भारत-चीन गलवान हिंसा के बाद से ही दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थितियां बन रही थीं लेकिन, अब हाल ही में स्थितियों में बदलाव देखा गया है. भले ही सर्दियों का मौसम शुरू हो गया है लेकिन, दोनों देशों के बीच जमी बर्फ अब पिघलती हुई दिखाई दे रही है. LAC पर विवादित दो पॉइंट्स डेमचोक और देपसांग में पेट्रोलिंग शुरू हो चुकी है. भारत और चीन इससे भी आगे बढ़ते हुए अब LAC के बफर जोन पर चर्चा कर रहे हैं.
साथ ही, डी-एस्केलेशन यानि सैनिकों के जमावड़े को कम करने को लेकर बातचीत शुरू करने की ओर बढ़ रहे हैं. दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच इसे लेकर बैठक हुई है. 50 मिनट तक चली इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने डिसएंगेजमट के बाद अब डी-एस्केलेशन की तरफ बढ़ने की बात कही है.
LAC पर अब आगे क्या होने वाला है ?
गुरुवार को भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर डी-एस्केलेशन को लेकर चर्चा की. यहां यह समझना जरूरी है कि आपसी तनातनी को कम करने का ये कौनसा चरण है? LAC पर तनाव को कम करने के लिए तीन चरणों पर काम किया जाना है. इनमें से दो पर सहमति बनना अभी भी बाकी है. पहला D डिसएंगेजमट यानि की आमने-सामने जवानों की तैनाती की स्थिति को नॉर्मल करना.
इसे अभी हाल ही में पूरा किया चुका है. दूसरा D का मतलब है डी-एस्केलेशन यानी कि LAC पर सेना के जवानों की संख्या कम कर उन्हें पीछे अपने बैरक तक लाना. इसके तीसरे D का मतलब है डी -इंडक्शन यानी कि LAC पर देश के अलग-अलग हिस्सों से भेजे गए जवानों को उनके बेस पर वापिस भेजना और हथियारों की संख्या में कमी लाना.
गलवान झड़प के बाद कितने भारतीय सैनिकों की तैनाती?
भारत ने जून 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद सीमा पर सैनिकों, युद्धक वाहनों और लड़ाकू विमानों की इतनी बड़ी खेप तैनात कर दी कि जिसे देखकर ही दुश्मन के पसीने छूट गए. अकेले भारतीय वायुसेना ने आर्मी के 50 हजार से ज्यादा जवानों को पूर्वी लद्धाख क्षेत्र में तैनात किया. 90 से ज्यादा टैंक, 330 बीएमपी लड़ाकू वाहन, राडार सिस्टम, पिनाका मिसाइल सिस्टम, होवित्जर गन, सिगसौर राइफल्स, ड्रोन, और कई अन्य हथियार शामिल थे. इसे देख कर भारत को आंख दिखाने वाला चीन भी सहम गया.
गलवान झड़प के बाद भारतीय वायुसेना ने लड़ाकू विमानों के कई स्क्वाड्रन को एक्शन मोड में रखा हुआ है. इसके साथ ही दुश्मन पर 24 घंटे निगरानी और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए अपनेसुखोई-30 एमकेआई और जगुआर लड़ाकू विमान को क्षेत्र में तैनात किया. वायुसेना के ट्रांसपोर्ट जहाजों ने 9 हजार टन की ढुलाई की थी. इसके अलावा, भारतीय सेना ने एलएसी के कई अन्य स्थानों पर भी सैनिक तैनात किए हैं. इनमें तवांग सेक्टर भी शामिल है.
भारतीय वायुसेना ने क्षेत्र में बड़ी संख्या में दूर से संचालित रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ़्ट भी तैनात किए. वायुसेना के तमाम तरह के विमानों से निगरानी की सीमा लगभग 50 किमी थी. इसके अलावा फाइटर प्लेन्स की कई स्क्वाड्रन आक्रामक मुद्रा में आ गए थे.
अरुणाचल प्रदेश में भी सेना ने मोर्चा संभाला
गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से सेना ने अपनी लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में एम-777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर तोपों की भी तैनात किया. इनकी तैनाती की लिए चिनूक हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल भी किया गया. सेना ने लाइट मशीन गन, अमेरिकन सिगसौर राइफल्स और कई अन्य घातक हथियारों को भी क्षेत्र में तैनात किया.
गलवान घाटी में क्या हुआ था ?
भारत-चीन सीमा पर अप्रैल के तीसरे हफ्ते में ही विवाद शुरू हो गया था. वहां, चीनी सेना का मूमेंट देखा गया था. यहां पर कई सैनिक टुकड़ियों के साथ भारी ट्रकों में इजाफा था. लेकिन, 15 जून की रात को दोनों सेनाओं के बीच सीधी झड़प हुई. गलवान घाटी में एलएसी पर हुई इस झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 सैनिकों की मौत हुई थी. हालांकि, भारत का भी दावा है कि 40 से ज्यादा चीनी सैनिकों की मौत हुई थी. इस दौरान हथियार के तौर पर लोहे की रॉड का इस्तेमाल हुआ जिस पर कीलें लगी हुई थीं.
कई धारदार हथियारों से चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया था. इस झड़प में हुए चीन के नुकसान को लेकर आजतक आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है. वहीं, ऑस्ट्रेलिया के एक अख़बार द क्लैक्सन ने अपनी एक रिसर्च की गई रिपोर्ट में दावा किया था कि चीन की तरफ से चार सैनिकों की मौत का आंकड़ा सामने आया था. लेकिन, इससे 9 गुना ज़्यादा, कम-से-कम 38 पीएलए जवानों की मौत हो गई थी. उस रात एक जूनियर सार्जेंट समेत कम से कम 38 पीएलए सैनिकों की मौत हुई थी.