भारत ने मध्य एशिया में अपनी सैन्य मौजूदगी का एक बड़ा अध्याय खत्म कर दिया है. करीब 25 साल तक ताजिकिस्तान में सक्रिय रहने के बाद भारतीय वायुसेना ने ऐनी एयरबेस (Ayni Airbase) से पूरी तरह वापसी कर ली है. यह भारत का पहला और एकमात्र विदेशी एयरबेस था. यह प्रक्रिया साल 2022 में पूरी हो गई थी, लेकिन अब इसकी जानकारी सार्वजनिक की गई है. जिसकी पुष्टि विदेश मंत्रालय में भी की है. सूत्रों के मुताबिक, तालिबान से डर, रूस और चीन के रणनीतिक दबाव में ताजिकिस्तान ने भारत के साथ इस बेस की लीज बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई.
क्या था ऐनी एयरबेस का महत्व?
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे के पास स्थित इस बेस को गिस्सार मिलिट्री एयरोड्रोम (GMA) भी कहा जाता है. भारत ने साल 2002 में करीब 100 मिलियन डॉलर खर्च कर इस पुराने सोवियत बेस को फिर से विकसित किया था. बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) ने यहां 3,200 मीटर लंबा रनवे बनाया, ताकि बड़े फाइटर जेट्स भी उतर सके. करीब 200 भारतीय तकनीकी और वायुसेना कर्मी यहां तैनात रहे. इस बेस पर कोई स्थायी लड़ाकू विमान नहीं रखा गया था, लेकिन यह भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम ठिकाना था. यहां से भारत अपने दो-तीन हेलीकॉप्टरों के ज़रिए आपदा राहत और मानवीय मिशन चलाता था.
रणनीतिक बढ़त और लोकेशन की अहमियत
ऐनी एयरबेस की असली ताकत उसकी भौगोलिक स्थिति थी. यह बेस अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान तीनों देशों के नज़दीक था. यहां से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) की दूरी केवल 20 किलोमीटर थी. इस वजह से भारत पाकिस्तान के पीछे वाले हिस्से पर नज़र रख सकता था. यह बेस भारत के लिए अफगानिस्तान तक पहुंचने का वैकल्पिक रास्ता भी था, खासकर तब जब पाकिस्तान अपने रास्ते बंद कर देता था.
रूस और चीन का बढ़ता दबाव
2021 में ताजिकिस्तान ने भारत को बताया कि एयरबेस की लीज़ अब आगे नहीं बढ़ाई जाएगी. दरअसल, ताजिकिस्तान में पहले से रूस की 201वीं मिलिट्री बेस मौजूद है, जो रूस का सबसे बड़ा विदेशी ठिकाना है. रूस नहीं चाहता था कि भारत या कोई और देश वहां अलग से सैन्य उपस्थिति बढ़ाए. उधर, चीन ने ताजिकिस्तान के दक्षिण-पूर्वी इलाके में अपनी गुप्त सैन्य चौकी बना ली थी और वहां आर्थिक निवेश भी बढ़ा दिया था. दोनों देशों के दबाव में ताजिकिस्तान ने भारत से इस मामले में दूरी बना ली. 2022 के आखिर तक भारतीय वायुसेना ने वहां से पूरी तरह वापसी कर ली. हालांकि भारत और तजाकिस्तान दोनों देशों के कूटनीतिक और राजनयिक संबंध आज भी ठीक हैं.
तालिबान की वापसी और बदलता माहौल
2021 में जब तालिबान फिर से अफगानिस्तान में सत्ता में आया, तो ताजिकिस्तान सरकार (रहमान शासन) तालिबान के खिलाफ थी. जबकि भारत ने शुरुआत में संतुलन की नीति अपनाई यानी तालिबान से सीधी दुश्मनी नहीं, पर नज़दीकी भी नहीं. ताजिकिस्तान को लगा कि भारत अब तालिबान से कूटनीतिक संपर्क बनाना चाहता है, वहीं ताजिकिस्तान खुद अफगान ताजिक विरोधियों (Anti-Taliban groups) का समर्थन करता रहा है.
तालिबान की वापसी ने भी बदला संतुलन
2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पूरा मध्य एशिया अस्थिर हो गया. ताजिकिस्तान को डर था कि तालिबान की विचारधारा उसके सीमावर्ती इलाकों तक फैल सकती है. भारत उस समय ऑपरेशन देवी के तहत अपने नागरिकों को काबुल से निकालने में लगा था, तालिबान के आने के बाद रूस और चीन ने ताजिकिस्तान पर दबाव बढ़ाया..रूस को इस बदलाव के बाद अपनी 201वीं मिलिट्री बेस को खतरा लगा और चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजनाओं में रुकावट आने का अंदेशा बढ़ गया. ताजिकिस्तान ने इसी दबाव और अफगानिस्तान की अस्थिरता के डर में भारत की एयरबेस पर मौजूदगी खत्म करना ही बेहतर समझा.
भारत की नई रणनीति .. ‘बेस’ से ‘कनेक्टिविटी’ तक
भारत ने अब अपनी रणनीति का फोकस बदल दिया है. अब भारत की नीति मल्टी-अलाइनमेंट यानी कई साझेदारों के साथ सहयोग की है.
- भारत अब उज़्बेकिस्तान और कज़ाखस्तान के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रहा है.
- ईरान के चाबहार पोर्ट में निवेश बढ़ाया जा रहा है, ताकि अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच आसान बने.
- साथ ही इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के जरिए भारत रूस और यूरोप से व्यापारिक संपर्क मजबूत कर रहा है. अब भारत सिर्फ सैन्य ठिकानों पर नहीं, बल्कि कूटनीतिक, आर्थिक और तकनीकी जुड़ाव पर ज़ोर दे रहा है.
ऐनी बेस से वापसी भारत की रणनीतिक लचीलापन (Strategic Flexibility) की मिसाल है. भारत अब अपनी ताकत सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि व्यापार, तकनीक और कूटनीति के जरिए बढ़ा रहा है. तालिबान ने खेल का मैदान बदला, लेकिन रूस और चीन ने नियम लिखे भारत ने अब अपनी चालें नई बिसात पर चलनी शुरू की हैं.
भारत की ताजिकिस्तान से वापसी को पीछे हटना नहीं, बल्कि रणनीतिक दिशा बदलना कहा जा सकता है. अब भारत की नज़र चाबहार से लेकर कज़ाखस्तान तक है जहां उसकी ताकत सैन्य ठिकानों से नहीं, बल्कि कनेक्टिविटी और साझेदारी से तय होगी.
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