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बांग्लादेश: शेख हसीना सरकार इस वक्त भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की दोहरी मार झेल रही, आरक्षण, बेरोजगारी और गुस्सा…

भारत में आरक्षण की व्यवस्था ऐसी कि सरकारी नौकरी पाने के लिए यूपीएससी तक में लोग फर्जीवाड़ा करते हैं. महाराष्ट्र कैडर की आईएस पूजा खेड़कर इसका बड़ा उदाहरण हैं, जिन्होंने कथित तौर पर नौकरी के लिए दिव्यांगता से लेकर के ओबीसी होने तक गलत सर्टिफिकेट लगा दिया. बांग्लादेश में सरकारी नौकरी में आरक्षण को लेकर हंगामा हुआ है. पूरे देश में हिंसा हुई और इसका सबसे ज्यादा असर ढाका में हुआ है. यहां पर अभी तक 300 से ज्यादा लोग इस हिंसा में घायल हुए, जबकि 6 छात्रों के मारे जाने की खबर है.

यहां पर इतनी ज्यादा हिंसा हो रही है कि सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है. बांग्लादेश के युवाओं का कहना है कि सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर मिलनी चाहिए ना कि आरक्षण के आधार पर. हालांकि बांग्लादेश की सरकार ने साल 2018 में इस आरक्षण को समाप्त कर दिया था, लेकिन इसके बाद इसी साल जून में ढाका हाईकोर्ट ने इस आरक्षण को फिर से बहाल कर दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक भी लगा दी. बावजूद इसके अब भी बांग्लादेश में इस आरक्षण के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

आरक्षण का विरोध क्यों?

बांग्लादेश में इस आंदोलन की वजह 1971 के मुक्ति संग्राम में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के लोगों को मिलने वाला आरक्षण है. बांग्लादेश की आजादी के आंदोलन में हिस्सा ले चुके लोगों के बच्चों के लिए 30% आरक्षण की व्यवस्था है. जाहिर है जो इस आरक्षण के लाभार्थी हैं, वो इस व्यवस्था के समर्थक हैं. जिन्हें इस आरक्षण से नुकसान उठाना पड़ता है वो खिलाफ हैं. यही तबका आंदोलन कर रहा है.

Police Fire Tear Gas Shells And Rubber Bullets To Disperse Students

छात्रों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागती पुलिस. फोटो- पीटीआई

बांग्लादेश के इस आंदोलन के 2 गुट हैं. एक सत्ताधारी अवामी लीग से जुड़ा छात्र संगठन बांग्लादेश छात्र लीग, दूसरा विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी से जुड़ा छात्र संगठन छात्र दल और जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा छात्र संगठन छात्र शिविर. सत्ताधारी छात्र संगठन का आरोप है कि विपक्षी दलों से जुड़े छात्र संगठन आंदोलन की आग को हवा दे रहे हैं. जबकि कुछ छात्र ऐसे भी हैं, जो इस आंदोलन को अपने हक की आवाज बता रहे हैं.

किसको कितना आरक्षण?

बांग्लादेश में बेरोजगारी चरम पर है. कॉलेज और यूनिवर्सिटी से बड़ी-बड़ी डिग्री लेने के बावजूद बांग्लादेशी लड़के-लड़कियों के पास नौकरी नहीं है. यहां की सरकारी नौकरियों में 56% हिस्सा आरक्षित श्रेणी के लोगों के पास चला जाता है. ऐसे में नौकरियों का सिर्फ 44% हिस्सा ही अनारक्षित श्रेणी के पास बचता है.

  1. बांग्लादेश में 30% सरकारी नौकरियां स्वंतत्रता सेनानियों के बच्चों और पोते-पोतियों के लिए आरक्षित हैं.
  2. 10% आरक्षण महिलाओं के लिए है.
  3. पिछड़े जिलों के लिए 10% जिला कोटा है.
  4. जातीय अल्पसंख्यक जैसे- संथाल, पांखो, त्रिपुरी, चकमा और खासी के लिए 5% आरक्षण है.
  5. एक फीसदी आरक्षण विकलांगों के लिए है.

बांग्लादेश के संस्थापक और प्रथम राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान ने आजादी के अगले साल यानी 1972 में स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरियों में करीब एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की थी. इसके खिलाफ आगे चलकर बढ़ती आबादी और बेरोजगारी की वजह से आवाजें उठनी शुरू हो गईं.

Students Clash Over Quota System At Jahangir Nagar University At Savar Outside Dhaka

सावर में जहांगीर नगर विश्वविद्यालय में कोटा प्रणाली को लेकर छात्रों में झड़प. फोटो- पीटीआई

लोगों ने उग्र विरोध-प्रदर्शन किए तो 2018 में शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी और प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मुक्ति संग्राम में शामिल लोगों के परिजनों के लिए 30% आरक्षण की व्यवस्था पर रोक लगा दी. इस साल 5 जून को ढाका हाई कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए आरक्षण व्यवस्था फिर से लागू करने का आदेश दिया.

शेख हसीना के बयान से भड़के आंदोलनकारी

इस अदालती आदेश के बाद 1 जुलाई से एक बार फिर विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया. इसी बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना के एक बयान ने आंदोलनकारियों को और भड़का दिया. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा, ‘अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा तो किसे मिलेगा? रजाकारों के पोते-पोतियों को?’ रजाकार बांग्लादेशी समाज में एक गाली की तरह है. रजाकार शब्द का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था. ऐसे में अब आंदोलनकारी (छात्र-छात्राएं) खुद को रजाकार बताने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं.

बांग्लादेश के बदतर होते हालात को देखते हुए 10 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी तौर पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था को निलंबित कर दिया था. बावजूद इसके विरोध-प्रदर्शन रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. आलम ये है कि एक तरफ छात्रावासों में सत्ताधारी और विपक्षी दलों से जुड़े छात्र संगठनों में हिंसक झड़प हो रही है तो दूसरी तरफ सड़क पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों में खूनी टकराव हो रहा है. ये आंदोलन कब रुकेगा, कोई नहीं जानता. फिलहाल, आंदोलनकारियों को रोकने के लिए दंगा रोधी पुलिस और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के जवानों को राजधानी ढाका समेत तमाम शहरों में चप्पे-चप्पे पर तैनात किया गया है.

शेख हसीना के चपरासी के पास हेलीकॉप्टर

बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ आंदोलन की ये आग यूं ही नहीं भड़की. इस देश की करीब 17 करोड़ आबादी में से 3 करोड़ 20 लाख से ज्यादा नौजवान बेरोजगार हैं. यही वजह है कि उन्हें आजादी के 53 साल बाद भी स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण नागवार गुजर रहा है. बांग्लादेश में बेरोजगारी के बीच हाल के दिनों में भ्रष्टाचार के भी कई सनसनीखेज मामले सामने आए हैं. विपक्षी दलों के अनुसार, अवामी लीग की मौजूदा सरकार में बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी हो रही है. आरोपों के मुताबिक, प्रधानमंत्री शेख हसीना के करीबी ही करोड़ों के भ्रष्टाचार में शामिल हैं.

मेहमानों को पानी देने का काम करता था जहांगीर

ताजा मामला प्रधानमंत्री शेख हसीना के अर्दली रहे जहांगीर आलम नाम के इस आदमी से जुड़ा है. बांग्लादेशी अखबार ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक, जहांगीर आलम प्रधानमंत्री शेख हसीना के घर पर मेहमानों को पानी देने का काम करता था. लेकिन अब उसके पास 284 करोड़ की अवैध संपत्ति होने की जानकारी सामने आई है. उसके पास एक प्राइवेट हेलीकॉप्टर भी है, वह कहीं आने-जाने के लिए इसी हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करता था. ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, जहांगीर आलम पहले ही अमेरिका भाग चुका है. इस खुलासे के बाद प्रधानमंत्री हसीना ने फौरी कार्रवाई के आदेश दिए हैं. बांग्लादेश में पूर्व सेना प्रमुख, पुलिस अधिकारी, टैक्स अधिकारी और कई सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले सामने आए हैं. इसी फेहरिस्त में प्रधानमंत्री के नौकर का भी नाम है.

Sheikh Hasina

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना.

नौकर के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने पर खुद प्रधानमंत्री हसीना ने कहा, ‘वो आदमी जो मेरे घर में चपरासी के रूप में काम करता था. अब उसके पास 400,00,00,000 टका ($34 मिलियन डॉलर) हैं. वो हेलीकॉप्टर के बिना नहीं चल सकता, उसने इतना पैसा कैसे कमाया? ये जानने के बाद मैंने तुरंत कार्रवाई की’. शेख हसीना के नौकर के पास जितनी संपत्ति मिली है, एक औसत बांग्लादेशी को इतना पैसा कमाने में 13,000 साल से ज्यादा लग जाएंगे.

बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय 2.11 लाख रुपये है

वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, 17 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय 2.11 लाख रुपये है. ऐसे में प्रधानमंत्री के एक नौकर के पास ही करीब 300 करोड़ की संपत्ति मिलने पर विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं. विपक्षी दल BNP का आरोप है कि जब पीएम के नौकर के पास इतनी दौलत है तो उसके मालिक के पास कितना पैसा होगा? इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.

इसी साल जनवरी में शेख हसीना लगातार चौथी बार बांग्लादेश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुई थीं. इसके 3-4 महीने बाद मई में ही भ्रष्टाचार के कई हाई-प्रोफाइल मामलों ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया है. बांग्लादेश के भ्रष्टाचार विरोधी आयोग ने पूर्व राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख बेनजीर अहमद के खिलाफ जांच शुरू की है. उनके खिलाफ करोड़ों रुपये की संपत्ति रखने का आरोप है. पूर्व सेना प्रमुख अजीज अहमद के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं.

बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार इस वक्त भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की दोहरी मार झेल रही है. सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के दावे कर रही है, लेकिन बेरोजगारी के शिकार इन बांग्लादेशी नौजवानों का आरक्षण विरोधी आंदोलन शेख हसीना के लिए बड़ी चुनौती बन गया है.

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