भारत में एक ही जेंडर वाले दो लोग शादी नहीं कर सकते. ऐसे रिश्तों को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है. लेकिन अब कांग्रेस और सीपीआई (एम) ने अपने घोषणापत्र में समलैंगिक समुदाय के लिए बड़ी घोषणा करके इस पर बहस छेड़ दी है.
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र ‘न्याय पत्र’ में कहा है कि वह विस्तृत कानूनी परामर्श के बाद ऐसा कानून लाया जाएगा जो LGBTQIA+ समुदाय के नागरिक भागीदारी (सिविल यूनियन) को कानूनी मान्यता देगा. हालांकि कांग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान भी समलैंगिक समुदाय के अधिकारों की बात की थी.
वहीं सीपीआई (एम) ने अपने घोषणापत्र में वादा करते हुए कहा है कि समलैंगिक जोड़ों को शादी करने का अधिकार दिया जाएगा. स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की तर्ज पर कानून बनाया जाएगा ताकि उन्हें आश्रित के तौर पर विरासत मिल सके और तलाक की स्थिति में गुजारा भत्ता मिल सके.
CPI(M) ने LGBTQ+ के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए एक व्यापक कानून बनाने, शिक्षा संस्थानों में आरक्षण देने और उनके खिलाफ अपराधों को गैर LGBTQ+ लोगों के खिलाफ अपराधों की तरह ही गंभीरता से लेने की बात भी कही.
इसके अलावा, पार्टी ने 2016 के शिक्षा संशोधन में भी ये वादा किया है कि वो स्कूलों और कॉलेजों में लिंग पहचान (जैसे कि गे, लेस्बियन, ट्रांसजेंडर) के आधार पर होने वाली हिंसा और समस्याओं को खत्म करने के लिए कदम उठाएगी. साथ ही, ये वादा भी किया कि ऐसे लोगों के लिए सुरक्षित और इस्तेमाल करने में आसान शौचालय बनाए जाएंगे. ये सुविधाएं छात्रों, स्टाफ और टीचर्स सभी के लिए होंगी.
आखिरी कांग्रेस और CPI(M) की ओर से घोषणापत्र में समलैंगिक विवाह पर किए गए वादों पर क्यों हो रही है इतनी चर्चा? इस स्पेशल स्टोरी में विस्तार से समझिए पूरा विवाद.
पहले समझिए LGBTQ+ का मतलब
LGBTQ+ या LGBTQIA+ का मतलब है लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर/क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स और असेक्सुअल/अरोमांटिक. वहीं ‘+’ का मतलब उन लोगों से है जो न तो पूरी तरह से पुरुष/महिला की पहचान रखते हैं और न ही उनकी रुचि सिर्फ पुरुषों या सिर्फ महिलाओं में होती है.
लेस्बियन का मतलब उन महिलाओं से होता है जिन्हें महिलाओं से ही प्यार होता है. गे का मतलब उन पुरुषों से होता है जिन्हें पुरुषों के प्रति ही प्यार होता है. बायसेक्शुअल का मतलब उन लोगों से होता है जिन्हें महिलाओं और पुरुषों दोनों से प्रेम हो सकता है. ट्रांसजेंडर का मतलब उन लोगों से होता है जिनका जन्म के समय लिंग भले ही पुरुष या महिला बताया गया हो, लेकिन वो खुद को असल में दूसरे लिंग के रूप में पहचानते हैं.
क्वीर का मतलब उन लोगों से हो सकता है जो अभी तक अपने लिंग की पहचान तय नहीं कर पाए हैं या फिर वो समाज में आम तौर पर माने जाने वाले लेस्बियन, गे या ट्रांसजेंडर के दायरे में नहीं आते हैं. इंटरसेक्स का मतलब उन लोगों से होता है जिनके शारीरिक लक्षण जन्म के समय से ही स्पष्ट रूप से महिला या पुरुष दोनों में से नहीं होते हैं. एसेक्सुअल का मतलब उन लोगों से होता है जिन्हें किसी के प्रति भी यौन आकर्षण महसूस नहीं होता है.
LGBTQIA का इस्तेमाल 1990 के दशक से होता आ रहा है, लेकिन हाल के सालों में ये समझ बढ़ी है कि और भी कई तरह की यौन अभिविन्यास हैं. इसलिए सभी को सम्मान देने के लिए इसके संक्षिप्त नाम में ‘+’ को शामिल किया गया है.
क्या संविधान में समलैंगिक जोड़ों को शादी करने का अधिकार है?
नवंबर 2022 में दो समलैंगिक जोड़ों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. उनका कहना था कि भारतीय पारिवारिक कानून के तहत शादी न कर पाना समानता, आजादी, सम्मान, बोलने की स्वतंत्रता और खुद को व्यक्त करने जैसे उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है. इस मामले पर सुनवाई के बाद अदालत ने मई 2023 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और 17 अक्टूबर को अपना आखिरी फैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारतीय कानून समलैंगिक जोड़ों को शादी करने की इजाजत नहीं देता है. स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत अलग-अलग धर्मों के लोगों की शादी करने की इजाजत मिलती है. ये कानून सिर्फ एक पुरुष और महिला के बीच ही शादी को स्वीकार करता है. हालांकि कोर्ट ने कहा कि एक समलैंगिक व्यक्ति को भावनात्मक, करीबी या साथ देने वाले किसी भी साथी को चुनने का अधिकार है, भले ही ऐसा रिश्ता शादी न कहलाए.
समलैंगिक विवाह का अधिकार देने में क्या है समस्या?
जब विपरीत लिंग के दो लोग शादी करते हैं तो उन्हें बीमा, बैंकिंग, गोद लेने का अधिकार, उत्तराधिकार, पेंशन, स्वास्थ्य संबंधी जैसे क्षेत्रों में कई तरह के फायदे मिलते हैं. अदालत का मानना था कि इन सभी चीजों को (जो अभी तक सिर्फ विपरीत लिंग के विवाह के लिए हैं) समलैंगिक जोड़ों के विवाह के अधिकार के साथ जोड़ना काफी मुश्किल है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ये तय करना कि सभी के लिए शादी को कानूनी रूप से मान्यता कैसे दी जाए, संसद का काम है. लेकिन ये बताना करना कि कानून के तहत शादी करने का अधिकार है या नहीं, ये पूरी तरह से अदालत के दायरे में आता है.
अदालत के फैसले से ये साफ हो गया है कि समलैंगिक जोड़ों को शादी का अधिकार देना मौजूदा कानून के दायरे में नहीं आता है. इसके लिए नया कानून बनाना होगा या मौजूदा कानूनों में बदलाव करने होंगे. ये बहुत बड़ा कानूनी सुधार का काम है जिसके लिए सिर्फ सोच-विचार ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर चर्चा और सभी जरूरी लोगों से सलाह-मशविरा करना होगा.
समलैंगिक विवाह पर बीजेपी की क्या है रुख
देश में पिछले 10 सालों से सत्ता में बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार है. बीजेपी ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है. बीजेपी सरकार अक्सर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के विरोध में रही है. हाल ही में जब सरकार ने वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल को दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने पर आपत्ति जताई थी, उनका समलिंगिक होना एक वजह बताई गई थी. अगर नियुक्त किए जाते तो सौरभ किरपाल भारत के पहले समलिंगिक न्यायाधीश होते.
समलैंगिक विवाह पर कांग्रेस और CPI(M) के वादे पर चर्चा क्यों
समलैंगिक विवाह पर कांग्रेस और सीपीआई(एम) के घोषणापत्र में वादों पर इसलिए चर्चा हो रही है क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर लंबे समय से बहस चल रही है. अगर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाती है तो LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों के लिए एक बड़ी जीत होगी. इससे उन्हें भी समाज में बराबरी का दर्जा मिल सकेगा. उन्हें संयुक्त संपत्ति रखने और विरासत लेने का अधिकार मिल जाएगा. समाज में उनके खिलाफ भेदभाव कम होगा.
हालांकि केंद्र सरकार और बीजेपी इस मुद्दे पर अभी भी दुविधा में हैं, लेकिन कांग्रेस और सीपीएम के वादों से इस मुद्दे पर बहस गरमा गई है. समलैंगिक विवाह पर सरकार का रुख LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों और नए भारत के लिए अहम होगा.