जन्माष्टमी: कृष्ण जन्माष्टमी जो हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात 12 बजे हुआ था. ऐसे में इस दिन रात्रिपूजन का विशेष महत्व होता है. लोग जन्माष्टमी के दिन व्रत रखते हैं और रात 12 बजे भगवान कृष्ण की पूजा कर झूला झुलाते हैं.
मान्यता है कि इस दिन श्री कृष्ण स्वंय धरती पर रहते हैं. ऐसे में आज के दिन विधि विधान से श्रीकृष्ण की पूजा करने से और उनका जन्मोत्सव मनाने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस साल जन्माष्टमी पर एक खास संयोग भी बन रहा है जो काफी फलदायक माना जा रहा है.
यह त्योहार अधर्म पर धर्म की जीत का त्योहार है. श्री कृष्ण भगवान को विष्णु का 8वां अवतार माना जाता है जिन्होंने कंस के बढ़ते अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जन्म लिया था. इसलिए भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने के लिए जन्माष्टमी का दिन सबसे शुभ माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है.
Janmashtami 2025 Vrat Katha
जन्माष्टमी का व्रत आज रखा जा रहा है. आज का दिन बहुत शुभ है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था. आज के दिन भक्त श्री कृष्ण का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत करते हैं. यहां पढ़ें जन्माष्टमी व्रत की संपूर्ण कथा.
इस भविष्यवाणी को सुनकर कंस दंग रह गया. कंस एक अत्याचारी शासक था जिससे ब्रजवासी परेशान थे. कंस ने अपनी बहन के साथ सदा प्रेम से व्यवहार किया था मगर यह भविष्यवाणी सुनकर सबकुछ बदल गया. कंस ने अपनी बहन देवकी (Devki) और उसके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया. देवकी ने अपने भाई से कहा कि उसकी संतान कभी अपने मामा के साथ ऐसा नहीं करेगी लेकिन कंस ने उसकी एक ना सुनी.
इसके बाद कारागार में ही देवकी और वासुदेव की सात संतानें हुईं जिन्हे कंस ने मार दिया. सातवीं संतान को योगमाया ने देवकी के गर्भ से संरक्षित कर माता रोहिणी के गर्भ मं डाल दिया और आठवीं संतान को देवकी ने जन्म दिया. यही संतान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) थी. आठवीं संतान को कंस लेकर जाता उससे पहले ही चमत्कार होने लगा. कारागार के द्वार अपनेआप खुलने लगे, प्रकाश से कारागार जगमगाने लगा और सभी रास्ते खुद ही खुलने लगे. इस संतान को वासुदेव के यहां छोड़ दिया और उनकी कन्या को अपने साथ ले आए,
नंद जी के यहीं श्रीकृष्ण को पाला गया और यशोदा मैया ने अपना प्रेम दिया. आगे चलकर श्रीकृष्ण ने ही अपने मामा कंस का वध किया और ब्रजवासियों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई.
भगवान कृष्ण के मुकुट में सजा मोरपंख, सिर्फ उनकी सुंदरता का आभूषण नहीं, बल्कि गहरी पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिक अर्थों और शास्त्रीय मान्यताओं से जुड़ा प्रतीक है. भक्ति की दुनिया में यह विश्वास है कि कान्हा के बिना बांसुरी अधूरी है, और बांसुरी के बिना मोरपंख. लेकिन आखिर यह परंपरा कैसे शुरू हुई? इसके पीछे तीन अद्भुत कथाएं हैं, साथ ही आध्यात्मिक रहस्य जिनका वर्णन धर्मग्रंथों में मिलता है.
पहली कथा राहु दोष और मां का उपाय
कहते हैं, जब नन्हे कृष्ण का जन्म हुआ, तो कुछ दिनों बाद माता यशोदा ने उनकी कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई. ज्योतिषी ने बताया कि कान्हा पर राहु दोष है. मां के प्रेम में डूबी यशोदा ने तुरंत उपाय पूछा, तो जवाब मिला—”अगर मोरपंख हमेशा इनके पास रहेगा तो यह दोष शांत हो जाएगा.” मां यशोदा ने एक दिन कान्हा के मुकुट में मोरपंख सजाया. कान्हा उसमें इतने सुंदर लगे कि यशोदा ने तय कर लिया—अब उनके मुकुट में मोरपंख हमेशा रहेगा.
दूसरी कथा श्रृंगार में मोरपंख की छवि
एक अन्य कथा में वर्णन मिलता है कि मां यशोदा कान्हा को रोज अलग-अलग श्रृंगार से सजाती थीं. एक दिन उन्होंने मोरपंख का श्रृंगार किया. कान्हा की मोहक छवि देखकर सब मंत्रमुग्ध हो गए. उस दिन से मोरपंख, उनके मुकुट का स्थायी हिस्सा बन गया.
तीसरी कथा मोरों का उपहार
एक और प्रसंग में बताया जाता है कि एक बार बाल कृष्ण वन में बांसुरी बजा रहे थे. उनकी मधुर धुन सुनकर मोरों का एक झुंड नृत्य करने लगा. नृत्य समाप्त होने पर मोरों के सेनापति ने सबसे सुंदर पंख कान्हा के चरणों में अर्पित किया. कृष्ण ने प्रेम से उसे स्वीकार किया और अपने सिर पर धारण कर लिया
आध्यात्मिक महत्व
हिंदू धर्म में मोरपंख को सौभाग्य, शांति, प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है. गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है कि मोर के पंख पर ब्रह्मांड के रंग बसते हैं ,नीला, हरा, सुनहरा, जो सृष्टि के संतुलन का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं भागवत पुराण में कृष्ण के श्रृंगार में मोरपंख का वर्णन, उनकी लीलाओं की मधुरता और प्रकृति के साथ उनके अटूट संबंध का प्रतीक माना गया है. मोरपंख को “तमस” यानी नकारात्मक ऊर्जा का नाशक भी कहा गया है. इसे घर में रखने से राहु-केतु जैसे ग्रह दोष शांत होते हैं और मानसिक शांति मिलती है.
आज भी मोरपंख के बिना अधूरी मानी जाती है भक्ति
इन कथाओं और आध्यात्मिक महत्व के चलते, आज भी भगवान कृष्ण की भक्ति मोरपंख के बिना अधूरी मानी जाती है. भक्त मानते हैं कि मोरपंख केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि भगवान की लीला, प्रेम और संरक्षण का प्रतीक है. यही कारण है कि जन्माष्टमी से लेकर रोज़ाना की पूजा तक, मोरपंख कान्हा की पहचान का अभिन्न हिस्सा है.
जन्माष्टमी की पूजा से पहले कर लें यह काम, नहीं तो पड़ जाएगा पछताना!
जन्माष्टमी की रात भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों में घंटियां गूंजती हैं, भजन-कीर्तन होते हैं और घर-घर में नन्हे कान्हा का झूला सजता है. लेकिन पूजा से पहले एक ऐसा काम है, जो अगर समय रहते नहीं किया, तो रात के वक्त आपको पछताना पड़ सकता है. यह काम है तुलसी दल और पुष्प पहले से तोड़कर रखना और वो भी नियमों के साथ, तभी आपको पूजा का आनंद भी आयेगा और पूरा फल भी मिलेगा.
अगर आप चाहते हैं कि जन्माष्टमी की पूजा बिना किसी बाधा और कमी के सम्पन्न हो, तो तुलसी दल और पुष्प तोड़ने का काम सूर्यास्त से पहले अवश्य कर लें. यह न सिर्फ धार्मिक नियम है, बल्कि आपके पूजा विधान को पूर्णता भी देता है. याद रखिए, श्रीकृष्ण की पूजा में तुलसी का स्थान सर्वोपरि है.
क्यों ज़रूरी है पहले से तोड़ना?
हिंदू धर्मग्रंथों में स्पष्ट नियम है कि संध्या के बाद या रात में तुलसी दल और फूल तोड़ना निषिद्ध है. इसका कारण यह है कि तुलसी मां को रात्रि विश्राम का समय माना जाता है और रात में उनके पत्ते तोड़ना अशुभ और धार्मिक नियमों के विरुद्ध है. यही नियम फूलों पर भी लागू होता है. शाम के बाद फूल तोड़ना वर्जित है.
जन्माष्टमी की पूजा प्रायः रात्रि के निशीथ काल में होती है, यानी रात 12 बजे के आसपास. ऐसे में अगर आपने दिन में तुलसी दल और पुष्प की तैयारी नहीं की, तो पूजा के वक्त आपके पास यह सबसे ज़रूरी सामग्री नहीं होगी.
तुलसी को बासी क्यों नहीं माना जाता?
धर्मशास्त्रों में तुलसी को देवी का रूप और श्रीकृष्ण की प्रिय बताया गया है. यही कारण है कि तुलसी पत्ते कभी बासी नहीं माने जाते. आप चाहें तो एक दिन पहले सुबह या ब्रह्म मुहूर्त में इन्हें तोड़कर सुरक्षित रख सकते हैं. सुबह का समय तुलसी दल तोड़ने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है.
तुलसी दल तोड़ने के नियम
हमेशा तुलसी दल दाहिने हाथ से तोड़ें
पत्ते तोड़ते समय मन ही मन श्रीकृष्ण या श्रीविष्णु का नाम लें.
तुलसी की डाल को न तोड़ें, सिर्फ पत्ते लें.
संध्या के बाद, रविवार, एकादशी और द्वादशी के दिन तुलसी तोड़ने से बचें.
बाकी तैयारियां भी समय पर करें
तुलसी और पुष्प के साथ ही, जन्माष्टमी की अन्य तैयारियां भी समय रहते पूरी कर लें.
- मंदिर और पूजा स्थान की शुद्धि साफ-सफाई, पुराने फूल और माला हटाना.
- भोग और प्रसाद की तैयारी माखन-मिश्री, पंचामृत, फल पहले से जुटाना.
- श्रीकृष्ण के वस्त्र और श्रृंगार धोकर, सजाकर तैयार रखना.
- पूजा सामग्री की लिस्ट मोरपंख, घंटी, गंगाजल, धूप-दीप, तुलसी दल, पुष्प.
- व्रत और नियम का संकल्प पूजा से एक दिन पहले से ही नियम तय करना.
जन्माष्टमी के अवसर पर अपनों के भेजें ये भक्ति से भरे संदेश
भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन यानी जन्माष्टमी को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. हिंदू धर्म में इस दिन को बहुत ही खास माना जाता है. इस साल 16 अगस्त को जन्माष्टमी का पावर पर्व मनाया जाएगा. इस दिन को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. इस खास मौके पर एक दूसरे को जन्माष्टमी की शुभकमानाएं भी दी जाती हैं, जिसमें लोग भक्ति से भरे संदेश, शायरी और विशेज भेजते हैं.
जन्माष्टमी पर शुभकामनां संदेश देने के अलावा भक्त अपने घरों में दिनभर भजन-कीर्तन करते हैं. कान्हा जी के पसंदीदा पकवान बनाते हैं. इसके अलावा इस दिन घरो और मंदिरों में झांकियां निकाली जाती है, जिसमें कान्हा जी के जीवन की लीलाओं को दिखाया जाता है, जैसे उनका माखन चुराकर खाना आदि. अगर आप भी अपनों को शुभकमानएं देना चाहते हैं तो हम आपके लिए 10 बेस्ट संदेश लाए हैं.
1. मुरली की मधुर तान सुनाए हर दिल में बसते हैं घनश्याम, कन्हैया के जन्मदिवस पर सजाएं द्वार, जय श्री कृष्ण, गूंजे हर एक द्वार
2. गोपाल के जन्म से जग हुआ रोशन, माखन चोर की मस्ती है मदहोश कर देने वाली, जन्माष्टमी की रात में हो प्रेम की बारिश, हर मन में खिल उठे लड्डू गोपाल की भक्ति
3. नंद के घर आनंद ही आनंद छाया, जब जय कन्हैया लाल सबने गाया, गली-गली में ब्रज की गूंज है हमारे गोपाल सबसे अनमोल हैं
4. गोकुल में बजी बांसुरी की मधुर तान, हर मन में बसते हैं नंदलाल भगवान, जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर, हर घर में गूंजे श्री कृष्ण का ही नाम
5. माखन चोर, नटखट हैं कान्हा तेरी लीला अपरंपार और निराली है, जन्माष्टमी पर तेरे भक्त गाते गुणगान, हर दिल में बसी तेरी छवि सबसे प्यारी है
6. राधा के प्रेम में रंगे श्याम, हर भक्त के मन में बसे श्याम जन्माष्टमी पर सजाएं भक्ति का दरबार, कन्हैया संग मनाएं खुशियों का त्योहार
7. बंसी की धुन सुनकर सब हो गए दीवाने, श्याम के रूप ने सबके दिल चुराए, जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर, हर कोई उनके चरणों में शीश झुकाए।
8. आज का दिन है बेहद खास, गोपाल का जन्मदिन मनाएंगे सब मिलकर साथ जन्माष्टमी पर दिल से बोले जय कन्हैया जय श्री कृष्ण के जयकार से गूंजे संसार
9. जन्माष्टमी का आया है शुभ अवसर श्री कृष्ण के कदम आपके घर आएं, इस खास दिन पर हर कोई खुशियां मनाएं यही है दुआ, हर परेशानी से आप निजात पाएं
10. वृंदावन की गलियों में रास रचाए, मुरली की तान सबको भाए, जन्माष्टमी के इस शुभ अवसर पर, कन्हैया जी सबके घर सुख लाए
जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार कान्हा जी का जन्म द्वापर युग में, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात 12 बजे हुआ है. कहा जाता है कि, उस समय राजा कंस के अत्याचारों के खत्म करने के लिए भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म हुआ था.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी मान्यताओं पर आधारित है. RBNEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.