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कश्मीर घाटी में आतंकवादियों ने पर्यटकों पर जानलेवा हमला किया, जिसमें 26 पर्यटकों के मरे और कई घायल, आतंकवादियों ने धर्म पूछकर लोगों को गोली मारी

जब भी लगता है, कि अब कश्मीर घाटी में शांति बहाल हो गई तब ही कोई न कोई अनहोनी हो जाती है. इस बार तो आतंकियों ने पर्यटकों पर ही हमला बोल दिया. पिछले कुछ वर्षों से लग रहा था कि घाटी में अब पर्यटकों के लिए अमन-चैन है. भले सुरक्षा बलों के साथ उनकी भिड़ंत होती रही हो. लेकिन इस हमले से लग रहा है कि आतंकियों ने वह वक्त चुना, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में हैं. कश्मीर घूमने को आतुर अमेरिकी भी इस दौरे के बाद घाटी का चक्कर लगाने आते. पर अचानक हुए इस हमले ने पर्यटकों के हौसले को तोड़ा है.

इस हमले से आतंकियों की एक और करतूत उजागर हुई और वह कि हत्या करने में व्यक्ति के मजहब की जानकारी लेना. चश्मदीदों ने बताया कि जैसे ही आतंकियों ने एक व्यक्ति का हिंदू नाम सुना, उसे फौरन गोली मार दी. इस आतंकी घटना में 30 पर्यटकों के मारे जाने की आशंका है जबकि कई घायल हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की यात्रा से बीच में ही छोड़कर लौट आए. मुंबई में ताज हमले 26/11 के बाद हुई यह पहली आतंकी वारदात है जिसमें इतनी बड़ी संख्या में निर्दोष मारे गए.

पर्यटन उद्योग को झटका

कुछ वैसा ही जैसे चार दशक पूर्व अंबाला-चंडीगढ़ के बीच सिख आतंकवादियों ने किया था. 1987 में लाड़नूं के पास हरियाणा रोडवेज की एक बस से उतार कर सिख आतंकियों ने 38 हिंदू यात्रियों की हत्या कर दी थी. यह बस चंडीगढ़ से हरिद्वार जा रही थी. कुछ ऐसा ही मंगलवार को पहलगाम में हुआ. पहलगाम की बैसरन वैली में घुड़सवारी को जा रहे एक पर्यटक समूह से कुछ लोगों ने उनका नाम पूछा और हिंदू नाम सुनते ही गोली मार दी. अभी यह सब चश्मदीदों द्वारा सुनी गई बातें हैं.

धर्म के आधार पर हुआ यह गोलीकांड जम्मू-कश्मीर में लौटी रौनक को फिर पीछे धकेल देगा. पर्यटकों की आवाजाही से जम्मू कश्मीर में उम्मीद लौटी थी कि फिर से घाटी में बहार आएगी. घाटी के होटल मालिकों से लेकर ऊनी वस्त्रों और केसर के उत्पादकों के चेहरे खिले थे. उन्हें उनके कौशल की वाजिब कीमत मिल रही थी.

वंदे भारत के उत्साह पर पानी फिरा

लेकिन इस फायरिंग के कारण पर्यटकों में डर बैठेगा. वे घाटी की बजाय किसी अन्य पहाड़ी स्थान पर जाने का फैसला किया करेंगे. 1990 से लगातार तीन दशक तक कश्मीर घाटी जाने से पर्यटक भयभीत रहते थे. सिर्फ अमरनाथ यात्रा के समय वे जरूर जाते थे. वह भी आर्मी के संरक्षण में. किंतु वह भी सुरक्षित नहीं थी. लेकिन धारा 370 हटने और कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव हो जाने के बाद से बॉर्डर के उस तरफ से आने वाले आतंकियों पर रोक लगी थी. इस समय घाटी में जाने वाले पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ी है.

एक वजह तो नैनीताल, मसूरी और शिमला की भीड़ से बचने के लिए पर्यटक कश्मीर का रूख करने लगे हैं. पहलगाम इसमें सबसे सुंदर पर्यटक स्थल है, इसलिए पर्यटकों की पहली पसंद पहलगाम होती है. श्रीनगर के लिए वंदे भारत ट्रेन सेवा भी जल्द शुरू होने वाली है. इससे पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों में खुशी थी.

नाम और धर्म पूछकर निर्मम हत्या, पहलगाम का आतंकी हमला कश्मीर की खुशहाली के लिए कितना बड़ा झटका?

धर्म पूछ कर गोली मारना

पर अचानक हुए इस हमले से आतंकियों ने कश्मीर की अर्थव्यवस्था को चौपट करने के अपने मंसूबे को पूरा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को सऊदी अरब के जेद्दा शहर में थे और भारत में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस चार दिन के दौरे पर आए हुए हैं. जेडी वेंस की पत्नी भारतीय मूल की हैं, इसलिए भारत घूमने की भी उनकी इच्छा होगी.

ऐसे समय में TRF (द रजिसटेंस फ्रंट) नाम के एक आतंकी संगठन ने यह कारनामा किया. इसे लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा बताया जा रहा है. यह हमला किसी गुप्त एजेंडे की तरफ संकेत कर रहा है. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकियों को न छोड़ने का ऐलान किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी सख्ती बरतने की घोषणा की है. इस कायराना हमले की निंदा राहुल गांधी ने भी की है. निर्दोष लोगों का धर्म पूछ कर उन्हें गोली मार देना देश के भीतर गृह युद्ध की भी साजिश हो सकती है.

पाक जनरल के बयान के बाद हुआ हत्याकांड

संसद की एक कमेटी जम्मू कश्मीर के हालात का जायजा लेने 26 अप्रैल से एक मई तक कश्मीर जाने वाली थी. दौरे से महज चार दिन पहले यह फायरिंग हो गई. इसके पीछे पाकिस्तान के सेना प्रमुख का वह बयान भी बताया जा रहा है जब जनरल मुनीर ने कश्मीर को अपने गले की नस बताया था. उनके बयान के बाद से अंदेशा जताया जा रहा था कि पाकिस्तान कोई भी हरकत कर सकता है.

सन 2000 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर थे तब भी अनंतनाग जिले में ही आतंकवादियों ने 35 सिखों को मार दिया था. भारत को इस हमले पर सख्त कदम उठाने ही चाहिए क्योंकि पाकिस्तान की सेना भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ कराती ही रहती है. कश्मीर सीमा से पाक के आतंकी पहले भी आते रहे हैं. इधर सेना के सजग रहने और भारत द्वारा कड़ी कार्रवाई किए जाने से शांति थी. लेकिन फिर घुसपैठियों ने यह हरकत कर दी.

खालिस्तान कमांडो फोर्स ने की थी शुरुआत

घाटी में पर्यटकों की संख्या बढ़ना और कश्मीर में पर्यटन उद्योग का फलना-फूलना पाकिस्तान को रास नहीं आ रहा. वह शुरू से ही कश्मीर की शांति के रास्ते में अड़ंगेबाजी करता रहा है. यह भारत को घेरने की उसकी कोशिश है. किसी का धर्म पूछ कर उसे उड़ा देने की पहल पाकिस्तान पोषित आतंकवाद करता रहा है. जब भारत में पाकिस्तान सिख आतंकवाद को प्रश्रय दे रहा था, तब 6 जुलाई 1987 को खालिस्तान कमांडो फोर्स (KCF) के आतंकियों ने पंजाब के लालड़ूँ में बस से उतार कर 38 हिंदू यात्रियों की हत्या कर दी थी.

अपने किस्म की यह पहली घटना थी. राजीव गांधी सरकार भौंचक रह गई थी. इसके बाद ऐसी और भी घटनाएं घटीं. सरकार शुरू में ऐसी घटनाओं पर सख्ती से रोक लगा ले तब ही इस तरह के हत्याकांड रोके जा सकते हैं. हालांकि मौजूदा सरकार के तेवरों से लगता है कि सरकार किसी भी आतंकी को छोड़ेगी नहीं.

खुशहाली को बड़ा झटका

दो महीने बाद जम्मू कश्मीर में अमरनाथ यात्रा भी शुरू हो जाएगी. पाक समर्थित आतंकी अमरनाथ यात्रियों पर भी हमले करते रहे हैं. 1993 से 2006 तक हर दूसरे-तीसरे वर्ष आतंकी अमरनाथ जाने वाले यात्रियों को निशाना बनाते ही रहे. बाद में सेना की पहरेदारी में यात्रियों को भेजा जाने लगा था. इन वर्षों में 150 के करीब यात्री मारे गए थे. लेकिन फिलहाल शांति चल रही थी. धारा 370 हटने के बाद से पाकिस्तान और उसके यहां से भारत में घुसपैठ करने वाले आतंकी शांत थे.

इसकी एक वजह तो आम कश्मीरियों को भी इससे राहत मिली थी. पर्यटकों की हत्या से कश्मीर के व्यापार, उद्योग सबकी हानि हो रही थी, इसलिए आतंकवादी आम लोगों के बीच पैठ नहीं बना पा रहे थे. व्यापार और उद्योग बढ़ने से कश्मीर में खुशहाली आ रही थी और बेरोजगारी दूर हो रही थी. ऐसे माहौल में ताजा हत्याकांड ने लोगों में भय पैदा कर दिया है.

सब दल पाकिस्तान को सबक सिखाने को उद्यत

अच्छी बात यह है कि पहली बार सारे राजनीतिक दल इस घटना को अंजाम देने वालों को सख्ती से कुचलने की बात कर रहे हैं. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने भी अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पाकिस्तान को निशाने पर लिया है. जम्मू कश्मीर में विरोधी दल PDP का भी कहना है, सरकार सख्ती से काम ले. हर दल के नेता को लग रहा है कि यदि सरकार ने ढिलाई से काम लिया तो जम्मू कश्मीर का उद्योग-व्यापार चौपट हो जाएगा. दूसरे धर्म पूछ कर गोली मारने का मतलब पूरे देश को हिंदू-मुस्लिम में बांट देना है. इस पर रोकने के सरकार हर संभव कदम उठाए.

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