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चेन्नई: फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ पर बैन लगाने की मांग को लेकर मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल, रोक लगाने की मांग की वजह क्या है?

नई दिल्ली/चेन्नई: फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। अब इस पर बैन लगाने की मांग को लेकर मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के निर्देश और दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी की सलाह पर, जमीअत उलमा तमिलनाडु ने इस फिल्म के रिलीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर यह याचिका दाखिल की है। इस याचिका का क्रमांक 105184/2025 है।

रोक लगाने की मांग की वजह क्या है?

याचिकाकर्ता को ओर से अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह राज्य सरकार, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को निर्देश दे कि फिल्म की रिलीज को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए और इसकी विषयवस्तु की कानूनी दायरे के भीतर पुनः समीक्षा कर आवश्यक संशोधन किए जाएं। याचिकाकर्ता ने आशंका जताई है कि फिल्म की विषयवस्तु अत्यधिक भड़काऊ और घृणास्पद है, जो देश में सांप्रदायिक सद्भाव को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। ट्रेलर और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, फिल्म में एक संवेदनशील सांप्रदायिक घटना को सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत किया गया है और मुसलमानों को एक कट्टरपंथी, निर्दयी और आतंकवाद से जुड़े समुदाय के रूप में प्रदर्शित किया गया है।

क्या दारुल उलूम देवबंद को निशाना बनाया?

याचिका में कहा गया है कि इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि फिल्म के ट्रेलर में दारुल उलूम देवबंद जैसे प्रतिष्ठित धार्मिक संस्थान को निशाना बनाया गया है। “सर तन से जुदा” के नारे को सीधे देवबंद से जोड़ते हुए, एक ऐसे व्यक्ति का चित्रण किया गया है जो दारुल उलूम के एक प्रमुख जिम्मेदार से मिलता-जुलता है, जो केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय के एक शैक्षणिक और आध्यात्मिक केंद्र पर गंभीर हमला है। फिल्म का सबसे आपत्तिजनक पहलू यह है कि भाजपा की एक पूर्व प्रवक्ता द्वारा पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शान में उस आपत्तिजनक बयान को शामिल किया गया है, जिस पर वैश्विक पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड पर लगाया ये आरोप

याचिकाकर्ता का कहना है कि हालांकि भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन इस स्वतंत्रता के लिए सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और राष्ट्रीय एकता की सुरक्षा के लिए संवैधानिक सीमाएं भी निर्धारित हैं। उन्होंने पक्ष रखा है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने फिल्म के मूल्यांकन और मंजूरी देने में अपनी संवैधानिक और कानूनी जिम्मेदारियों का पालन करने में लापरवाही बरती है। हाजी हसन अहमद ने बताया कि 4 जुलाई 2025 को राज्य के अधिकारियों को फिल्म की रिलीज रोकने के लिए लिखित रूप से अनुरोध किया था कि फिल्म की रिलीज रोकी जाए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। हमने इस संबंध में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम के परामर्श और निर्देश पर अदालत का रुख किया है और उससे तत्काल अंतरिम आदेश जारी करने की अपील की है, ताकि फिल्म को सिनेमाघरों, ओटीटी प्लेटफार्मों या सोशल मीडिया पर तब तब तक प्रसारित न किया जाए जब तक कि इसकी विषयवस्तु की कानूनी रूप से पुनः जांच करके आवश्यक संशोधन न कर दिया जाए।

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