झारखंड की 81 विधानसभा सीटों पर मतदान खत्म होते ही एग्जिट पोल के नतीजों ने सियासी दलों की बैचेनी बढ़ा दी है. पोल ऑफ पोल्स के बाद सवाल उठ रहा है कि हेमंत सोरेन की सत्ता वापसी होगी या बीजेपी परंपरा को कायम रख पाएगी? झारखंड में सरकार बनाने के लिए 42 विधायकों की जरूरत होती है.
पोल्स ऑफ पोल में ….. हालांकि, पिछले कुछ सालों से जिस तरह एग्जिट पोल के आंकड़े गलत हो रहे हैं, उससे पोल ऑफ पोल्स के आंकड़े सवालों के घेरे में है. ऐसे में इस स्टोरी में एग्जिट पोल से इतर इन 5 आंकड़ों से समझिए झारखंड की पूरी कहानी
1. कांग्रेस के परफॉर्मेस पर सबकुछ निर्भर
ओल्ड ग्रैंड कांग्रेस झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी पार्टी है. समझौते के तहत कांग्रेस 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 2019 में कांग्रेस को 16 सीटों पर जीत मिली थी. इस चुनाव में झामुमो ने 30 सीटों पर जीत हासिल की थी. झारखंड का जादुई आंकड़ा 42 है. 2014 में सबसे खराब स्थिति में भी झामुमो ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी.
अगर कांग्रेस फिसड्डी साबित होती है तो हेमंत सोरेन को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. झारखंड में कांग्रेस जिस तरह से चुनाव लड़ी है, उसको लेकर भी खूब चर्चा हो रही है. पार्टी के बड़े नेता इस बार मैदान में मजबूती उतरते नजर नहीं आए. कांग्रेस अपना चुनाव जेएमएम के भरोसे ही लड़ती दिखी.
2. जयराम कितने असरदार, इससे भी तय होगा
कुड़मी नेता जयराम महतो इस बार अकेले चुनाव लड़ रहे हैं. जयराम खुद बेरमो और डुमरी विधानसभा सीट से मैदान में हैं. दोनों ही सीट वर्तमान में इंडिया गठबंधन के पास है. इसके अलावा जयराम उन सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक हैं.
जयराम अगर 5-10 सीटों पर जेएमएम गठबंधन को नुकसान पहुंचाने में कामयाब होते हैं तो हेमंत से सीएम की कुर्सी दूर चली जाएगी. ऐसे में जयराम के परफॉर्मेंस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है.
81 सीटों वाली झारखंड में दोनों ही पार्टियों के लिए एक-एक सीट काफी महत्वपूर्ण है.
3. आरजेडी-माले कर पाएगी कमाल, नजर इस पर भी
समझौते के तहत इस बार राष्ट्रीय जनता दल 7 और माले 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. दोनों ही पार्टियों को पिछली बार 1-1 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार आरजेडी की तरफ से तेजस्वी यादव ने 19 रैली किए हैं. आरजेडी की सीट अगर इस बार बढ़ती है तो इसका सीधा फायदा हेमंत सोरेन को होगा.
आरजेडी 2014 से पहले 5-5 सीटों पर जीत दर्ज करती रही है. 3 सीटों पर इस बार माले भी मजबूत बताई जा रही है. माले अगर इन सीटों पर जीत दर्ज कर लेती है तो बीजेपी के परफॉर्मेंस में गिरावट आएगी.
4. 68 सीटों पर लड़ रही बीजेपी बचा पाएगी किला?
एनडीए गठबंधन में बीजेपी सबसे ज्यादा 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बीजेपी 2019 में 25 सीटों पर जीतकर मुख्य विपक्ष की भूमिका में चली गई थी. इस बार किसकी सरकार बनेगी, यह बीजेपी के परफॉर्मेंस पर ही निर्भर करेगा. हालिया लोकसभा चुनाव में बीजेपी को विधानसभा की 47 सीटों पर बढ़त मिली थी. हालांकि, लोकसभा के मुकाबले विधानसभा चुनाव का मिजाज अलग होता है.
बीजेपी की चुनौती सबसे ज्यादा उत्तरी छोटानागपुर में है. यहां की करीब 25 सीटों पर बीजेपी को ही बढ़त मिलती रही है, लेकिन इस बार हेमंत सोरेन ने यहां से कल्पना को उतार दिया था. कल्पना गिरिडीह से ही चुनाव कैंपेन संभाल रही थीं.
कहा जा रहा है कि कोयलांचल वाले इन इलाकों में अगर बीजेपी अच्छा नहीं कर पाई तो उसके साथ खेल हो सकता है.
5. महिला वोटरों का रूख तय करेगी रांची की सियासत
झारखंड के पहले चरण के चुनाव में विधानसभा की 43 में से 37 सीटों पर महिलाओं ने पुरुष के मुकाबले ज्यादा मतदान किया. दूसरे चरण के चुनाव में भी महिलाओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया. जेएमएम की मईयां सम्मान योजना पूरे चुनाव में सुर्खियां बटोरती रही.
कल्पना सोरेन की रैली में आने वाली भीड़ की भी खूब चर्चा हुई. ऐसे में झारखंड में कहा जा रहा है कि जिस तरफ महिलाओं ने मतदान किया है, उसी की सरकार बनेगी.
झारखंड में इस बार जाति और धर्म से इतर जेंडर के आधार पर मतदान होने की बात कही जा रही है.