पंजाब नेशनल बैंक (PNB) घोटाले के मुख्य आरोपी और भगोड़े हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी को बेल्जियम की अदालत से करारा झटका लगा है. कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. 13,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोपी चोकसी की जमानत याचिका पर तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई की और विस्तार से दलीलें सुनने के बाद उसे खारिज कर दिया.
सुनवाई के दौरान मेहुल चोकसी ने कोर्ट में अपनी खराब तबीयत का हवाला देते हुए कहा कि वह बीमार है और उसे अपने परिवार के साथ रहने की अनुमति दी जानी चाहिए. उसने यह भी कहा कि वह जमानत के लिए किसी भी शर्त को मानने को तैयार है, यहां तक कि वह GPS ट्रैकिंग डिवाइस वाली एंकलेट पहनने के लिए भी तैयार है. हालांकि, अदालत ने उसकी इन दलीलों को खारिज करते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया.
बेल्जियम हुआ था गिरफ्तार
मेहुल चोकसी को 12 अप्रैल 2025 को बेल्जियम में गिरफ्तार किया गया था. भारत सरकार ने बेल्जियम से उसके प्रत्यर्पण के लिए पहले ही औपचारिक अनुरोध भेज दिया है. भारतीय एजेंसियों को जानकारी मिली थी कि चोकसी इलाज के बहाने स्विट्जरलैंड भागने की फिराक में था, लेकिन समय रहते उसे पकड़ लिया गया. अब एजेंसियों को उम्मीद है कि कोर्ट के इस फैसले से उसके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया तेज होगी.
प्रत्यर्पण पर क्या बोले विशेषज्ञ?
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होगी. वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने बताया कि हालांकि शुरुआती कदम उठाए गए हैं, लेकिन मेहुल को इतनी जल्दी भारत नहीं लाया जा सकेगा. बेल्जियम में संबंधित मंत्रालय को एक प्रशासनिक आदेश जारी करना होगा, जो अदालत के आदेश के अधीन होगा. यानी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक होगा.
भारत में जिस अपराध के आरोप मेहुल चोकसी को भगोड़ा घोषित किया गया है, वह अपराध बेल्जियम के कानून के अंतर्गत भी दंडनीय होना चाहिए. अगर दोनों देशों के कानूनों में समानता नहीं हुई, तो प्रत्यर्पण की राह और जटिल हो सकती है. इस पहलू की समीक्षा कोर्ट और प्रशासन दोनों को करनी होगी.
प्रत्यर्पण का विरोध क्यों?
वहीं दूसरी ओर, मेहुल चोकसी ने प्रत्यर्पण का विरोध करते हुए यह तर्क दिया है कि उसके खिलाफ मामला राजनीतिक अपराध की श्रेणी में आता है. उसने यह दावा किया कि भारत में उस पर राजनीतिक द्वेष के चलते कार्रवाई की जा रही है. बेल्जियम के कानून में अगर यह तर्क स्वीकार कर लिया गया, तो यह उसके प्रत्यर्पण में सबसे बड़ी बाधा बन सकता है. फिलहाल, अदालत के इस फैसले से भारत को एक मजबूत आधार जरूर मिला है.