भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। इस बीच शुक्रवार को जम्मू, सांबा, पठानकोट सेक्टरों में कई पाकिस्तानी ड्रोन्स देखे गए। इसके अलावा जम्मू के सांबा सेक्टर में विस्फोटों की आवास सुनी गई। हालांकि भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम में पाकिस्तानी ड्रोन को मार गिराया है। बता दें कि एक पाकिस्तानी ड्रोन ने फिरोजपुर में एक रिहायशी इलाके पर हमला किया और एक परिवार को घायल कर दिया। घटना की सूचना मिलने के बाद घायलों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया। बता दें कि ड्रोन हमले के तुरंत बाद ब्लैकआउट कर दिया गया। फिलहाल कई इलाकों में अब भी ब्लैकआउट लागू है। जम्मू-कश्मीर के अखनूर और उधमपुर क्षेत्र, हरियाणा के अंबाला और पंचकूला क्षेत्र में पूर्ण ब्लैकआउट लागू किया गया है। पंजाब के फिरोजपुर और राजस्थान के जैसलमेर में भी ब्लैकआउट लागू किया गया।
इन इलाकों में देखे गएं पाकिस्तानी ड्रोन्स
- जम्मू
- सांबा
- पठानकोट
- उधमपुर
- अमृतसर
36 जगहों पर 300-400 हमले
बता दें कि पाकिस्तान द्वारा लगातार सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जा रहा है। गुरुवार को पाकिस्तानी सेना ने 7 और 8 मई की रात को भारतीय सैन्य ढांचे को निशाना बनाने की कोशिश की। इस दौरान कई हवाई हमले पाकिस्तान ने किए और उसके ड्रोन्स ने हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया। शुक्रवार को प्रेस को संबोधित करते हुए कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया कि पाकिस्तान ने 36 जगहों पर 300-400 ड्रोन से हमला करने की कोशिश की, जिनमें से कई को भारतीय सेना ने काइनेटिक और नॉन काइनेटिक तरीकों से मार गिराया है। शुरुआती जांच से पता चलता है कि ड्रोन तुर्की निर्मित असीसगार्ड सोंगर मॉडल के थे।
पाकिस्तान के पास हैं सिर्फ इतने ही ऑपरेशनल एयरबेस, उंगलियों पर गिने जा सकते हैं फ्लाइंग बेस
पाकिस्तान ने भारत के 20 से ज्यादा शहरों में शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन भी ड्रोन से हमला किया है। इसमें तुर्की निर्मित ड्रोन के इस्तेमाल की भी खबर सामने आई है। अब भारत ने फिर से बड़ी जवाबी कार्रवाई की है। जवाब में भारत ने भी आधीरात पाकिस्तान पर मिसाइल से अटैक किया और इस हमले में पाकिस्तान वायु सेना के ऑपरेशनल एयरबेस को निशाना बनाया है। बताया जा रहा है कि इस भारतीय हमले में 3 पाकिस्तान एयरबेस केंद्र रहे हैं। इनमें भारी तबाही की उम्मीद की जा रही है। मुरीद एयरबेस, रफीकी एयरबेस, नूर खान एयरबेस इसमें शामिल हैं। इसके अलावा भी पाकिस्तान के पास कई और ऑपरेशनल एयरबेस हैं, जिनसे जुड़ी जानकारी आपको यहां मिलने वाली है।
पाकिस्तान के एयरबेस
पाकिस्तान वायु सेना तीन भौगोलिक कमांड में बंटा हुआ है। पेशावर में नॉर्दर्न एयर कमांड कमांड (NAC) है, लाहौर में सेंट्रल एयर कमांड (CAC) है और करांची में सदर्रन एयर कमांड (SAC) है। इसके अलवा दो फंक्शनल कमांड्स हैं- इस्लामाबाद में एयरफोर्स स्ट्रेटिजिक कमांड (एएफएससी) और रावलपिंडी में एयर डिफेंस कमांड (एडीसी)। पाकिस्तान वायु सेना के पास कुल 21 ऑपरेशनल हवाई एयरबेस हैं, जिनमें 13 फ्लाइंग बेस हैं और 8 नॉन फ्लाइंग बेस हैं। फ्लाइंग बेस ऑपरेशनल बेस होते हैं, जहां से विमान किसी भी वक्त उड़ान भर सकते हैं, फिर चाहे वो शांति का वक्त हो या युद्ध का। इसकी तुलना में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के पास वर्तमान में लगभग 66 एयर स्टेशन हैं, जिनमें 47 विंग और 19 एफबीएसयू शामिल हैं। पाकिस्तान एयर फोर्स के ज्यादातर ऑपरेशनल बेस पूरी तरह फंक्शनल बेस हैं, जहां से विमान आम दिनों में भी उड़ान भरते हैं। चलिए आपको 13 फ्लाइंग ऑपरेशनल बेस के बारे में बताते हैं।
इन तीन एयरबेस पर हमला
मुरीद एयरबेस
यह पंजाब के चकवाल के मुरीद में स्थित एक पाकिस्तानी एयर फोर्स बेस है। यह उत्तरी वायु कमान के अंतर्गत आता है। इसमें 9,000 फीट का डामर रनवे है। इस बेस पर कोई स्थायी इकाई नहीं है। । यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है और भारत-पाक सीमा के नजदीक होने के कारण रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। मुरीद एयरबेस पाकिस्तान वायुसेना के लिए एक महत्वपूर्ण ऑपरेशनल बेस है, जहां से विभिन्न प्रकार के लड़ाकू विमानों और ड्रोन ऑपरेशन्स संचालित होते हैं। हाल के वर्षों में इस एयरबेस पर नई हैंगर सुविधाओं का निर्माण किया गया है, जिससे UAV (Unmanned Aerial Vehicle) ऑपरेशन्स की क्षमता में वृद्धि हुई है। मुरीद एयरबेस का उल्लेख 1971 के भारत-पाक युद्ध के संदर्भ में भी मिलता है, जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के विभिन्न सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे। हालांकि मुरीद एयरबेस पर हमले की पुष्टि संबंधित सैन्य दस्तावेजों में नहीं मिलती, लेकिन यह एयरबेस रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण चर्चा में रहा है।
रफीकी एयरबेस
पूर्व में पीएएफ बेस शोरकोट के नाम से जाना जाने वाला यह एयरबेस पंजाब के झंग जिले में शोरकोट के पास स्थित है। यह इस्लामाबाद से लगभग 337 किमी दक्षिण में है। बेस पर एक 10,000 फुट लंबा रनवे और एक समानांतर टैक्सीवे है जिसका उपयोग आपातकालीन लैंडिंग और विमान की रिकवरी के लिए किया जा सकता है। बेस का नाम स्क्वाड्रन लीडर सरफराज अहमद रफीकी के सम्मान में रखा गया, जो एक सम्मानित फाइटर पायलट थे। इन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान छापे मारे थे। 1965 के युद्ध में IAF ने पाकिस्तान के सबसे सुरक्षित बेस पर हमला किया और 10 विमानों को नष्ट कर दिया। इसे सेंट्रल एयर कमांड के तहत नंबर 34 (टैक्टिकल अटैक) विंग नामित किया गया है। बेस नंबर 15 टीए, नंबर 22 ओसीयू, नंबर 25 टीए, नंबर 27 टीए और नंबर 83 एसएआर (अलौएट III) इकाइयों का संचालन करता है। अनिवार्य रूप से यह मिराज III एयरबेस है।
नूर खान, चकलाला एयरबेस
इस एयरबेस की स्थापना RAF स्टेशन चकलाला के रूप में की गई थी। यह चकलाला, रावलपिंडी, पंजाब में स्थित है। कुछ साल पहले तक बेनजीर भुट्टो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा इस एयरबेस का हिस्सा था। अब इसे बंद कर दिया गया है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहां पैराशूट प्रशिक्षण अभियान चलाए गए थे। बाद में यह PAF का परिवहन केंद्र बन गया, जहां से विभिन्न परिवहन विमानों का बेड़ा संचालित होता था। साल 2005 के पाकिस्तान भूकंप के दौरान राहत प्रयासों में सहायता के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के 300 सैनिकों के साथ-साथ अमेरिकी विमानों को भी चकलाला में तैनात किया गया था। कथित तौर पर अफगानिस्तान में युद्ध के संबंध में रसद प्रयासों और अन्य आंदोलनों को संभालने के लिए 2001 के अंत से चकलाला में अमेरिका की स्थायी सैन्य उपस्थिति रही है। साल 2009 में PAF के चार Il-78 एरियल रिफ्यूलिंग टैंकर विमानों में से पहला PAF बेस चकलाला को दिया गया और वहां नंबर 10 MRTT (मल्टी रोल टैंकर ट्रांसपोर्ट) स्क्वाड्रन की स्थापना की गई। बेस का नाम 2012 में PAF बेस चकलाला से बदलकर PAF बेस नूर खान कर दिया गया। ये इसके पहले बेस कमांडर एयर मार्शल नूर खान की याद में रखा गया था। नूर खान PAF के दूसरे पाकिस्तानी प्रमुख भी थे।
पाकिस्तान के पास है इतने और एयरबेस
मसरूर, कराची एयरबेस
पीएएफ बेस मसरूर पाकिस्तान एयर फोर्स का सबसे बड़ा एयरबेस है। सिंध प्रांत के कराची के मौरीपुर इलाके में ये स्थित है। मौरीपुर में एयरबेस की स्थापना ब्रिटेन (रॉयल इंडियन एयर फोर्स, आरआईएएफ) ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1940-1941 में की थी। रॉयल पाकिस्तान एयर फोर्स (आरपीएएफ) की स्थापना के बाद ये बेस आरपीएएफ स्टेशन मौरीपुर बन गया। 1956 के बाद यह पाकिस्तान एयर फोर्स स्टेशन मौरीपुर बन गया। बाद में इसका नाम बदलकर पीएएफ बेस मसरूर रखा गया। ये नाम पूर्व बेस कमांडर, एयर कमोडोर मसरूर हुसैन के नाम पर रखा गया था, जून 1967 में उनकी विमान दुर्घटना के दौरान मौत हो गई थी। बताया जाता है कि उनके विमान पर गिद्ध ने हमला किया था। वे दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले जलते हुए विमान को आबादी वाले क्षेत्र से दूर ले जाने में पूरी तरह सफल रहे। मसरूर बेस न केवल पाकिस्तान में बल्कि एशिया में भी क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा बेस है।
कराची एयरपोर्ट बनने से पहले इसका इस्तेमाल घरेलू उड़ानों के लिए भी किया जाता था। इसका बहुत ही रणनीतिक महत्व है क्योंकि इसे पाकिस्तान के तटीय और दक्षिणी क्षेत्रों की रक्षा करने का काम सौंपा गया है। इसमें 32 टैक्टिकल अटैक (टीए) विंग है जिसमें चार अलग-अलग स्क्वाड्रन शामिल हैं और यह दक्षिणी वायु कमान के अंतर्गत आता है। एयरबेस में नंबर 2 एमआर, नंबर 4 ईडब्ल्यू, नंबर 7 टीए, नंबर 8 टीए, नंबर 84 एसएआर स्क्वाड्रन हैं, जो जेएफ-17 थंडर, जेडडीके-03 एईडब्ल्यू एंड सी कराकोरम ईगल, मिराज-IIEA ROSE-1, मिराज 5PA2/3, मिराज IIIDE 5EF और अलौएट III विमान संचालित करते हैं।
फैसल एयरबेस
कराची के शहर के बीच में आरएएफ ड्रिघ रोड के रूप में पीएएफ बेस फैसल स्थापित किया गया था। ब्रिटिश राज के दौरान इसे आरएएफ ड्रिघ रोड के रूप में जाना जाता था और उस दौर में इसे रॉयल इंडियन एयर फोर्स का जन्मस्थान भी माना गया। कहा जाता है कि पाकिस्तान एयर फोर्स को यहीं से आकार मिला। 1946 का रॉयल एयर फोर्स विद्रोह जनवरी के महीने में हुआ था। भारतीय उपमहाद्वीप में दर्जनों रॉयल एयर फोर्स स्टेशनों पर ये विद्रोह देखने को मिला था। ये विद्रोह आरएएफ ड्रिघ रोड से शुरू हुआ और बाद में ब्रिटिश भारत में 60 आरएएफ स्टेशनों और सिंगापुर तक के आरएएफ ठिकानों तक पहुंचा। इसमें लगभग 50000 लोग शामिल हुए थे। 1974 में इसका नाम बदल दिया गया और सऊदी अरब के दिवंगत राजा फैसल के नाम पर रखा गया। इसमें पीएएफ का सदर्न एयर कमांड हेड ऑफिस और पीएएफ एयर वॉर कॉलेज है। इसे दक्षिणी वायु कमान के तहत नंबर 40 (एयर मोबिलिटी) विंग नामित किया गया है। यहां से नंबर 21 एटीएस सी-130 विमान संचालित किया जाता है।
पाकिस्तान एयर बेस फैसल पर एक खास सुविधा है। ये है 102 एयर इंजीनियरिंग डिपो, जो पीएएफ के चेंगदू एफ-7 चीनी इंटरसेप्टर विमान के बेड़े के लिए टर्बोजेट इंजनों के ओवरहॉल को संभालने के लिए जिम्मेदार है। 4 जुलाई 2003 को एक सेरेमनी का आयोजन किया गया था, जिसमें ओवरहॉल किए जाने वाले 10000वें टर्बोजेट इंजन के रोल-आउट का जश्न मनाया गया था।
भोलारी एयरबेस
सदर्न एयर कमांड के तहत सिंध में कराची और हैदराबाद के बीच जमशोरो जिले में एक ऑपरेशनल बेस है, जिसे पीएएफ बेस भोलारी के नाम से जाना जाता है। इसका हाल ही में उद्घाटन किया गया और अब इसमें 19 स्क्वाड्रन, ओसीयू हैं। इसमें एफ-16 ए/बी ब्लॉक 15एडीएफ विमान का संचालन किया जा रहा है।
शाबाज, जैकोबाबाद एयरबेस
पीएएफ बेस शाबाज सदर्न एयर कमांड के अंतर्गत जैकोबाबाद, सिंध में एयरबेस है। ये नंबर 39 टैक्टिकल विंग है। यह पीएएफ द्वारा संचालित एक सैन्य बेस है और इसमें एक सिविल हवाई अड्डा भी है। यह अनिवार्य रूप से एक एफ-16 बेस है और नए एफ-16 के लिए लॉकहीड-मार्टिन अनुबंध कर्मियों की मेजबानी भी करता है। बेस में नंबर 5 स्क्वाड्रन (एफ-16 सी/डी ब्लॉक 52+) और नंबर 11 एमआर (मल्टीरोल) एफ-16 ए/बी स्क्वाड्रन है। इसमें लियोनार्डो AW139 हेलीकॉप्टरों का संचालन करने वाली एक एसएआर इकाई भी है।
समुंगली, क्वेटा एयरबेस
समुंगली, बलूचिस्तान प्रांत में क्वेटा के पास स्थित पीएएफ एयरबेस है। यह बेस दक्षिणी वायु कमान के अंतर्गत आता है। मूल रूप से अभ्यास और युद्ध के दौरान एक फॉर्वर्ड ऑपरेटिंग लोकेशन के रूप में उपयोग किया जाता था। इसे 1970 के दशक के दौरान एक मुख्य संचालन बेस में बदल दिया गया था। ब्रिटिश काल के दौरान इसे आरपीएएफ स्टेशन समुंगली के नाम से जाना जाता था। अक्टूबर 1970 में केयर एंड मेंटेनेंस (सीएंडएम) पार्टी समुंगली को पीएएफ बेस समुंगली के रूप में फिर से नामित किया गया और यह प्रस्तावित किया गया कि 1974 तक दो स्क्वाड्रन यहां स्थित होंगे। 1970 से 1978 तक बेस ने गर्मियों के दौरान कई हफ्तों तक मसरूर, सरगोधा और पेशावर के लड़ाकू स्क्वाड्रनों को तैनात किया। 31 मार्च 1978 को पीएएफ बेस समुंगली को एक सैटेलाइट बेस से मुख्य संचालन बेस में बदल दिया गया, जिसके बाद नंबर 23 स्क्वाड्रन को स्थायी रूप से वहां तैनात किया गया। बाद में नंबर 17 स्क्वाड्रन को भी समुंगली में तैनात किया गया और दोनों स्क्वाड्रनों को मई 1983 में स्थापित नंबर 31 विंग को सौंप दिया गया।
मुशफ, सरगोधा एयरबेस
मुशफ एयरबेस पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सरगोधा में है। इसे नंबर 38 (टैक्टिकल) विंग का नाम दिया गया है। यह सेंट्रल एयर कमांड के अधीन है और इसमें कमांड मुख्यालय भी है। 2003 तक इसे पीएएफ बेस सरगोधा के नाम से जाना जाता था। बाद में इसका नाम बदलकर भूतपूर्व बेस कमांडर और चीफ ऑफ द एयर स्टाफ एयर चीफ मार्शल मुशफ अली मीर के सम्मान में रखा गया, जिनका विमान उसी साल कोहाट के पास एक नियमित उड़ान के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। बेस में कॉम्बैट कमांडर्स स्कूल (CCS) है, जो रणनीति, हथियार प्रणाली रोजगार और विभिन्न इकाइयों के मानकीकरण और मूल्यांकन के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए है। CCS के पास तीन स्क्वाड्रन हैं। ‘स्काईबोल्ट्स’ वर्तमान में डसॉल्ट मिराज III/5 उड़ा रहा है, ‘डैशिंग्स; वर्तमान में चेंगदू F-7P उड़ा रहा है और ‘ड्रेगन्स’ वर्तमान में JF-17 उड़ा रहा है। CCS कर्मचारी युद्ध क्षमताओं का जायजा लेने और उनमें सुधार करने के लिए PAF लड़ाकू स्क्वाड्रनों का वार्षिक दौरा करते हैं।
जून 1990 में स्क्वाड्रन कॉम्बैट अपग्रेडेशन प्रोग्राम (SCUP) शुरू किया गया। इसके बाद SCUP को 1992 में नियमित अभ्यास सैफरन बैंडिट द्वारा रिप्लेस किया गया। एयरबेस में N0. 9 MR (F-16 A/B), नंबर 24 EW (फाल्कन 20 F/G), CCS F-16 A/B, CCS F-7P, CCS मिराज 5PA, CCS JF-17, नंबर 29 MR F-16 ए/बी, अलौएट्स के साथ नंबर 82 एसएआर यूनिट शामिल हैं।
पेशावर एयरबेस
पीएएफ बेस पेशावर, खैबर पख्तूनख्वा में स्थित पीएएफ का एक एयरबेस है। इसे नंबर 36 (टैक्टिकल अटैक) विंग का नाम दिया गया है। यह नॉदर्न एयर कमांड के अंतर्गत आता है। इसमें पीएएफ की नॉदर्न एयर कमांड भी है, जो पेशावर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के ठीक पूर्व में स्थित है, जिसे सिविल उड़ानों और सैन्य उड़ानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें नंबर 26 एमआर (जेएफ-17), नंबर 17 एएस (एफ-7पीजी) और नंबर 81 एसएआर (अलौएट III) इकाइयां हैं। 15 दिसंबर 2012 को जब तहरीक-ए-तालिबान के आतंकवादियों ने पीएएफ बेस पेशावर पर हमला किया तो कम से कम पांच नागरिक मारे गए थे और 40 अन्य घायल हुए। हमले में पांच टीटीपी लड़ाके भी मारे गए थे।
एम.एम. आलम एयरबेस
पीएएफ एमएम आलम एयरबेस पंजाब प्रांत के मियांवाली में है। यह नॉरदर्न एयर कमांड के अधीन है और इसे नंबर 37 (कॉम्बैट ट्रेनिंग) विंग नामित किया गया है। मूल रूप से यह द्वितीय विश्व युद्ध की हवाई पट्टी थी, जिसे 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान तत्कालीन पीएएफ बेस सरगोधा के लिए एक सैटेलाइट एयरबेस में अपग्रेड किया गया था ताकि यहां रिकवरी एयरफील्ड के रूप में कार्य किया जा सके। एयरबेस अक्टूबर 1971 में चालू हुआ। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बेस से शेनयांग एफ-6 सहित विभिन्न प्रकार के विमानों का संचालन किया गया था। अगस्त 1974 में एयरबेस को फिर से एक स्थायी ऑपरेशनल एयरबेस में अपग्रेड किया गया। नवंबर 1975 में नंबर 1 फाइटर कन्वर्जन यूनिट (FCU) को मसरूर से मियांवाली एयरबेस में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां इसने Ft-5 डुअल-सीट ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट का उपयोग करके फाइटर कन्वर्जन ट्रेनिंग शुरू की। तब से 500 से अधिक फाइटर पायलट ग्रैजुएट हो चुके हैं। साल 2012 से चीनी K-8P फाइटर ट्रेनर विमान का यहां उपयोग किया जा रहा है। इस बेस में नंबर 1 FCU (K-8P), नंबर 18 OCU (F-7P, FT-7P), नंबर 20 OCU (F-7PG, FT-7P) और नंबर 86 SAR (Alouette III) इकाइयां हैं।
बता दें, 03 नवंबर 2023 की सुबह-सुबह कई आत्मघाती हमलावरों ने PAF मियांवाली एयरबेस पर हमला किया था। पाकिस्तान ने दावा किया कि जवाबी गोलीबारी में नौ आतंकवादी मारे गए। लगभग तीन विमान नष्ट हो गए। PAF का दावा है कि ये पुराने विमान थे।
मिन्हास एयरबेस
यह एयरबेस पंजाब के अटक जिले के कामरा में स्थित है। इसका नाम पायलट अधिकारी राशिद मिन्हास के सम्मान में रखा गया है, जिन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता के लिए निशान-ए-हैदर से सम्मानित किया गया था। इसे नंबर 33 (टैक्टिकल) विंग का नाम दिया गया है, यह उत्तरी वायु कमान के अंतर्गत आता है। एयरबेस में नंबर 14 एएस (जेएफ-17), नंबर 16 ओसीयू (जेएफ-17), नंबर 3 ईडब्ल्यू (साब 2000 एरीये एईडब्ल्यू एंड सी) और नंबर 87 एसएआर (अलौएट III, एमआई-171एसएच) इकाइयां हैं। पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स मिन्हास एयरबेस में स्थित है। यहां JF-17 थंडर, MFI-17 मुश्शाक और होंगडू JL-8 का निर्माण किया जाता है। यह डसॉल्ट मिराज और चेंगदू F-7 जैसे विमानों का पुनर्निर्माण भी करता है। 16 अगस्त 2012, वो तारीख थी जब नौ तहरीक-ए-तालिबान आतंकवादियों ने लगभग 2 बजे PAF बेस मिन्हास पर हमला किया। एक भीषण मुठभेड़ के बाद सभी नौ हमलावर मारे गए जबकि दो पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी भी मारे गए। हमले में बेस कमांडर, एयर कमोडोर मुहम्मद आजम के भी घायल होने की खबर थी। आतंकवादियों ने एक साब 2000 एरीये विमान को भी नष्ट कर दिया। इसके अलावा दो और को डैमेज किया था।
पाकिस्तान वायु सेना अकादमी, असगर खान, रिसालपुर एयरबेस
पाकिस्तान वायु सेना अकादमी 1910 में बनाई गई थी और यह रॉयल फ्लाइंग कोर और बाद में रॉयल एयर फोर्स का एक पूर्व हवाई क्षेत्र था। यह समुद्र तल से 1050 फीट ऊपर एक बेसिन में स्थित है। यह क्षेत्र दक्षिण और पश्चिम में काबुल और कल्पनी नदियों से घिरा हुआ है। पाकिस्तान वायु सेना अकादमी रिसालपुर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के नौशेरा जिले में आती है और प्रसिद्ध खैबर दर्रा उत्तर में 90 किलोमीटर दूर है। यह 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान एयर फोर्स का हवाई क्षेत्र बन गया। 21 जनवरी 1967 को इसे अकादमी का दर्जा दिया गया। इसके पांच घटक हैं। शुरुआत में यह हार्वर्ड, टाइगर मॉथ, ऑस्टर, फ्यूरी और टेम्पेस्ट विमानों से सुसज्जित था। साल 1955 में इसने लॉकहीड टी-33 जेट ट्रेनर को पेश किया। टी-6जी (हार्वर्ड) को बाद में मुशशाक (साब ट्रेनर) द्वारा बदल दिया गया। वर्तमान में PAF अकादमी में प्रशिक्षक विमान T-37, मुश्शाक MFI-17 और K-8 हैं, जो 1995 में शामिल हुए थे। अकादमी में दो विमानन विंग और एक स्क्वाड्रन है। प्राथमिक उड़ान प्रशिक्षण (PFT) विंग में MFI-17 शामिल है जबकि बेसिक फ्लाइंग ट्रेनिंग (BFT) विंग में T-37 विमान शामिल हैं। एडवांस फ्लाइंग ट्रेनिंग स्क्वाड्रन K-8 विमानों से बना है।