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उदयपुर से 45 किलोमीटर की दूर स्थित मेनार गांव में धुलंडी के अगले दिन रंगों से नहीं, बल्कि बारूद की होली खेली जाती है, परंपरा 400 वर्षों से भी अधिक पुरानी

देशभर में होली का त्योहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. कई राज्यों में इस त्योहार को मनाने की अलग-अलग परंपराएं हैं. कहीं रंगों और फूलों से होली खेली जाती है, वहीं राजस्थान के उदयपुर के एक गांव में बारूद से लोग होली का त्योहार मनाते हैं. यह परंपरा 400 वर्षों से भी अधिक पुरानी है.

उदयपुर से 45 किलोमीटर की दूर स्थित मेनार गांव में जमराबीज पर जबरी गैर के नाम से अनूठी होली खेली जाती है. धुलंडी के अगले दिन इस गांव में रंगों से नहीं, बल्कि बारूद की होली खेली जाती है. इस दौरान तलवार और बंदूकों की आवाज से युद्ध जैसा दृश्य देखने को मिलता है. इस वर्ष भी यह त्योहार 15 मार्च को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. इस दिन 5 महलों से ओंकारेश्वर चौक पर मेवाड़ी पोशाक में सज धज कर योद्धा हवाई फायर और तोपों से गोला दागते हैं. मध्य रात्रि को तलवारों की जबरी गैर भी खेली जाती है.

मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगल सेना को हराया था

इतिहासकार बताते हैं कि मेवाड़ में मुगलों के अत्याचार से सभी परेशान थे और तभी महाराणा प्रताप ने भी मुगलों से लड़ने के लिए हल्दीघाटी के युद्ध की शुरुआत की. मेनार में भी मुगलों की टुकड़ी हुआ करती थी, जिनके अत्याचार से सभी भय में थे, लेकिन मेनारिया ब्राह्मणों ने योजना बना कर मुगलों को गैर कार्यक्रम में आमंत्रित किया और उस समय ढोल की थाप पर गैर शुरू हुई और ऐसा जोश ग्रामीणों में आया कि गैर ने युद्ध का रूप ले लिया.

बंदूक और तोप की गूंज सुनाई देती है

मेनारवासी घरों में पड़ी बंदूकें और तलवारों की साफ-सफाई करना शुरू कर दिए हैं. जमराबीज पर पूरी रात भर मस्ती और उमंग का आनंद देखने को मिलता है. इस दिन पूरी रात टोपीदार बंदूक और तोप की गूंज सुनाई देती है. वहीं, मेनारिया समाज के लोग जमकर मस्ती करते हैं. बच्चे, बूढ़े और जवान सभी पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर शाम से ही मेनार गांव के बीच चौक में जमा होने लगते हैं. इस दिन गांव में जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ेगा, वैसे-वैसे उत्साह का आनंद होगा.

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