मोदी सरकार की राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने बुधवार को जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल करने का फैसला लिया है. मोदी सरकार का यह फैसला बिहार चुनाव से पहले काफी अहम माना जा रहा है और कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों की मांग को कुंद करेगा. जाति गणना पर कांग्रेस पर हमला बोलते हुए केंद्र सरकार ने दावा किया कि दिवंगत प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 2010 में कहा था कि जाति जनगणना के मामले पर कैबिनेट में विचार किया जाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने सदा ही इसका विरोध किया है.
केंद्र सरकार ने अगली जनगणना में जाति जनगणना शुरू करने का ऐलान किया है. आइए जानते हैं कि देश में जाति जगणना का क्या इतिहास रहा है?
ब्रिटिश काल में 1881 में शुरू हुई थी जनगणना
भारत में जनगणना की शुरुआत 1881 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी और तब से यह अभ्यास देश की जनसंख्या का व्यापक चित्र प्रस्तुत करने के लिए हर दस वर्षों में आयोजित किया जाता रहा है. जनगणना का उद्देश्य देश के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और जनसांख्यिकीय स्वरूप को समझना है. यह अभ्यास 1948 के जनगणना अधिनियम के तहत संचालित होता है, जिससे इसके तहत एकत्र किया गया सारा डेटा गोपनीय रहता है.
हालांकि, जनगणना की सीमाओं को लेकर 1941 में जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.डब्ल्यूएम येट्स ने टिप्पणी की थी कि, जनगणना एक बड़ी, बेहद शक्तिशाली, लेकिन कुंद साधन है जो विशेष जांच के लिए अनुपयुक्त है.
1931 में हुई पहली सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना
इसी पृष्ठभूमि में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) की शुरुआत हुई. 1931 में जाति-आधारित जनगणना की गई थी, लेकिन आधुनिक SECC पहली बार 2011 में आयोजित की गई. SECC का मकसद देश के हर ग्रामीण और शहरी परिवार तक पहुंचकर उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी जुटाना है. इस अभ्यास के माध्यम से सरकार को वंचित वर्गों की पहचान करने और लाभकारी योजनाओं के लिए लक्षित सहायता प्रदान करने में मदद मिलती है.
जनगणना और SECC में क्या है अंतर
जहां जनगणना देश की कुल जनसंख्या का विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती है, वहीं SECC का उद्देश्य वंचितता के मानकों के आधार पर जरूरतमंदों की पहचान करना है.
एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जनगणना के डेटा गोपनीय रहते हैं, जबकि SECC की वेबसाइट के अनुसार, इसमें दी गई व्यक्तिगत जानकारी सरकारी विभागों द्वारा योजनाओं के लाभ और प्रतिबंध तय करने के लिए उपयोग की जाती है.
नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और सरकार के लिए दोनों अभ्यास बेहद अहम हैं, लेकिन इनकी प्रकृति और उपयोग का क्षेत्र स्पष्ट रूप से अलग है.
आंकड़ों में जानें कितनी हैं जातियां
साल 1872 : ब्राह्मण, क्षत्रिय, राजपूत; पेशे के आधार पर अन्य जातियां, मूल ईसाई, आदिवासी जनजातियां, अर्ध-हिंदू जनजातियां.
साल 1901 : 1,642 जातियां.
साल 1931 : 4,147 जातियां.
साल 1941 : द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जनगणना में कटौती.
साल 2011 : सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना संख्या को अशुद्धियों का हवाला देते हुए रोक दिया गया. 46 लाख से अधिक जाति के नाम, उपजातियां, उपनाम और गोत्र.