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Ameen Sayani: रेडियो सुनने वाले तमाम श्रोता, एक नाम जिसे कभी नहीं भूल सकते हैं, वो नाम है अमीन सयानी का, जिनका हृदय गति रूकने से निधन हो गया.

अमीन सयानी एक ऐसा नाम जिसने लोगों के दिलों पर अपनी आवाज के दम पर 5 दशकों तक राज किया. आवाज के कद्रदानों के लिए आज रोने का दिन है. क्योंकि जिस मखमली आवाज को सुनकर बड़े हुए थे, वो खामोश हो चली है. अमीन सयानी की जिंदगी का सफर उनकी आवाज की तरह शानदार रहा है.

21 दिसंबर 1932 मुंबई में जन्मे अमीन सयानी, एक अदबी और जिंदादिल इंसान थे. उनका करियर, कॉलेज के दिनों में ही शुरू हो गया था. वे मुंबई के सेंटस जेवियर्स कॉलेज के मेधावी छात्रों में शुमार थे. उस जमाने में इस कॉलेज में म्यूजिकल प्रोग्राम की रिकॉर्डिंग हुआ करती थी. संगीत, फिल्म और नाटकों से उनका पहला परिचय यहीं से हुआ.

सम्मान

2009 पद्म श्री
2006 लिविंग लीजेंड अवॉर्ड
1991  इंडियन सोसाइटी ऑफ एटवरटाइजमेंट की तरफ से गोल्ड मेडल
1992 पर्सन ऑफ द ईयर अवॉर्ड
2003 कान हॉल ऑफ़ फेम अवॉर्ड

23 जुलाई 1927 में मुंबई और कोलकाता से भारत में रेडिया प्रसारण का अगाज हुआ. आरंभ में इसे इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस कहा जाता था. 1930 में रेडियो का राष्ट्रीयकरण हुआ. 1956 में ऑल इंडिया रेडियो को आकाशवाणी नाम दिया गया.

देश में फिल्म और कलाकारों को लेकर दीवानगी बढ़ने लगी थी. उस समय फिल्मी गीतों के सुनने के लिए रेडियो सिलोन को ही ट्यून करते थे. वजह थी, उस दौर में आकाशवाणी ने फिल्मों गीतों पर प्रतिबंध लगा रखा था. इसके पीछे तर्क था कि इससे युवा पीढ़ी पर गलत प्रभाव पड़ सकता है.

लेकिन कुछ समय बाद ‘आकाशवाणी’ को अपनी इस गलती का अहसास हुआ और 3 अक्टूबर 1957 को ‘विविध भारती’ का प्रसारण हुआ जहां पर फिल्मी गीत सुनवाये जाते थे. लेकिन इससे पहले अमीन सयानी ‘रेडियो सिलोन’ पर बिनाका गीतमाला कार्यक्रम लेकर आ चुके थे. अमीन सयानी और ‘बिनाका गीतमाला’ एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे. बिनाका गीतामाला से अमीन सयानी की ख्याति देश के कोने-कोने में पहुंच चुकी थी.

1952 में पहली बार बिनाका गीतमाला कार्यक्रम ऑन इयर हुआ, और अपने पहले ही प्रसारण से इसने लोकप्रियता के कीर्तमान रचने शुरू कर दिये थे. अमीन सयानी ने अपनी आवाज और खास शैली से इसे लोगों के बीच इस कदर लोकप्रिय बना दिया था कि लोग सबकुछ छोड़कर इससे रेडियो के समाने बैठ जाते थे. बाद में इसे विविध भारती पर भी प्रसारित किया गया. इस लोकप्रिय कार्यक्रम को बाद ‘सिबाका गीतमाला’ और ‘कोलगेट गीतमाला’ के नाम से प्रसारित किया गया.

दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला कार्यक्रम
बिनाका गीतमाला को रेडियो जगत में सबसे लंबा चलने वाला कार्यक्रम माना जाता है. ये 1952 से 1994 तक रेडियो पर प्रसारित किया गया.

अमीन सयानी बने आधी सदी की आवाज
रेडियो पर अमीन सयानी की आवाज का जादू 50 सालों तक रहा, यही कारण है उन्हें आधी सदी की आवाज भी कहा जाता है. रेडियो के लिए दिए गए योगदान को लेकर उन्हे पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया.

देश के पहले रेडियो जॉकी
अमीन सयानी देश के पहले रेडियो जॉकी माने जाते हैं. बतौर करियर आज भी ये युवाओं में खासा लोकप्रिय है. रेडियो में करियर बनाने वालों के लिए अमीन सयानी किसी विश्वविद्यालय से कम नहीं हैं. आवाजस की दुनिया में नाम कमाने वाला शायद ही कोई शख्स हो जिसने अमीन सयानी की आवाज और शैली का अध्ययन न किया हो.

इंटरव्यू की कला को परिष्कृत किया
अमीन सयानी आवाज के जादूगार थे. आवाज पर उन्होने काफी काम किया था. किस शब्द को किस तरह से बोलना चाहिए, कहां पर विराम लेना चाहिए, शब्दों के चयन से लेकर उसके प्रस्तुतिकरण पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी. हिंदी, ऊर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग आवाज की लय के साथ बे बहुत सुंदर ढंग से पेश करते थे. जब वे किसी का साक्षात्कार करते तो बिना दिखावे, अंलकार और विशेषणों का प्रयोग कर वे सीधे और सरल ढ़ंग से सामने वाले से प्रश्न करते थे. यही कारण है कि आज भी उनकी आवाज और शैली के लोग दीवाने हैं. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि लोग आज भी उनकी कॉपी या मिमिक्री करते नजर आते हैं.

बहनों और भाइयों 
अमीन सयानी जब रेडियो के माइक से अपनी खनकती आवाज में बहनों और भाइयों…कहते तो पूरा देश झूम उठता था. उनकी आवाज में मिठास, सादगी और पवित्रता का बोध होता था, जो हर उम्र-वर्ग वालों को मदहोश कर देता था. आधे घंटे का कार्यक्रम कब समाप्त हो जाता था पता ही नहीं चलता था. दिल्ली-मुंबई और क्या गांव देहात उनकी आवाज सुनकर लोग थम से जाते थे.

अमीन सयानी की आवाज में गीतामाला सुन भूल जाते थे गम
जिस समय अमीन सयानी ने रेडियो का दामन था, उस समय देश में कई तरह की समस्याएं और दर्द थे. आजादी के साथ विभाजन का दर्द भारतीयों के सीने से गया नहीं था. 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गई लकीर ने जैसे आत्मा और शरीर को जुदा कर दिया था. आजीविका चलाना आसान नहीं था. लोग संघर्ष कर रहे थे. ऐसे में रेडियो पर अमीन सयानी गीतों की माला पिरोके, लोगों के गम और थकान को दूर करने का काम कर रहे थे.

मेरी आवाज ही पहचान है…
अमीन सयानी की आवाज में सच्चे भारत की झलक मिलती है. जिसमें गांव का बांकपन, गंगा जमुनी तहजीब, आधुनिकता की चमक और विकसित होते भारत की बुंलद तस्वीर नजर आती है. इसलिए ये कहना गलत न होगा कि अमीन सयानी की आवाज ही उनकी पहचान है….गर याद रहे.

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