ईरान में कट्टरपंथी ताकतों ने महिलाओं पर अत्याचार की इंतेहा कर दी है. मुद्दा है हिजाब… वही हिजाब जिससे आजादी की ख्वाहिश में 500 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हुई थी. हजारों महिलाएं जेल में रहीं कुछ अब भी हैं. किसी ने कोड़ों की सजा भुगती तो 10 लोगों को फांसी की सजा भी सुनाई गई. अब एक बार फिर हिजाब चर्चा में है. मोरल पुलिस जिस पर जब चाहे तब कार्रवाई कर रही है. महिलाओं को जबरदस्ती वैन में धकेला जा रहा है. पुलिस स्टेशन ले जाया रहा है और कुछ को हिदायत दी जा रही है तो कुछ को कोड़ों से सबक भी सिखाया जा रहा है.
ईरान में महसा अमीनी की मौत ईरान के लिए एक सबक हो सकती थी मगर ऐसा हुआ नहीं. 22 साल उस युवा लड़की को हिजाब न पहनने की वजह से ही गिरफ्तार किया गया था. पुलिस हिरासत में उसकी मौत होने के बाद देश भर में प्रदर्शन हुए थे. प्रदर्शन इतने ज्यादा थे कि इसे महिला स्वतंत्रता क्रांति तक का नाम दिया गया था. इन्हीं प्रदर्शनों में 500 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. रईसी ने खुद 2022 जुलाई में ईरान की मोरल पुलिसिंग पर रोक लगा दी थी. हालांकि 2023 जुलाई में मोरल पुलिसिंग को एक बार फिर एक्टिव कर दिया गया और महिलाओं पर अत्याचार शुरू हो गए. राष्ट्रपति चुनाव के बीच अब ईरान में हो रहे महिला अत्याचार के वीडियो एक बार फिर दुनिया में वायरल हो रहे हैं.
ईरान में आखिर क्या हो रहा है?
राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियों के बीच ईरान में हिजाब फिर एक बड़ा मुद्दा बन गया है. यहां महिलाओं पर हिजाब के नाम पर अत्याचार किए जा रहे हैं. इन महिलाओं पर मोहरेबेह यानी खुदा के खिलाफ युद्ध छोड़ने का आरोप लगाया जा रहा है. इसी आरोप के तहत हिजाब विरोधी आंदोलन में शामिल 10 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी. बताया तो यहां तक जाता है कि तेहरान में जगह जगह होर्डिंग लगाकर हिजाब पहनने के लिए कहा गया है. ऐसा न करने पर बर्बरता की जा रही है. इसका उदाहरण हाल ही में वायरल वो वीडियो है जिसमें हिजाब पहने ईरान की मोरल पुलिसिंग की महिलाएं एक महिला को जबरदस्ती वैन में धकेल रही हैं.
क्या है ईरान की मोरल पुलिसिंग?
मोरल पुलिस ईरान की एक इकाई है, जिसे 2005 में गठित किया गया था. इसका उद्देश्य हिजाब और धर्म के हिसाब से व्यवहार को लागू करना था. मोरल पुलिस से पहले ये जिम्मेदारी अलग अलग सतर्कता समूहों को दी गई थी जो ईरान की इस्लामी क्रांति का हिस्सा थे. मोरल पुलिसिंग को ईरान में गश्त ए इरशाद के नाम से जाना जाता है. ये महिलाओं के साथ पुरुषों के व्यवहार पर भी नजर रखती हैं. किसी भी महिला के सिर न ढकने या हिजाब न पहनने पर ये उन्हें दंडित कर सकती हैं या पकड़कर पुलिस स्टेशन ला सकती हैं. महिला की ड्रेस के आधार पर ही ये तय होता है कि उसे क्या सजा दी जानी चाहिए. कुछ पर कोड़े बरसाए जाते हैं, तो कुछ को सुधार गृह भेजा जाता है. कुछ महिलाओं को पुलिस स्टेशन से ही उनके पुरुष रिश्तेदारों को हिदायत देकर छोड़ दिया जाता है.
ईरान में हिजाब न पहनना एक मुसीबत
ईरान में महिलाओं की मुसीबत मोरल पुलिसिंग ही नहीं है, बल्कि उनके आसपास के लोगों को भी इस तरह से हिदायत दी गई है कि हिजाब न पहनने वाली महिला न तो दुकान से कुछ खरीद सकती है और न ही रेलवे स्टेशन पर जा सकती है. पिछले साल ही तेहरान में एक 23 मंजिला शॉपिंग मॉल को सिर्फ इसलिए बंद करा दिया गया था, क्योंकि वहां बिना हिजाब वाली महिलाओं को खरीदारी की अनुमति दी गई थी. इसके अलावा इस्फाहान में बुक फेयर को बंद कराने के बाद दुकानदारों को शपथ दिलाई गई थी कि वे बिना हिजाब वाली महिलाओं को कोई सामान नहीं देंगे. यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली छात्राओं पर भी इस बात का दबाव बनाया गया है कि वह बिना हिजाब नजर न आएं. यहां तक कि अपनी निजी कार में सफर करने के दौरान भी हिजाब पहनना न भूलें. इसके अलावा महिलाएं बिना हिजाब के न तो सरकारी कार्यालय में जा सकती हैं और न ही मेट्रो में सफर कर सकती हैं.
कट्टरपंथी सरकार, सांसद और मौलवी सब एकजुट
ईरान में हिजाब को लेकर कट्टरपंथी पूरी तरह एकजुट हैं. यहां सरकार के साथ-साथ सांसद और मौलवी भी एक सुर में ही हिजाब के लिए वकालत करते रहे हैं. ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी बेशक अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन वह हमेशा ही हिजाब को धार्मिक जरूरत बताते रहे. सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खानमेई ने भी हिजाब के मामले में लापरवाही को अस्वीकार्य बताया है. ईरन के कट्टरपंथी सांसद भी इसे अल्लाह का फरमान बताते हैं.