Breaking News

Uniform Civil Code: उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी ने ‘समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024’ विधेयक को विधानसभा में पेश किया, मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया, आइए जानते हैं कि यूसीसी से मुसलमानों को दिक्कतें क्या हैं?

Uniform Civil Code: एक बार फिर देशभर में समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर चर्चाएं तेज हैं. उत्तराखंड में मंगलवार को पुष्कर सिंह धामी ने ‘समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024’ विधेयक को विधानसभा में पेश किया. उत्तराखंड विधानसभा में जैसे ही विधेयक पेश हुआ, मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया हालांकि विधेयक पर चर्चा अभी बाकी है, जिसके बाद इसे पारित किया जाएगा. आइए जानते हैं कि यूसीसी से मुसलमानों को दिक्कतें क्या हैं?

यूसीसी से मुसलमानों को क्या दिक्कतें 
भारत में अलग-अलग धर्मों के अपने-अपने कानून है. मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बनाया गया है. अभी मुस्लिमों पर मुस्लिम पर्सनल (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 लागू होता है. समान नागरिक संहिता अगर लागू होता है तो ये कानून खत्म कर एक सामान्य कानून का पालन करना होगा.

शादी की उम्र- भारत में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र की बात करें तो यह 18 साल रखी गई है. मुस्लिम पर्सनल लॉ में लड़की के लिए 15 साल के बाद शादी की इजाजत दी गई है. भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम बनाया गया है, जिसके चलते अगर नाबालिग लड़कियों की शादी अपराध के अंतर्गत आता है. इस तरह ये मुस्लिम पर्सनल लॉ को पूरे तरीके से चुनौती देता है. यूसीसी लागू होने के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ खत्म हो जाएगा, साथ ही शादी की उम्र का ये नियम भी बदल जाएगा. कानून लागू होने के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी होगा.

तलाक- इद्दत- महिला की दूसरी शादी- मुसलमान तलाक को लेकर शरिया कानून के अनुसार चलते हैं. इतना ही नहीं मुसलमानों को पर्सनल लॉ में छूट मिलती है जो कि अन्य धर्मों के स्पेशल मैरिज एक्ट से अलग है. यूसीसी के लागू होने के बाद ये सब खत्म हो जाएगा. इसके अलावा अगर तलाक लेने के मामले में अगर कोई शख्स कानून तोड़ता है तो उसके लिए तीन साल जेल का प्रावधान है. तलाक पर पुरुषों और महिलाओं का बराबरी का अधिकार होगा. अगर महिला दोबारा शादी करना चाहती है तो उस पर किसी भी तरह की कोई शर्त नहीं होगी. इस कानून में हलाला को लेकर भी सख्त सजा का प्रावधान है. इसके अलावा इद्दत पर भी पूरी तरह से रोक होगी.

गुजारा-भत्ता: तलाक के बाद महिला को गुजारा-भत्ता के मामले में मुसलमानों में अलग नियम है. इसके तहत मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को इद्दत की अवधि (तलाक के तीन महीने 10 दिन) तक ही गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है. वहीं, भारतीय कानून के तहत महिला तलाक के बाद हमेशा के लिए (जब तक दूसरी शादी नहीं करती) गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.

संपत्ति का बंटवारा और विरासत- मुस्लिम महिलाओं को विरासत में हिस्से का अधिकार इस्लाम के आगमन के साथ ही है, हालांकि बंटवारे का हिसाब-किताब अलग है. जिस तरह हिंदुओं का विरासत कानून कहता है कि हिंदुओं में बेटा और बेटी को संपत्ति में बराबर का हक है, लेकिन मुसलमानों को इस मामले में हस्तक्षेप का डर है.

बहुविवाह- बहुविवाह यानी एक पत्नी के होते हुए अन्य शादियां करना. मुसलमानों में चार शादियों की इजाजत है. भारतीय मुसलमानों में एक से ज्यादा शादी का चलन हिंदुओं या दूसरे धर्मों की तरह ही है.  नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के डेटा के अनुसार, 2019-21 के दौरान 1.9 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि उनके पति की दूसरी पत्नियां हैं. इससे पता चलता है कि मुसलमान चार शादियों के पक्षधर नहीं है, लेकिन वो शरीयत के साथ छेड़छाड़ नहीं चाहते हैं, यही वजह है कि ये यूसीसी के खिलाफ हैं.

गोद: इस्लाम में किसी शख्स को गोद लेने की इजाजत नहीं है, लेकिन भारत में गोद लेने का अधिकार है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के कारण मुसलमानों को इस कानून से बाहर रखा गया है. ऐसा होने के चलते कोई बेऔलाद शक्स किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकता है.

बच्चे की कस्टडी: मुसलमानों पर लागू होने वाले शरीयत कानून के अनुसार, पिता को लड़का या लड़की दोनों का नेचुरल गार्डियन माना जाता है. मां की बात करें तो मां अपने बेटे की 7 साल की उम्र पूरे होने तक की कस्टडी की हकदार है. बेटी की बात करें तो बेटी के लिए तब तक की कस्टडी की हकदार हैं, जब तक उसकी बेटी यौवन न प्राप्त कर ले.

About admin

admin

Check Also

गणपति पूजा के दौरान सीजेआई के आवास पर पीएम मोदी के जाने पर एक बार फिर सीजेआई ने बयान दिया कहा है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि सामाजिक स्तर पर न्यायपालिका और कार्यपालिका…

नई दिल्ली: सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ ने एक बार फिर गणपति पूजन पर पीएम मोदी के …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *