Jammu Kashmir Election Results 2024: हरियाणा में जहां तीसरी बार बीजेपी की जीत की पूरे देश में चर्चा चल रही है वहीं जम्मू-कश्मीर में जयंत चौधरी की आरएलडी की बुरी तरीके से हार भी सुर्खियों में है. पश्चिमी यूपी से सटे हरियाणा को छोड़कर वादियों में जाना क्या जयंत चौधरी का सही कदम था और हरियाणा से दूरी बनाने के पीछे की क्या वजह थी. जम्मू-कश्मीर की ठंडी हवाओं में जयंत चौधरी के हैंडपंप में बर्फ जम गया और वो इतना ठोस हो गया कि हैंडपंप से पानी की एक बूंद को आरएलडी तरस गई.
13 सीटों पर झोंकी पूरी ताकत, 23 स्टार प्रचारक भी हुए फेल
केन्द्रीय मंत्री और आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी की रालोद नई उम्मीद और संभावनाओं के नए द्वार तलाशने के लिए जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ने पहुंची थी. वहां 13 सीटों पर प्रत्याशी उतारे गए और सीटे भी बेहद चौंकाने वाली थीं. जम्मू कश्मीर में आरएलडी ने पट्टन, सोनावारी, बांपोर, गुलमर्ग, लैंगेट, बारामूला, हजरतबल, संबल, राफियाबाद, गांदरबल, तराल, जदीबल सेंट्रल शिलॉंग सहित 13 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन एक भी सीट पर सफलता नहीं मिल सकी. 23 स्टार प्रचारकों की फौज भी उतारी गई, लेकिन न कोई चमत्कार कर पाया और न रालोद के हैंडपंप को मजबूती से जम्मू-कश्मीर में गाड़ पाया.
हरियाणा से दूर जाना क्या जरूरी था या फिर मजबूरी
पश्चिमी यूपी से सटे हरियाणा में विधानसभा चुनाव से जयंत चौधरी की दूरी ने भी कई सवाल खड़े किए. हरियाणा में जयंत चौधरी बीजेपी गठबंधन में कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकते थे. लेकिन बीजेपी ने एक भी सीट नहीं दी, न आरएलडी की तरफ से इसको लेकर कभी कुछ बड़ा कहा गया. इस सवाल का जवाब आज भी राजनीतिक पंडित ढूंढ़ रहें हैं, जबकि पश्चिमी यूपी को छोड़कर जम्मू कश्मीर जैसी जगह पर बीजेपी से अलग हटकर चुनाव लड़ने का फैसला भी चौंकाने वाला था. रालोद की जड़ें जितनी पश्चिमी यूपी में मजबूत हैं, उतनी जम्मू-कश्मीर में नहीं, न कभी कोई बड़ा कैंपेन पार्टी की तरफ से चलाया गया और न कभी वहां की सियासी जमीन में उर्वरक डाला गया, फिर ऐसा क्या था कि जयंत ने पश्चिमी यूपी में सियासी पारा चढ़ाने के बजाय बर्फीली हवाओं से मुकाबला करने की ठान ली. इसको लेकर भी तमाम सवाल खड़े हो रहें हैं, क्योंकि रालोद जिस उम्मीद से जन्मे कश्मीर गई थी वहां हर उम्मीद पर पानी फिर गया और खाता तक नहीं खुला.
हमने अच्छा चुनाव लड़ा, दिसंबर में पंचायत चुनाव लड़ेंगे- रालोद
आरएलडी की जम्मू कश्मीर में हार के बावजूद जम्मू-कश्मीर के रालोद प्रभारी विनय प्रधान के हौंसले बुलंद हैं. बात की गई तो कहने लगे हमने चुनाव अच्छा लड़ा, हमें 15 दिन मिले, लेकिन फिर भी बेहतर प्रदर्शन किया. दिसंबर में पंचायत चुनाव आ रहें हैं अपनी कमियों से सीखकर आगे बढेंगे और मजबूती से चुनाव लड़ेंगे. बड़े-बड़े दिग्गज इस बार चुनाव हार गए, कांग्रेस 6 सीट पर सिमट गई. कांग्रेस का बेस खो जाने से हमारे लिए नई जगह बन रही है और जम्मू कश्मीर में उसी नई जगह पर हम एक दिन हैंडपंप गाडेंगे. हार चुनाव में लगी रहती है, लेकिन हौंसला नहीं हारें है जम्मू-कश्मीर में जड़े जरूर जमाएंगे.
जयंत चौधरी का चुनाव लड़ने का फैसला गलत
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर में जयंत चौधरी के सिपाही कोई कमाल नहीं कर पाए. पार्टी का खाता खुलना तो दूर जिस प्रदर्शन की उम्मीद थी वो भी नजर नहीं आया। बर्फीले इलाके में हैंडपंप चलाने से मतदाताओं ने गुरेज किया. रालोद के प्रदर्शन पर जब हमने वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिजवी से बात की तो कहने लगे जम्मू-कश्मीर चुनाव लड़ना जयंत चौधरी की बड़ी भूल साबित हुई है. न संगठन मजबूत, न कोई पार्टी का बड़ा काम, न जमीन पर जड़ें मजबूत फिर भी चुनाव लड़ना राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है. हरियाणा का कुरूक्षेत्र बीजेपी के लिए छोड़ना और जम्मू में बिना बीजेपी के चुनाव लड़ना भी गलत फैसला था. वेस्ट यूपी से खुद को आगे बढ़ाकर हरियाणा में जमीन तलाशनी चाहिए थी, जम्मू नहीं.
जयंत चौधरी ने जम्मू कश्मीर की सियासी प्रयोगशाला में किया बड़ा प्रयोग
जम्मू कश्मीर में हैंडपंप सूखने पर जब हमने वरिष्ठ पत्रकार संतोष शुक्ला से बात की तो उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर को जयंत चौधरी ने राजनीतिक प्रयोगशाला के तौर पर देखा. उनका प्रयोग भले ही असफल रहा, लेकिन कुछ नया रास्ता भविष्य में उनके लिए जरूर निकल सकता है. जम्मू कश्मीर में चुनाव जीतना आसान नहीं है, लेकिन फिर भी अकेले दम पर जम्मू कश्मीर की ठंडी हवाओं में सर्द मौसम में सियासी गर्माहट लाने की पूरी कोशिश की और अपना इरादा जताया कि वो रालोद को कहां ले जाना चाहते हैं. पीडीपी कोई कमाल नहीं कर पाई और कांग्रेस का पुराना प्रदर्शन भी खराब हो गया, ऐसे में आरएलडी भला कैसे चुनाव जीत सिकती थी, क्योंकि वहां हवा नेशनल कांफ्रेंस की थी.