महोबा में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की 1500वीं यौमे पैदाइश के अवसर पर शुक्रवार को जुलूस-ए-मोहम्मदी बड़े ही अकीदत और शांति के साथ निकाला गया. दरगाह अब्बा हुजूर के आस्ताने से नमाज-ए-जुमा के बाद शुरू हुआ यह जुलूस न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए एकता और भाईचारे का प्रतीक बना. इस विशाल जुलूस में करीब 50 हजार लोग शामिल हुए. हिंदू, मुस्लिम और अन्य समुदायों के लोग एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले.
जुलूस में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल
जुलूस में सभी लोग इस्लामी परचम थामे नजर आए. बच्चे रंग-बिरंगे कपड़ों में और बुजुर्ग अरबी लिबास में शामिल हुए. शहर काजी आफाक हुसैन और बदर हाशमी के नेतृत्व में यह जुलूस भटीपुरा, मकनियापुरा, सुभाष चौक, काजीपुरा, उदल चौक होते हुए आल्हा चौक तक पहुंचा. रास्ते में राजनीतिक दलों, समाजसेवियों और व्यापारिक संगठनों ने पुष्पवर्षा और जलपान के साथ जुलूस का स्वागत किया. जुलूस में सजाई गई झांकियां इस्लामी इतिहास और तीर्थ स्थलों का जीवंत चित्रण करती थीं.
नातिया कलाम की गूंज पर युवा उत्साह से झूमते दिखे, जबकि तख्तियों और नारों के जरिए पैगंबर के बताए मोहब्बत और भाईचारे के रास्ते पर चलने का संदेश दिया गया.
शहर काजी का संदेश: मोहब्बत और भाईचारा
शहर काजी आफाक हुसैन ने जुलूस को संबोधित करते हुए कहा कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने पूरी इंसानियत के लिए मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम दिया. उन्होंने कभी अपने दुश्मनों को भी बद्दुआ नहीं दी और समाज में महिलाओं व कमजोर वर्गों को सम्मान दिलाया.
उन्होंने बताया कि पैगंबर को भारत से खास लगाव था और वे इसे वफा की खुशबू वाला देश मानते थे. काजी ने गंगा-जमुनी तहजीब को गुलदस्ते से तुलना करते हुए कौमी एकता को भारत की सबसे बड़ी ताकत बताया.
आल्हा परिषद का समर्थन
आल्हा परिषद के अध्यक्ष शरद तिवारी दारू ने कहा कि इस्लामी पैगंबर का संदेश केवल मुस्लिम समुदाय तक सीमित नहीं, बल्कि यह पूरी इंसानियत के लिए है. उनके इस बयान ने जुलूस में सांप्रदायिक सौहार्द की भावना को और मजबूत किया.
प्रशासन की सतर्कता
प्रशासन ने जुलूस के लिए शांति और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे. जुलूस देर रात तक चला और पूरे शहर में अमन, भाईचारा, और मोहब्बत का पैगाम फैलाता रहा.