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आइसलैंड में एक बार फिर ज्वालामुखी में बड़ा विस्फोट, आइए आज जानते हैं कि आइसलैंड में ज्वालामुखी फटने के इतने मामले क्यों आते हैं?

आइसलैंड के दक्षिण-पश्चिम में मौजूद ग्रिंडाविक कस्बे के पास हाल ही में ज्वालामुखी में बड़ा विस्फोट हुआ था. विस्फोट से 3 किलोमीटर लंबी नई दरार बन गई, जिसमें से 200 फीट ऊंचा लावा का फव्वारा निकला था. बीते साल दिसंबर के बाद ये तीसरी बार है जब पश्चिमी आइसलैंड में ज्वालामुखी फटा है. यह दिलचस्प बात है कि इसी क्षेत्र में बड़े-बड़े ग्लेशियर भी मौजूद हैं. आइए आज जानते हैं कि आइसलैंड में ज्वालामुखी फटने के इतने सारे मामले क्यों आते हैं?

आइलैंड को ‘लैंड ऑफ आइस एंड फायर’ यानी बर्फ और आग की भूमि के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां दुनिया के कुछ सबसे बड़े ग्लेशियर और सबसे सक्रिय ज्वालामुखी हैं. आइसलैंड में भूकंप आने की दो वजह हैं- टेक्टोनिक प्लेट का हिलना और आइसलैंड के नीचे हॉट स्पॉट का होना. चलिए समझते हैं ये कैसे काम करते हैं.

टेक्टोनिक प्लेट का दूर जाना

आइसलैंड में भूकंप आने की एक वजह है कि वो एक ऐसी जगह है जहां दो टेक्टोनिक प्लेट एक दूसरे से दूर जाती हैं. टेक्टोनिक प्लेट एक तरह की विशाल स्लैब होती हैं जिनपर महाद्वीप और महासागर टिके होते हैं. पृथ्वी ऐसी कई प्लेटों में बंटी हुई हैं और ये हमेशा हिलती रहती हैं. जब दो टेक्टोनिक प्लेट एक दूसरे से दूर जाती हैं, तो खाली जगह को भरने के लिए पृथ्वी के भीतर से मैग्मा ऊपर की तरफ उठता है. यही मैग्मा जब फूटकर सतह के ऊपर आता है, तो उसे लावा कहा जाता है. लेकिन धरती के नीचे मैग्मा बनता कैसे है?

दरअसल, पृथ्वी का अंदरूनी भाग काफी गर्म होता है. यह इतना गर्म होता है कि वहां मौजूद पत्थर पिघलकर लिक्विड पदार्थ में तब्दील हो जाते हैं, जिसे मैग्मा कहते हैं. क्योंकि मैग्मा आसपास के पत्थरों से हल्का होता है, वो ऊपर की तरफ उठता है और इकट्ठा होता जाता है. जब टेक्टोनिक प्लेटों के हिलने से अनुकूल परिस्थिति बनती है तो मैग्मा सतह को तोड़ता हुआ फूटकर ऊपर आ जाता है.

 

हॉट स्पॉट की वजह से लावा क्यों बाहर आता हैं?

आइसलैंड में सक्रिय ज्वालामुखी होने की दूसरी वजह उसका हॉट स्पॉट एरिया पर होना है. वैज्ञानिकों को अभी ये स्पष्ट नहीं है कि हॉट स्पॉट कैसे और क्यों बनते हैं. लेकिन ये बात साफ हैं कि ये पृथ्वी के अंदर बेहद गर्म जगह होती है. इसलिए इनको हॉट स्पॉट नाम भी दिया गया. वैज्ञानिक अभी तक केवल हॉटस्पॉट वाली जगहों की पहचान करने में सक्षम हैं. ऐसा जरूरी नहीं है कि ये हमेशा टेक्टोनिक प्लेट के कोने में ही हों. कुछ हॉट स्पॉट प्लेट के बीच में भी मिले हैं.

लेकिन सवाल है कि हॉट स्पॉट पर होने से ज्वालामुखी क्यों फटते हैं? दरअसल, हॉट स्पॉट में मैग्मा ज्यादा गर्म होता है, जिससे उसकी डेंसिटी कम हो जाती है. कम डेंसिटी होने की वजह है वो ऊपर उठता है और पृथ्वी की सतह से बाहर निकलकर लावा के रूप में बह जाता है.

क्या लावा से कोई खतरा है?

ज्वालामुखी मौटे तौर पर दो तरह से फूटता है – एक विस्फोट के साथ और दूसरा बिना विस्फोट के. ज्वालामुखी के फटने का तरीका इस बात पर निर्भर करता है कि मैग्मा किस तरह का है. अगर मैग्मा गाढ़ा और चिपचिपा होता है, तो गैसें आसानी से बाहर नहीं निकल पाती. ऐसे में दबाव तब तक बनता है जब तक गैसें तेजी से बाहर नहीं निकलती और विस्फोट होता है. इसके विपरीत, अगर मैग्मा पतला और बहनेवाला होता है, तो गैसें आसानी से बाहर निकल पाती हैं. जब इस तरह का मैग्मा फूटता है, तो वो ज्वालामुखी से धीरे-धीरे बहता हुआ आता है. आइसलैंड में इसी तरह का ज्वालामुखी विस्फोट होता है. इस तरह का लावा ज्यादा खतरनाक नहीं होता, क्योंकि ये इतनी धीमी गति से चलता है कि लोग उसके रास्ते से हट जाते हैं. लावा का ऐसा विस्फोट हवाई के ज्वालामुखियों में भी होता है.

 

सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्र में रहने का क्या फायदा है?

सक्रिय ज्वालामुखी एरिया में रहने का एक फायदा भी है. आइसलैंड धरती की इस गर्मी का इस्तेमाल करके एनर्जी का उत्पादन करता है. PBS की रिपोर्ट के मुताबिक, आइसलैंड अपनी 30% बिजली जियोथर्मल सोर्स से बनाता है जो टरबाइन चलाने और बिजली उत्पादन के लिए पृथ्वी के अंदर की गर्मी का इस्तेमाल करते हैं. इसी का नतीजा है कि आइसलैंड आज दुनिया की सबसे साफ अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. जियोथर्मल सोर्स से बनने वाली एनर्जी से कई हजार घरों को गर्म पानी भी मुहैया कराया जा रहा है.

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