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Election news 2024: राजस्थान में कम वोटिंग के क्या है मायने, वोटिंग प्रतिशत घटा तो कांग्रेस को फायदा या भाजपा  को, जानने के लिए पढ़ें

राजस्थान में पहले चरण की सभी 12 सीटों पर वोटिंग हो गई। मतदान 57.87 फीसदी हुआ। इनमें 57.26% EVM और 0.61% पोस्टल बैलट से मतदान हुआ। चुनाव आयोग के मुताबिक वोटिंग फिगर का फाइनल आंकड़ा शनिवार को आएगा। इन 12 सीटों की तुलना 2009, 2014 और 2019 से करें तो रोचक तस्वीर सामने आ रही है।

2009 में इन 12 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत 48.12 रहा। 2014 में मतदान 13 फीसदी से अधिक बढ़कर 61.66 प्रतिशत पहुंच गया। साल 2019 में ये आंकड़ा थोड़ा और बढ़ कर 63.71 फीसदी तक चला गया।

इस बार ये आंकड़ा 57.87 फीसदी ही रह गया, यानी 2019 के मुकाबले करीब 5.84 फीसदी कम।

पहले चरण में कम वोटिंग प्रतिशत किसकी चिंता बढ़ाएगा?
आमतौर पर राजस्थान में परसेप्शन है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़े तो राज्य सरकार को टेंशन हो जाती है। वहीं लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है। ऐसे में इस बार पहले चरण की सीटों पर कम वोटिंग ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

वोट शेयर में कितना अंतर रहेगा?
सवाल ये भी है कि पहले चरण में कम वोटिंग होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा। सीट जीत-हार का असल खेल वोट शेयर के आंकड़ों में छिपा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में करीब 24 फीसदी का अंतर रहा। इस कारण कांग्रेस पिछले दो बार से ‘जीरो’ पर अटकी है। इस बार कम वोटिंग से कांग्रेस में कुछ आस जगी है।

इस मतदान प्रतिशत का निष्कर्ष क्या है?
इस सवाल का जवाब 26 अप्रैल को दूसरे चरण की बची 13 सीटों के मतदान के बाद ही मिल सकेगा।

2009 : किसानों के नाम पर वोटिंग

(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)

वोटिंग प्रतिशत में स्विंग : 2009 में कांग्रेस का राजस्थान में वोट शेयर 47.2 और भाजपा का 36.6 फीसदी था। कांग्रेस ने तब यहां 20 सीटें जीती थीं और कांग्रेस ने चार। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। कांग्रेस-भाजपा के वोट शेयर में करीब 11 फीसदी का अंतर रहा था।

मुद्दे और उनका असर : 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब UPA सरकार ने किसानों के कर्ज माफ किए थे तो काफी अलग माहौल बन गया था। UPA का पहला टर्म पूरा होने वाला था और कांग्रेस गठबंधन के लिए दूसरे लोकसभा चुनाव में कर्ज माफी की रणनीति काफी कारगर रही।

राजस्थान में भी 75 प्रतिशत जन संख्या कृषि या कृषि से जुड़ी हुई है। जैसे पूरे देश ने किसानों ने नाम पर वोट दिए, वैसा ही असर राजस्थान में दिखाई दिया।

राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार की जमीनों (90-बी) और ललित मोदी के मामलों में छवि खराब हुई। भाजपा के महंगाई, धारा 370 हटाने, राम मंदिर बनवाने के मुद्दे को ज्यादा सफलता नहीं मिली।

अशोक गहलोत के नेतृत्व में नई-नई कांग्रेस सरकार बनी थी। इसका फायदा भी यहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला।

कांग्रेस को मजबूत आलाकमान का भी फायदा मिला
UPA-1 के समय सोनिया गांधी ने जी तोड़ मेहनत की थी और कांग्रेस को मजबूत स्थिति में ले आई थीं। 2009 में भी बतौर कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी काफी अच्छे से सब कुछ संभाल रही थीं। वर्तमान समय की तुलना में कांग्रेस में उस समय काफी अनुभवी नेता थे और आलाकमान मजबूत भी था।

भाजपा में राष्ट्रीय स्तर से ज्यादा मजबूत नेता प्रदेशों में
भाजपा में उस समय राष्ट्रीय स्तर से अधिक मजबूत नेता प्रदेशों में नेतृत्व कर रहे थे। नरेंद्र मोदी गुजरात, शिवराज चौहान मध्य प्रदेश में सरकार चला रहे थे। उत्तराखंड में भी भाजपा अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। राजस्थान में सरकार रिपीट तो नहीं हो रही थी, लेकिन वसुंधरा राजे बड़े नेताओं में शामिल थीं।

2014 : भ्रष्टाचार, आतंकी घटनाओं पर सुस्त निर्णय से गुस्सा और मोदी लहर

(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)

वोटिंग प्रतिशत में स्विंग : 2014 में मोदी लहर के कारण प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर करीब 20 फीसदी तक बढ़ गया। भाजपा के लिए राजस्थान के 55.6 फीसदी वोटर्स ने मतदान किया। वहीं कांग्रेस का वोट शेयर 2009 की तुलना में 17 फीसदी तक गिरकर 30.7 फीसदी पर आ गया। सभी 25 सीटें भाजपा जीत गईं।

राजस्थान में कम वोटिंग के क्या मायने:वोटिंग प्रतिशत घटा तो कांग्रेस को फायदा, बढ़ा तो भाजपा जीती सभी 25 सीटें

राजस्थान में पहले चरण की सभी 12 सीटों पर वोटिंग हो गई। मतदान 57.87 फीसदी हुआ। इनमें 57.26% EVM और 0.61% पोस्टल बैलट से मतदान हुआ। चुनाव आयोग के मुताबिक वोटिंग फिगर का फाइनल आंकड़ा शनिवार को आएगा। इन 12 सीटों की तुलना 2009, 2014 और 2019 से करें तो रोचक तस्वीर सामने आ रही है।

इस बार ये आंकड़ा 57.87 फीसदी ही रह गया, यानी 2019 के मुकाबले करीब 5.84 फीसदी

1999 में NDA की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। 2004 और 2009 में वोटिंग प्रतिशत घटा, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला। (डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)

पहले चरण में कम वोटिंग प्रतिशत किसकी चिंता बढ़ाएगा?
आमतौर पर राजस्थान में परसेप्शन है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़े तो राज्य सरकार को टेंशन हो जाती है। वहीं लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है। ऐसे में इस बार पहले चरण की सीटों पर कम वोटिंग ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

वोट शेयर में कितना अंतर रहेगा?
सवाल ये भी है कि पहले चरण में कम वोटिंग होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा। सीट जीत-हार का असल खेल वोट शेयर के आंकड़ों में छिपा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में करीब 24 फीसदी का अंतर रहा। इस कारण कांग्रेस पिछले दो बार से ‘जीरो’ पर अटकी है। इस बार कम वोटिंग से कांग्रेस में कुछ आस जगी है।

इस मतदान प्रतिशत का निष्कर्ष क्या है?
इस सवाल का जवाब 26 अप्रैल को दूसरे चरण की बची 13 सीटों के मतदान के बाद ही मिल सकेगा।

2009 : किसानों के नाम पर वोटिंग

(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)
(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)

वोटिंग प्रतिशत में स्विंग : 2009 में कांग्रेस का राजस्थान में वोट शेयर 47.2 और भाजपा का 36.6 फीसदी था। कांग्रेस ने तब यहां 20 सीटें जीती थीं और कांग्रेस ने चार। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। कांग्रेस-भाजपा के वोट शेयर में करीब 11 फीसदी का अंतर रहा था।

मुद्दे और उनका असर : 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब UPA सरकार ने किसानों के कर्ज माफ किए थे तो काफी अलग माहौल बन गया था। UPA का पहला टर्म पूरा होने वाला था और कांग्रेस गठबंधन के लिए दूसरे लोकसभा चुनाव में कर्ज माफी की रणनीति काफी कारगर रही।

राजस्थान में भी 75 प्रतिशत जन संख्या कृषि या कृषि से जुड़ी हुई है। जैसे पूरे देश ने किसानों ने नाम पर वोट दिए, वैसा ही असर राजस्थान में दिखाई दिया।

राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार की जमीनों (90-बी) और ललित मोदी के मामलों में छवि खराब हुई। भाजपा के महंगाई, धारा 370 हटाने, राम मंदिर बनवाने के मुद्दे को ज्यादा सफलता नहीं मिली।

अशोक गहलोत के नेतृत्व में नई-नई कांग्रेस सरकार बनी थी। इसका फायदा भी यहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला।

कांग्रेस को मजबूत आलाकमान का भी फायदा मिला
UPA-1 के समय सोनिया गांधी ने जी तोड़ मेहनत की थी और कांग्रेस को मजबूत स्थिति में ले आई थीं। 2009 में भी बतौर कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी काफी अच्छे से सब कुछ संभाल रही थीं। वर्तमान समय की तुलना में कांग्रेस में उस समय काफी अनुभवी नेता थे और आलाकमान मजबूत भी था।

भाजपा में राष्ट्रीय स्तर से ज्यादा मजबूत नेता प्रदेशों में
भाजपा में उस समय राष्ट्रीय स्तर से अधिक मजबूत नेता प्रदेशों में नेतृत्व कर रहे थे। नरेंद्र मोदी गुजरात, शिवराज चौहान मध्य प्रदेश में सरकार चला रहे थे। उत्तराखंड में भी भाजपा अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। राजस्थान में सरकार रिपीट तो नहीं हो रही थी, लेकिन वसुंधरा राजे बड़े नेताओं में शामिल थीं।

2014 : भ्रष्टाचार, आतंकी घटनाओं पर सुस्त निर्णय से गुस्सा और मोदी लहर

(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)
(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)

वोटिंग प्रतिशत में स्विंग : 2014 में मोदी लहर के कारण प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर करीब 20 फीसदी तक बढ़ गया। भाजपा के लिए राजस्थान के 55.6 फीसदी वोटर्स ने मतदान किया। वहीं कांग्रेस का वोट शेयर 2009 की तुलना में 17 फीसदी तक गिरकर 30.7 फीसदी पर आ गया। सभी 25 सीटें भाजपा जीत गईं।

मुद्दे और उनका असर : इस चुनाव में UPA सरकार के घोटाले, बढ़ती महंगाई और आतंकियों के प्रति सख्त रवैया न होना एक बड़ा मुद्दा बने हुए थे। इसका असर हर प्रदेश में देखने को मिला।

गुजरात में 15 साल लगातार सरकार चलाने के बाद हिंदुवादी छवि के चलते नरेंद्र मोदी की पूरे देश में लहर थी। भाजपा ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का चेहरा भी बनाया था।

लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भी नरेंद्र मोदी की आंधी रही और उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए यहां की जनता सभी 25 सीटें भाजपा के खाते में डाल दीं।

कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं में शामिल तत्कालीन सांसद सचिन पायलट जैसे नेता भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे।

मोदी लहर कितनी प्रचंड थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में राजस्थान में 163 विधायकों के साथ भाजपा की वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ऐतिहासिक बहुमत वाली सरकार बनी।

वहीं उस समय राज्य में सरकार चला रही कांग्रेस को मात्र 21 सीटें ही मिली थीं।

2019 : एयर स्ट्राइक से बना माहौल, विधानसभा से उलट लोकसभा के परिणाम

(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)
(डेटा राजस्थान की 25 सीटों का)

वोटिंग प्रतिशत में स्विंग : भाजपा और कांग्रेस, दोनों का वोट शेयर बढ़ा। भाजपा ने 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 58.4 फीसदी वोट शेयर हासिल किए।

वहीं कांग्रेस ने 4 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 34.2 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया। हालांकि, वोट शेयर के बीच भारी अंतर होने के कारण भाजपा को दूसरी बार फिर 25 सीटों पर जीत मिली।

मुद्दे और उनका असर : राजस्थान में कुछ महीने पहले ही जनता ने भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार को खारिज कर दिया था और कांग्रेस को कमान सौंप दी थी। बेरोजगारी जैसे स्थानीय मुद्दे भाजपा पर भारी पड़ गए थे।

लेकिन इससे उलट 2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते देश में पुलवामा हमले के बाद अलग माहौल बन गया था, जिससे राजस्थान भी अछूता नहीं रहा। एयर स्ट्राइक से ऐसा माहौल बना कि राजस्थान में एक बार फिर सभी 25 सीटें भाजपा के खाते में गईं।

राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार थी, लेकिन कोई प्रभाव नजर नहीं आया। स्थानीय मुद्दे 2014 की मोदी की लहर की तरह 2019 में भी गायब हो गए थे।

अब विधानसभा चुनावों का ट्रेंड भी समझिए
राजस्थान में अब हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन का लगभग ट्रेंड बन गया है। वहीं, वोटिंग का प्रतिशत भी यह बताने में कामयाब रहता है कि कौन-सी पार्टी सत्ता में होगी। पिछले चार चुनावों से ऐसा ही देखने को मिल रहा है।

वोट प्रतिशत यदि 3 से 6 फीसदी तक बढ़ता है तो फायदा भाजपा को मिलता है। वहीं, वोट प्रतिशत एक प्रतिशत तक कम हुआ तो कांग्रेस की वापसी होती है।

यह एक पैटर्न है, जो 1998 के इलेक्शन से देखने को मिल रहा है। राजस्थान में वोटिंग का घटना या बढ़ना काफी हद तक रिजल्ट की दिशा तय कर देता है।

2003 : 3.79 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग, भाजपा की वापसी
साल 1998 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में 63.39 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस इलेक्शन में 200 में से 153 सीटें कांग्रेस और 33 सीटें भाजपा ने जीती थीं।

वहीं, 2003 में 67.18 प्रतिशत वोटिंग हुई। यह आंकड़ा 1998 के मुकाबले 3.79 फीसदी था। भाजपा ने इस चुनाव में 120 सीटें जीतकर सरकार बनाईं। कांग्रेस 56 सीटें ही जीत पाईं। इन चुनावों में भाजपा को 39.85 फीसदी और कांग्रेस को 35.65 प्रतिशत वोट मिले।

2008 : 0.93 प्रतिशत कम वोटिंग, कांग्रेस को सत्ता
साल 2003 की तुलना में 2008 के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 0.93 प्रतिशत कम(66.25%) रहा। वोटिंग प्रतिशत गिरने के साथ भाजपा की सीटें भी 120 से घटकर 78 रह गई।

वहीं कांग्रेस 56 सीटों से बढ़कर 96 सीटों पर पहुंच गई। कांग्रेस को भाजपा से 1.32 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले थे। हालांकि स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन फिर भी कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही।

2013 : 8.79 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग, भाजपा लौटी
साल 2013 में 75.04 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो 2008 के मुकाबले 8.79 फीसदी ज्यादा थी। इस चुनाव में भाजपा को 163 सीटें मिलीं। वहीं कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई।

भाजपा का वोट शेयर 45.50 प्रतिशत व कांग्रेस का 33.31 फीसदी रहा। पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस का वोट शेयर केवल 2.29 प्रतिशत गिरा, लेकिन सीटें 75 कम हो गईं। वहीं, भाजपा की 85 सीटें और 8.58 फीसदी वोट शेयर बढ़ गया।

2018 : वोटिंग प्रतिशत गिरा, कांग्रेस जीती
वोटिंग ट्रेंड से सत्ता बदलने के संकेत इस बार भी सही साबित हुए और कांग्रेस की वापसी हुई। साल 2013 (75.04%) की तुलना में 2018 (74.06%) में वोटिंग प्रतिशत 0.98 फीसदी कम रहा।

इस साल कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर वापसी की, तो भाजपा को 73 सीटें मिलीं। भाजपा को इस चुनाव में 39.08 प्रतिशत और कांग्रेस को 40.64 फीसदी वोट मिले।

2023 : वोटिंग बढ़ी तो लौट आई भाजपा
पिछले वर्ष दिसंबर में हुई विधानसभा चुनाव की वोटिंग और सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड जारी रहा। वोटिंग पर्सेंट ने मामूली उछाल लिया तो कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

विधानसभा चुनाव, 2023 में करीब 74.96 प्रतिशत वोटिंग हुई, जो विधानसभा चुनाव 2018 से मात्र 0.9 प्रतिशत ज्यादा रही थी। 2018 के चुनाव में 74.06 प्रतिशत मतदान हुआ था। राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज बना रहा और भाजपा ने सरकार बना ली।

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