जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद भारतीय जनता पार्टी ने तमिलनाडु के सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति की कुर्सी देने का फैसला किया है. 27 दिनों तक चले सियासी अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राधाकृष्णन के नाम की घोषणा की है. बहुमत के आधार पर उपराष्ट्रपति पद के लिए राधाकृष्णन का चुना जाना तय है.
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद सियासी गलियारों में बिहार, बंगाल से आने वाले या किसी जाट समुदाय के नेता यह पद देने की चर्चा थी, लेकिन बीजेपी ने तमिलनाडु के गाउंडर बेल्लार्स समुदाय से आने वाले सीपी राधाकृष्णन के नाम पर आखिरी मुहर लगाई. आखिर क्यों और कैसे, डिटेल में पढ़िए
– बिहार में जेडीयू के साथ गठबंधन है. पार्टी के हरिवंश के पास पहले से उपसभापति का दायित्व है. हरिवंश का कद अगर बढ़ाया जाता तो गठबंधन के अन्य दलों की मांग बढ़ती. बीजेपी बिहार में पहले ही सियासी समीकरण फिट कर चुकी है. इसलिए बिहार रेस में पीछे छूट गया है.
– जाट जिन राज्यों की सियासत में हावी हैं. वहां 2027 में अब चुनाव होने हैं. यानी अगले दो साल तक जाटों का कोई सियासी खतरा बीजेपी को नहीं है. 2027 तक देश की सियासत में कई बदलाव होंगे. इसलिए जाट भी इस रेस में पीछे छूट गए हैं.
– बंगाल से उपराष्ट्रपति बनाए जाने की चर्चा सबसे ज्यादा सियासी गलियारों में चल रही थी, लेकिन बंगाल भी पीछे छूट गया है.
सीपी राधाकृष्णन ही क्यों, 3 वजहें
1. मुर्मू मॉडल लागू करने की कवायद
2024 में बीजेपी जब तीसरी बार सरकार आई, तब राजस्थान से आने वाले ओम बिरला को फिर से लोकसभा स्पीकर की कुर्सी सौंपी गई. उसी वक्त यह चर्चा तेज हो गई कि आखिर बीजेपी दो बड़े पदों पर एक ही राज्य से आने वाले दो नेताओं को कब तक रखेगी?
दिल्ली में जीत के बाद बीजेपी की सीधी नजर 2025 के बिहार और 2026 के तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और असम राज्य पर है. बिहार में नीतीश कुमार के साथ बीजेपी गठबंधन में है, इसलिए यहां अन्य राज्यों की तुलना में बीजेपी ज्यादा गुना-गणित नहीं बैठा रही है.
असम में बीजेपी सरकार में है, जबकि बंगाल में देश की सबसे बड़ी पार्टी मुख्य विपक्ष की भूमिका में है. तमिलनाडु में उसकी सियासी जमीन काफी बंजर है. लोकसभा चुनाव में काफी कवायद के बावजूद बीजेपी का खाता तमिलनाडु में नहीं खुल पाया. यहां 2026 में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
बीजेपी राधाकृष्णन के जरिए मुर्मू मॉडल लागू करने की कवायद कर रही है. दरअसल 2022 में ओडिशा के आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वालीं द्रौपदी मुर्मू को बीजेपी ने राष्ट्रपति बनवाया. 2024 के चुनाव में बीजेपी को ओडिशा में बंपर जीत मिली.
बीजेपी ने पूरे चुनाव में ओडिशा के लोगों को यह बताया आपका आदमी दिल्ली की सत्ता में है. हम आपको भागीदारी देने में पीछे नहीं हटेंगे.
2. दक्षिण का दुर्ग मजबूत करने की कोशिश
2022 से पहले बीजेपी उत्तर, दक्षिण और पश्चिम की सियासत को एकसाथ साध रही थी, लेकिन 2022 के बाद देश के सर्वोच्च 5 पदों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा का उपसभापति) पर उत्तर और पश्चिम भारत के ही राजनेता काबिज हो गए. 2023 में पहले कर्नाटक और फिर तेलंगाना में बीजेपी को बड़ा झटका लगा. आंध्र में गठबंधन के बूते बीजेपी सरकार में तो है, लेकिन तीसरे नंबर की सहयोगी है.
बीजेपी ने दक्षिण के दुर्ग को मजबूत करने के लिए तमिलनाडु के सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति के लिए नामित किया है.
3. सवर्ण को सेट करने में भी जुटी बीजेपी
2014 में बीजेपी की सरकार आने के बाद बीजेपी ने सर्वोच्च पदों पर भागीदारी देने में जातीय संतुलन को भी खूब साधने की कोशिश की, लेकिन 2022 के बाद इसमें थोड़ा बदलाव आ गया. चार बड़े पदों में से एक भी सवर्ण समुदाय के पास नहीं था. अब राधाकृष्णन को बीजेपी ने वाइस प्रेसिडेंट के लिए नामित करके इस समीकरण को साधा है. राधाकृष्णन की जाति गाउंडर वेल्लार्स (Gounder Vellalars) है. इसे तमिलनाडु का क्षत्रिय समुदाय माना जाता है. हालांकि स्थानीय सियासत की वजह से इसके कई उपजातियों को तमिलनाडु में ओबीसी का भी दर्जा प्राप्त है.