प्रदर्शन के बदौलत बीजेपी दो बार लगातार लगातार सत्ता में आ चुकी है.

इन दस राज्यों के वोटरों में हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और सामाजिक न्याय के प्रति गहरा आकर्षण रहा है. पिछले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी इन तीनों ही मोर्चे पर बेहतर बूथ प्रदर्शन और बेहतर रणनीति के बदौलत अपने विरोधियों पर भारी पड़ी थी. इन राज्यों में जहां बीजेपी ने अपने दम पर 177 और सहयोगियों के दम पर 203 सीटें अपने नाम की थी वहीं कांग्रेस को इन राज्यों की केवल 5 सीटें ही मिली थी.

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