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पीएम मोदी चुनाव प्रचार के बाद एक दिन और एक रात के लिए रॉक मेमोरियल में ध्यान लगाएंगे,क्या है रॉक मेमोरियल का इतिहास

Vivekananda Rock Memorial:लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है। सातवें चरण के लिए चुनाव प्रचार तेज है। वहीं चुनाव प्रचार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साधना में लीन होने वाले हैं। पीएम मोदी चुनाव प्रचार के बाद एक दिन के लिए और एक रात के लिए ध्यान लगाने वाले हैं। पीएम कन्याकुमारी स्थित रॉक मेमोरियल जाएंगे। जहां के ध्यान मंडपम में वे ध्यान करेंगे। जानकारी अनुसार ध्यान मंडपम में 30 मई की शाम से 1 जून की शाम तक ध्यान लगाएंगे।

पीएम मोदी यहां लगाएंगे ध्यान (PM Modi Meditation Place)

पीएम मोदी जहां ध्यान लगाएंगे वो स्थान कई मायनों में प्रसिद्ध है। यहां स्वामी विवेकानंद तपस्या में लीन हुए थे और कहा जाता है कि यहीं उन्हें भारत के दर्शन हुए थे। यहां साधना करने के बाद स्वामी विवेकानंद की जिंदगी में क्रांतिकारी परिवर्तन आया था। मान्यता है कि जैसे सारनाथ का गौतम बुद्ध की जिंदगी में स्थान था, वैसा ही स्थान रॉक मेमोरियल का स्वामी विवेकानंद की लाइफ में रहा है। वह पूरे देश में भ्रमण करने के बाद यहां आए थे और तीन दिन तक यहां साधना की थी।

कहां है विवेकानंद रॉक मेमोरियल (Vivekananda Rock Memorial Location )

विवेकानंद रॉक मेमोरियल वैसे तो कन्याकुमारी का एक छोटा सा द्वीप है। उसकी पृष्ठभूमि में सुरम्य हिंद महासागर है। यह लक्षद्वीप सागर से निकलने वाली दो आसन्न चट्टानों में से एक पर स्थित है। उसमे श्रीपाद मंडपम और विवेकानंद मंडपम शामिल हैं। विवेकानंद रॉक मेमोरियल कन्याकुमारी में वावथुरई की भूमि के पूर्व में 500 मीटर दूर स्थित है। वहाँ जाने के लिए कुछ घाटों का उपयोग किया जाता है। विवेकानंद को ज्ञान की प्राप्ति हुई वही स्थान पर प्रतिमा का निर्माण 1970 में वावथुरई में किया गया था। श्रीपाद मंडपम में एक अध्ययन कक्ष और एक संग्रहालय है। जहां आप विवेकानंद के जीवन और कार्यों को गहराई से देख सकते हैं। ध्यान करने के लिए आगंतुकों के लिए ध्यान कक्ष के रूप में कार्य करता है। और यहां की वास्तुकला की शैली विशिष्ट है। किंवदंतियों के मुताबिक देवी कुमारी ने यह चट्टान पर तपस्या की थी।

विवेकानंद रॉक मेमोरियल का इतिहास

सन 1963 को विवेकानन्द जन्मशताब्दी समारोह में तमिल नाडु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर को प्रेरणा हुई कि इस शिला का नाम ‘विवेकानन्द शिला’ रखना चाहिए और उसपर स्वामीजी की एक प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। कन्याकुमारी के हिन्दुओं में भारी उत्साह हुआ और उन्होंने एक समिति गठित करली। स्वामी चिद्भवानन्द इस कार्य में जुट गये। पर इस मांग से तमिलनाडु का कैथोलिक चर्च घबरा उठा, और डरने लगा कहीं यह काम हिन्दुओं में हिंदुत्व की भावना न भर दे, मिशन की राह में यह प्रस्ताव चर्च को बड़ा रोड़ा लगा। चर्च ने उस शिला को विवेकानन्द शिला की बजाय ‘सेंट जेवियर रॉक’ नाम दे दिया और मिथक गढ़ा कि सोलहवीं शताब्दी में सेंट जेवियर इस शिला पर आये थे। शिला पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए वहां चर्च के प्रतीक चिन्ह ‘क्रॉस’ की एक प्रतिमा भी स्थापित कर दी और चट्टान पर क्रॉस के चिन्ह बना दिए।

 

मतान्तरित ईसाई नाविकों ने हिन्दुओं को समुद्र तट से शिला तक ले जाने से मना कर दिया। इस स्थिति का सामना करने के लिए संघ के स्वयंसेवक बालन और लक्ष्मण कन्याकुमारी के समुद्र में कूदकर तैरते हुए शिला तक पहुँच गये। एक रात रहस्यमयी तरीके से क्रॉस गायब हो गये। पूरे कन्याकुमारी जिले में संघर्ष की तनाव भरी स्थिति पैदा हो गयी और राज्य कांग्रेस सरकार ने धारा 144 लागू कर दी।

 

दत्ता जी दिदोलकर की प्रेरणा से मन्मथ पद्मनाभन की अध्यक्षता में अखिल भारतीय विवेकानन्द शिला स्मारक समिति का गठन हुआ और घोषणा हुई कि 12 जनवरी, 1963 से आरम्भ होने वाले स्वामी विवेकानन्द जन्म शताब्दी वर्ष की पूर्णाहुति होने तक वे शिला पर उनकी प्रतिमा की स्थापना कर देंगे। समिति ने 17 जनवरी, 1963 को शिला पर एक प्रस्तर पट्टी स्थापित कर दी। किन्तु 16 मई, 1963 को इस पट्टिका को रात के अंधेरे में ईसाइयों ने तोड़कर समुद्र में फेंक दिया। स्थिति फिर बहुत तनावपूर्ण हो गयी। स्थिति नियन्त्रण से बाहर होने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने सरकार्यवाह एकनाथ रानडे जी को यह कार्य सौंपा।

 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम विवेकानन्द स्मारक के निर्माण पक्ष में थे। पर केन्द्रीय संस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर पर्यावरण आदि का बहाना बनाकर रोड़े अटका रहे थे। कुशल प्रबंधन, धैर्य एवं पवित्रता के बल पर एकनाथ रानाडे ने मुद्दे को राजनीति से दूर रखते हुए विभिन्न स्तरों पर स्मारक के लिए लोक संग्रह किया। रानाडे जी ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के सांसदों को अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर “भारतीयता विचारधारा” में पिरो दिया और तीन दिन में 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तब के गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास पहुंच गए। जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों ने स्मारक बनने की इच्छा प्रकट की तो संदेश स्पष्ट था कि “पूरा देश स्मारक की आकांक्षा करता है।” कांग्रेस हो या समाजवादी, साम्यवादी हो या द्रविड़ नेता सभी ने एक स्वर में हामी भरी।

बदल गया था विवेकानंद का जीवन (Vivekananda Life Had Changed)

सन 1892 में स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैर कर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस निर्जन स्थान पर साधना के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ था। विवेकानंद के उस अनुभव का लाभ पूरे विश्व को हुआ, क्योंकि इसके कुछ समय बाद ही वे शिकागो सम्मेलन में भाग लेने गए थे। इस सम्मेलन में भाग लेकर उन्होंने भारत का नाम ऊंचा किया था। स्वामी विवेकानंद के अमर संदेशों को साकार रूप देने के लिए ही 1970 में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया। समुद्र की लहरों से घिरी इस शिला तक पहुंचना भी एक अलग अनुभव है। स्मारक भवन का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। इसका वास्तुशिल्प अजंता-एलोरा की गुफाओं के प्रस्तर शिल्पों से लिया गया लगता है। लाल रंग के पत्थर से निर्मित स्मारक पर 70 फुट ऊंचा गुंबद है। भवन के अंदर चार फुट से ऊंचे प्लेटफॉर्म पर परिव्राजक संत स्वामी विवेकानंद की प्रभावशाली मूर्ति है। यह मूर्ति कांसे की बनी है, जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है। यह मूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एक एकदम सजीव प्रतीत होता है।

 

 

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ARYAN CHAUDHRI
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