महाराष्ट्र में नई शिक्षा नीति के तहत पहली से पांचवीं तक हिंदी भाषा को अनिवार्य किए जाने के फैसले का विरोध तेज हो गया है। मुंबई के दादर इलाके में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने पोस्टर लगाकर राज्य सरकार को चेतावनी दी है। मनसे ने अपने पोस्टर में लिखा, “हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं।” बता दें कि इससे पहले मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने आज सुबह 11 बजे अपने निवास पर नेताओं की बैठक बुलाई थी। मनसे का आरोप है कि केंद्र की नीति के जरिए राज्य पर हिंदी थोपी जा रही है। पार्टी ने साफ कहा है कि अगर सरकार ने फैसला वापस नहीं लिया, तो पूरे राज्य में बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा। राज ठाकरे खुद इस मुद्दे पर रणनीति बनाने में जुटे हैं। आज मनसे ने आंदोलन भी किया और राज्य सरकार के आदेश की प्रतियां जलाई ।
क्या बोले मनसे नेता
मनसे नेता संदीप देशपांडे ने इस मामले पर कहा, “हिंदी राजभाषा है, राष्ट्रभाषा नहीं। आप किसी दूसरी राज्य की भाषा हम पर नहीं थोप सकते। आज हिंदी, कल गुजराती या तमिल सिखाने को कहेंगे। ये नहीं चलेगा। हम मराठी हैं, और मराठी ही सीखेंगे। इसके लिए अंतिम सांस तक संघर्ष करेंगे।” वहीं शिवसेना यूबीटी गुट के नेता आदित्य ठाकरे ने कहा, “भाषा का मुद्दा राजनीति से हटकर देखा जाना चाहिए। मराठी हमारी राज्य भाषा है, उसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हम हिंदी को तीसरी भाषा बनाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सवाल है कि क्या पहली कक्षा के बच्चे इसके लिए तैयार हैं? इसे बाद की कक्षा में लागू किया जा सकता है। क्या हमारे पास पर्याप्त शिक्षक और संसाधन हैं? सरकार भाषा के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाना चाहती है।’
अजीत पवार ने कही ये बात
वहीं इस मामले पर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा, “मराठी हमारी मातृभाषा है और उससे हमारी पूरी आस्था जुड़ी है। बीजेपी सिर्फ हिंदी और हिंदुस्थान की लाइन पर चल रही है। यह फैसला एक चुनावी एजेंडा है। देश की विविधता में एकता की भावना को खत्म किया जा रहा है। सरकार को यह फैसला तुरंत वापस लेना चाहिए।” वही उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने इस मामले पर कहा कि महाराष्ट्र में मराठी जरूरी ही है। इसमें कोई दो राय नहीं है, पर देश में हिंदी और विदेश में अंग्रेजी का ज्ञान होना जरूरी है, जिन लोगों के पास काम नहीं है, वही लोग इसपर राजनीति कर रहे हैं।