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आपके आसपास या आपके परिवार में किसी शादीशुदा जोड़े की लड़ाई हो जाए, तो क्या आपका पहला रिएक्शन पुलिस बुलाने का रहता है? अगर हां, तो थोड़ा रूक जाइए और सुप्रीम कोर्ट की यह सलाह पढ़ लीजिए.

आपके आसपास या आपके परिवार में किसी शादीशुदा जोड़े की लड़ाई हो जाए, तो क्या आपका पहला रिएक्शन पुलिस बुलाने का रहता है? अगर हां, तो थोड़ा रूक जाइए और सुप्रीम कोर्ट की यह सलाह पढ़ लीजिए.

देश की सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में मैरिज कपल्स की लड़ाई में पुलिस की भूमिका को लेकर सख्त टिप्पणी की है.

कोर्ट ने कहा है कि हर शादी की नींव सहिष्णुता, सम्मान और समायोजन पर टिकी है. पति और पत्नी में नोकझोंक सामान्य बात है. ऐसे में कोई परिवार अगर पुलिस बुला लेती है, तो इसका मतलब वो शादी खत्म करना चाहते हैं.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पुलिस को सिर्फ हिंसक घटना के वक्त ही बुलाया जाना चाहिए. पुलिस को रामबाण इलाज के लिए बुलाना रिश्तों की बलि देने जैसा है.

5 पॉइंट्स में पढ़िए कोर्ट ने क्या-क्या सलाह दी है?
1. पति और पत्नी में अगर शादी के बाद लड़ाई होती है, तो तुरंत पुलिस को न बुलाया जाए. पुलिस की सहायता सबसे आखिर में तब लें, जब लड़ाई के दौरान वास्तविक में हिंसक घटनाएं हुई है.

2. पति और पत्नी के आपसी झगड़े में रिश्तेदारों को संयम बरतना चाहिए. कई बार मामूली नोकझोंक को दोनों पक्षों की ओर से बहुत बड़ा बना दिया जाता है, जिसके बाद रिश्ते सुधरने की गुंजाइश खत्म हो जाती है.

3. शादीशुदा जोड़े लड़ाई के वक्त यह नहीं सोचते हैं, इससे क्या हासिल होगा? आपराधिक कार्यवाही शुरू होने का सीधा असर बच्चों पर पड़ता है. यह सोचना अत्यंत ही आवश्यक है.

4. सभी बुराईयों का रामबाण इलाज पुलिस नहीं है, लेकिन पति और पत्नी के झगड़े में अक्सर महिलाओं की तरफ से तुरंत पुलिस को फोन कर दिया जाता है. पुलिस बुलाने का मतलब है रिश्ता पूरी तरह से खत्म करना.

5. एक अच्छे विवाह की नींव सहिष्णुता, समायोजन और एक-दूसरे का सम्मान करने पर टिका है. दोनों तरफ से गलतियों को एक सीमा तक सहन करने की क्षमता होनी चाहिए, तभी विवाह सफल हो पाता है.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से आगे क्या बदलेगा?
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने एक मामले की सुनवाई के दौरान मैरिज कपल्स पर यह टिप्पणी की. कोर्ट का कहना था कि महिला ने यह नहीं बताया कि उनके साथ किस तरह के अपराध हुए हैं और इसलिए इसे आपराधिक कार्रवाई के दायरे में नहीं रखा जा सकता है.

मामला में याचिकाकर्ता पति का कहना था कि उनके खिलाफ पत्नी पक्ष ने घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कर दिया, जो गलत है. पति का कहना था कि हाईकोर्ट ने इस मामले में आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने से इनकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (घरेलू क्रूरता) के गलत उपयोग के विरुद्ध चेतावनी देता है. ऐसे में भविष्य में घरेलू हिंसा के मामले में कोर्ट के इस फैसले को आधार बनाकर पक्ष रखा जा सकता है.

घरेलू हिंसा के मामलों में लगातार हो रही है बढ़ोतरी
भारत में घरेलू हिंसा के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में पुलिस ने घरेलू हिंसा के मामले 103,272 मामले दर्ज किए थे.

भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 2015-16 में लगभग 33% महिलाएं शारीरिक, यौन या भावनात्मक वैवाहिक हिंसा का शिकार हुईं हैं. इनमें से 14% महिलाओं ने इसे रोकने के लिए महिला आयोग से मदद मांगी थी.

2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 112,292 पर पहुंच गया. इस आंकड़े के मुताबिक भारत में हर पांच मिनट में लगभग एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है.

भारत में घरेलू हिंसा को दंड संहिता की 498A के अधीन रखा गया है. इस धारा के तहत कोई भी शादीशुदा महिला दहेज मांगने या प्रताड़ित करने पर पति और ससुरालवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकती हैं.

यह एक गैर जमानती अपराध है, जिसमें तीन साल की सजा का प्रावधान है.

कोर्ट पहले भी कर चुका है शादी बचाने की पैरवी
2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विपुल गुप्ता बनाम अमृता के मामले में एक अहम टिप्पणी की थी. कोर्ट का कहना था कि पारिवारिक न्यायालय को वैवाहिक विवाद का निर्णय करते समय विवाह को बचाने के लिए हर संभव कदम उठाना चाहिए.

अदालत का कहना था कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम 1984 की धारा 9 भी यही कहती है.

2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ही एक अन्य फैसले में कहा कि अगर पति और पत्नी के छोटे-मोटे झगड़ों को क्रूरता के रूप में देखा जाने लगेगा, तब तो कई विवाह टूट जाएंगे.

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि लोगों को तालाक को तरजीह देने से बचना चाहिए, नहीं तो हर कप्लस छोटे-छोटे झगड़ों पर यही करेंगे.

पति और पत्नी के बीच विवाद सुलझाने के क्या-क्या तरीके हैं?
पुलिस में जाने से पहले पति और पत्नी किसी भी तरह के विवाद को 2 तरीके से सुलझा सकते हैं. के. श्रीनिवास राव बनाम डी.ए. दीपा केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवाह से जुड़े विवाद को मध्यस्था के जरिए सुलझाया जा सकता है.

इसके मुताबिक दो पक्ष किसी तीसरे पक्ष के सहायता से शादी से जुड़े विवाद को आसानी से सुलझा सकते हैं.

इसी तरह ग्राम पंचायत के जरिए भी वैवाहिक विवाद की स्थिति को सुलझाया जा सकता है. ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत स्थापित ग्राम न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है.

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