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चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर अब तक कोई बयान नहीं दिया , जाने वजह

चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर अब तक कोई बयान नहीं दिया है. पाकिस्तान ने 9 अक्टूबर को काबुल, खोस्त, जलालाबाद और पक्तिका में बडे स्तर पर एयर स्ट्राइक किए थे. वहीं अफगानिस्तान ने पाकिस्तानी हमलों के जवाब में शनिवार देर रात डुरंड लाइन के पास पाकिस्तानी सैन्य चौकियों पर हमला किया.

तालिबान सरकार ने दावा किया कि उसने 58 पाकिस्तानी सैनिक मार गिराए. वहीं पाकिस्तान का कहना है कि उसने 200 से ज्यादा तालिबानी लड़ाके मारे हैं, जबकि उसके 23 जवान मारे गए और 29 घायल हुए. चीन दोनों देशों में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. उसकी सीमाएं दोनों ही देशों से लगती है. इस चुप्पी के पीछे चीन की रणनीतिक मजबूरियां और आर्थिक हित छिपे हैं.

सुरक्षा कारणों की वजह से दखल नहीं

चीन को अपने शिनजियांग प्रांत में सक्रिय उइघुर मुस्लिम उग्रवादियों से खतरा है और वह नहीं चाहता कि तालिबान ऐसे चरमपंथियों को समर्थन दे. तालिबान ने चीन को भरोसा दिया है कि वे उइघुर उग्रवादियों को पनाह नहीं देंगे, इसलिए चीन तालिबान से रिश्ते मजबूत बना रहा है. दूसरी ओर, पाकिस्तान लगातार चाहता है कि तालिबान अफगानिस्तान में मौजूद TTP के ठिकानों पर कार्रवाई करे, लेकिन चीन ने इस मुद्दे पर कभी तालिबान की आलोचना नहीं की.

2021 में जब अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता संभाली, तब चीन और पाकिस्तान दोनों ने तालिबान से अपील की थी कि वे अफगानिस्तान में मौजूद उइगर आतंकियों और TTP के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे. चीन तालिबान को अलग-थलग नहीं करना चाहता और न ही पाकिस्तान को नाराज करना चाहता है. इसलिए वह परदे के पीछे से दबाव बना रहा है, लेकिन सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कह रहा.

अफगानिस्तान तक CPEC को बढ़ाने की मंशा

चीन की दिलचस्पी अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों और आर्थिक निवेश में भी है. उसने तालिबान सरकार के साथ कई अरब डॉलर के तेल और खनन समझौते किए हैं. इसके अलावा चीन चाहता है कि उसकी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और CPEC परियोजना को अफगानिस्तान तक विस्तार मिले. लेकिन TTP की मौजूदगी और अफगान-पाक तनाव इस योजना को खतरे में डाल सकते हैं. इसलिए चीन यह नहीं चाहता कि किसी भी पक्ष से उसके रिश्ते बिगड़े.

अफगानिस्तान के साथ 54 करोड़ डॉलर की डील

अगर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच खुला युद्ध हुआ, तो सबसे बड़ा नुकसान चीन को ही होगा क्योंकि उसका अरबों डॉलर का निवेश खतरे में पड़ जाएगा. इसलिए चीन दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करने की भूमिका में है, लेकिन बहुत सोच-समझकर कदम उठा रहा है.

चीन 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान शासकों के साथ कई समझौते किए. पिछले साल उत्तरी अफगानिस्तान में अमु दरिया बेसिन से तेल निकालने के लिए तालिबान सरकार के साथ 54 करोड़ डॉलर का समझौता किया. इसके तीन महीने बाद चीन ने देश के विशाल लिथियम भंडारों के खनन के लिए 10 अरब डॉलर के निवेश की पेशकश की.

पाकिस्तान के साथ CPEC प्रोजेक्ट

CPEC (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का सबसे अहम प्रोजेक्ट है. अप्रैल 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने $46 बिलियन के CPEC प्रोजेक्ट लॉन्च किया था. इसकी लागत अब बढ़कर $62 बिलियन (करीब 5.2 लाख करोड़ रुपए) हो गई है.

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