गंगा समेत तमाम नदियां कहीं न कहीं जाकर मिल जाती है. यानी सभी नदियों का कहीं न कहीं संगम होता है. सभी नदियों के अपने संगम होते हैं, लेकिन इन सब में त्रिवेणी संगम का बहुत अधिक महत्व है. त्रिवेणी संगम में तीन नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती आपस में मिलती हैं. इन तीनों नदियों का मिलन प्रयागराज के संगम में होता है. प्रयागराज एक तीर्थस्थल है
प्रयागराज में होने वाला गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम विश्व प्रसिद्ध है. हिंदू संस्कृति में गंगा और यमुना के बाद सबसे अधिक महत्व सरस्वती को दिया गया है. हिंदू धर्म में माना गया है कि जितने भी तीर्थस्थल हैं, वो नदियों के तट पर हैं. इसमें भी जहां तीन नदियां आपस में मिलती हैं, उस जगह का खास महत्व है. प्रयागराज में तीनों नदियों के मिलने का नजारा देखा जा सकता है.
प्रयाग है तीर्थों का राजा
प्रयागराज के संगम में गंगा और यमुना अलग दिखती हैं, लेकिन सरस्वती भी उसमें मिली हुई हैं. सरस्वती अलग नजर नहीं आती हैं. सरस्वती नदी को अदृश्य माना गया है. प्रयाग को तीर्थों का राजा माना गया है. ऐसा कहा गया है कि जो भी महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ जैसै आयोजनों पर त्रिवेणी संगम में स्नान करता है, उसे मोक्ष मिल जाता है. महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ में एक स्नान का विशेष महत्व होता है, वो है शाही स्नान. महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन के दौरान शाही स्नान के लिए अलग-अलग अखाड़ों के संत प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में स्नान करने पहुंचते हैं.
क्यों स्नान को कहा जाता है शाही
महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ जैसै आयोजनों में साधु संत को सम्मान के साथ स्नान कराया जाता है. इसलिए ही इसे शाही स्नान कहा जाता है. महाकुंभ या कुंभ के दौरान ग्रह और नक्षत्रों की विशेष स्थिति के कारण जल चमत्कारी हो जाता है. शाही स्नान तभी किया जाता है, जब ग्रह नक्षत्र बेहद शुभ स्थिति में होते हैं. ये स्नान करने से सभी पापों का नाश होता और आत्मा शुद्ध होकर मोक्ष प्राप्ति की ओर चली जाती है. बता दें कि, इस बार प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान अलग-अलग अखाड़ों के साधु संत जुटने वाले हैं.