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Eid Al Adha 2024: इस्लाम धर्म में ईद उल अजहा मीठी ईद के तकरीबन 70 दिन बाद मनाई जाती है, आइए जानते हैं कि कब है ईद उल-अजहा, ये परंपरा की क्यों मनाई जाती है और कैसे इसकी शुरुआत हुई?

Eid Al Adha 2024: मुस्लिम समाज में ईद उल-फितर यानि मीठी ईद के बाद ईद उल-अजहा यानि बकरीद दूसरा सबसे बड़ा पर्व है, जिसे भारत समेत कई देशों में मनाया जाता है. इस्लाम धर्म से जुड़े लोग इस पर्व को हर साल रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिन बाद मनाते हैं. धुल्ल हिज – जिल हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाई जाने वाली बकरीद के पर्व को कुर्बानी के पर्व के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं. लोगों के जेहन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर इस दिन बकरे की कुर्बानी क्यों दी जाती है और क्या है इसके पीछे की मान्यता क्या है? आइए जानते हैं कि आखिर कब और कैसे शुरु हुई कुर्बानी की परंपरा?

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, 12वें महीने जु अल-हज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाएगी. साल 2024 में बकरीद का चांद 16 जून को देखा जाएगा. अगर साल 2024 में ज़ु अल-हज्जा महीना 29 दिनों का हुआ तो बकरीद 16 जून को होगी. अगर ये महीना 30 दिनों का हुआ तो बकरीद 17 जून को मनाई जाएगी. साल 2024 में भारत में ईद उल-अजहा का त्योहार 17 जून को मनाए जाने की संभावना है.

बकरीद की कहानी

इस्लामिक मान्यता के अनुसार, ईद उल-अजहा यानि बकरीद पर कुर्बानी की शुरुआत हजरत इब्राहीम के समय हुई थी, जिन्हें अल्लाह का पहला पैगंबर माना जाता है. मान्यता है कि एक बार फरिश्तों के कहने पर अल्लाह ने उनका इम्तिहान लेने का निर्णय किया. इसके बाद अल्लाह ने उनके सपने में जाकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने के लिए कहा. ऐसे में हजरत इब्राहीम ने तय किया कि उनका बेटा इस्माइल ही उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है, जिसने कुछ समय पहले ही उनके घर में जन्म लिया था. इसके बाद हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के लिए अपने बेटे को कुर्बान करने की ठान ली थी.

पैगंबर ने आंखों पर बांधी थी पट्टी

इस्लामिक मान्यता के अनुसार, जब पैगंबर हजरत इब्राहीम ने अपना फर्ज अदा करते हुए बेटे की कुर्बानी देने निकले तो उन्हें रास्ते में एक शैतान ने गुमराह करने की कोशिश की और उन्हें इस बात के लिए मनाने की कोशिश की कि वे अपने प्रिय बेटे की बलि न दें, लेकिन पैगंबर नहीं डगमगाए और शैतान की बातों को नजरंदाज करके आगे बढ़ गए. इसके बाद वे अपने निर्णय से न डगमगाएं. इसके लिए उन्होंने अपने आंखों पर पट्टी बांध कर कुर्बानी दे दी.

ऐसे शुरू हुई थी बकरीद की परंपरा

जब जब पैगंबर मुहम्मद अपनी आंख पर पट्टी बांध कर बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे, उसी समय अल्लाह के फरिश्तों ने उनके बेटे को हटाकर वहां पर एक मेमने को रख दिया था. इस तरह इस्लाम धर्म में पहली कुर्बानी हजरत इब्राहीम द्वारा मानी जाती है. मान्यता है कि हजरत इब्राहीम के समय से बकरीद के पर्व पर लगातार यह कुर्बानी की परंपरा चली आ रही है. इसलिए मुस्लिम समज के लोग ईद उल-अजहा यानि बकरीद पर बकरी की कुर्बानी देते हैं.

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